
भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। चुनावी साल में मप्र में आदिवासी राजनीति का केंद्र बने हुए हैं। भाजपा और कांग्रेस सहित लगभग हर पार्टी की कोशिश है कि वे आदिवासी वोट बैंक को अपनी ओर कर ले। इसके लिए तरह-तरह के उपक्रम किए जा रहे हैं। वहीं पार्टियों का रूझान देखते हुए आदिवासी समाज के अंदर अलग भील प्रदेश की चाह उठने लगी है। आदिवासियों की मंशा को भांपकर जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस)ने इस मुद्दे को अपने चुनावी एजेंडे में शामिल कर लिया है। इससे यह संकेत मिल रहे हैं कि आगामी चुनावी में भील प्रदेश चुनावी मुद्दा बनेगा।
गौरतलब है कि प्रदेश में लंबे समय से अलग बुंदेलखंड और विंध्य प्रदेश की मांग उठ रही है। जब भी चुनाव होते हैं यह मुद्दा गरमा जाता है। इस बार के विधानसभा चुनाव में बुंदेलखंड और विंध्य प्रदेश के साथ ही अलग भील प्रदेश की मांग भी जोर पकड़ सकती है। जयस ने हाल में इसे अपने एजेंडा में शामिल करने की घोषणा की है। प्रदेश के लिए ये मांग नई है पर गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों में भील समाज दशकों से अलग भील राज्य की मांग पर अड़ा हुआ है। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के कई जिले भी इस प्रस्तावित राज्य का हिस्सा हैं।
अलग भील प्रदेश की मांग क्यों
भील जनजाति गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में रहती है। भील वंश को लोग महाभारत के चरित्र एकलव्य से जोडक़र देखते हैं। कुछ लोग मानते हैं कि रामायण के रचयिता वाल्मीकि भी भील थे। जयस का कहना है कि दूरस्थ आदिवासी गांवों तक सरकार की पहुंच नहीं होती है। कई गांवों तक विकास नहीं पहुंचा। अधिकारी गांवों का नाम तक नहीं जानते हैं। हर साल वादा किया जाता है लेकिन विकास गांव तक नहीं पहुंचता है। प्रशासनिक और सरकारी उपेक्षा की वजह से आदिवासी समुदाय प्रभावित है। इसको देखते हुए जयस आदिवासियों को संगठित करने की कोशिश में यह पार्टी जुटी हुई है। जयस की यह मांग है कि बीते 75 साल में आदिवासियों के लिए अलग से कुछ नहीं हुआ है। अगर ऐस भील प्रदेश बन जाता है तो उनके लिए क्या काम हुआ है इसकी सटीक जानकारी मिल सकती है।
अलग विंध्य और बुंदेलखंड की मांग काफी पुरानी
शहडोल, रीवा, सीधी, सिंगरौली, अनूपपुर, उमरिया और कटनी के कुछ हिस्सों को मिलकर विंध्य क्षेत्र माना जाता है। अलग छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तराखंड राज्य बनने के समय तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस सरकार ने एनडीए सरकार को एक संकल्प पारित करके विंध्य -प्रदेश के लिए भेजा था पर केंद्र ने इसे खारिज कर दिया था। इसी तरह मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में आने वाले जिलों को मिलाकर अलग बुंदेलखंड राज्य बनाने की मांग भी बहुत पुरानी है।
अलग महाकौशल राज्य की मांग
वहीं चुनाव वर्ष में अलग महाकौशल राज्य की मांग उठने लगी है। महाकौशल राष्ट्रीय पार्टी ने अलग महाकौशल राज्य की मांग उठाई है। पार्टी का कहना है कि महाकौशल विकास के मामले में लगातार पिछड़ता जा रहा है। सालों से महाकौशल की उपेक्षा हो रही है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सतीश नागजी के मुताबिक 24 जिलों को मिलाकर महाकौशल राज्य की घोषणा की जा सकती है। इन जिलों में जबलपुर, मंडला, डिंडोरी, अनूपपुर, शहडोल, उमरिया, सीधी, सिंगरौली, रीवा, सतना, पन्ना कटनी, दमोह, सागर, टीकमगढ़ छतरपुर, रायसेन, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, बालाघाट, बैतूल होशंगाबाद आदि जिले शामिल किए जा सकते हैं।
3 करोड़ लोगों की मांग
जयस के नेताओं का दावा है कि अलग भील प्रदेश की मांग करने वालों की आबादी 3 करोड़ से अधिक की है। चार राज्यों के संयुक्त आदिवासी क्षेत्र को मिलाकर इस कल्पित राज्य में मध्य प्रदेश (21.1 प्रतिशत), गुजरात (14.8 प्रतिशत), राजस्थान (13.48 प्रतिशत), और महाराष्ट्र (9.35 प्रतिशत) आबादी आती है। प्रस्तावित भील प्रदेश में मप्र, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र के कुल 39 जिले शामिल हैं। मप्र के रतलाम ग्रामीण, धार, बड़वानी, झाबुआ, अलीराजपुर, खरगोन और खंडवा जैसे इलाके शामिल हैं। जनजातीय क्षेत्रों में चल रही जयस की आदिवासी अधिकार यात्रा में अन्य मांगों के अलावा इस मांग को भी शामिल किया गया है। जयस पदाधिकारियों के मुताबिक धार, झाबुआ, रतलाम, अलीराजपुर आदि में जमीनी स्तर पर जनजातीय समाज इस मांग से जुड़ चुका है। जयस के कार्यकारी अध्यक्ष रविराज बघेल ने कहा कि संगठन इस मांग से सहमत है और जल्द ही इसे जयस के एजेंडा में शामिल किया जाएगा। संगठन का आधार मालवा-निमाड़ क्षेत्र में अधिक है जहां सबसे बड़ी संख्या भिलाला समुदाय की है, उसके बाद बारला और भील समुदाय का नंबर आता है। इस क्षेत्र में भील प्रदेश संगठन भी अस्तित्व में है।