सिंधिया अब ‘महाराज’ नहीं ‘जमीनी कार्यकर्ता’

ज्योतिरादित्य सिंधिया
  • चंबल-ग्वालियर में ऐतिहासिक स्वागत के बाद भी

    भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम।
    केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने एक बार फिर दमदार तरीके से सियासी संदेश दिया है कि अब वे कांग्रेस वाले ‘महाराज’ नहीं बल्कि भाजपा के ‘जमीनी कार्यकर्ता’ कार्यकर्ता हैं। तीन दिवसीय प्रवास पर ग्वालियर आए सिंधिया का जिस तरह ऐतिहासिक स्वागत हुआ उससे लगा कि प्रदेश भाजपा में वर्चस्व का नया अध्याय शुरू होगा। लेकिन सिंधिया पूरी तरह भाजपा के एक समर्पित कार्यकर्ता की तरह नजर आए। उनके हाव-भाव और बयान से साफ दिख रहा था कि वे वर्चस्व की बजाय भाजपा की सियासी जमीन मजबूत करने में लगे हुए हैं। गौरतलब है कि ग्वालियर राजपरिवार के मुखिया के नाते प्रदेश की राजनीति में ज्योतिरादित्य सिंधिया का खास ग्लैमर है। कांग्रेस में रहते उनके राजनीतिक व्यक्तित्व पर महाराज वाली पारंपरिक छवि हावी रहती थी, लेकिन भाजपा से जुड़ने  के बाद उनके व्यक्तित्व का अलग ही जमीनी स्वरूप उभर कर सामने आ रहा है। इसका अहसास सिंधिया के अपने गृहक्षेत्र के तीन दिवसीय प्रवास में साफ देखने को  मिला। हालांकि सिंधिया खुद को अभी भी भाजपा का साधारण कार्यकर्ता ही मान रहे हैं लेकिन मोदी कैबिनेट में मंत्री बनने के बाद पहली दफा अपने शहर में आने पर सिंधिया का जो गर्मजोशी भरा स्वागत हुआ, उससे यही संकेत गया है कि वे जो सियासी धमक कांग्रेस में रहते रखते थे, कमोबेश भाजपा में भी उन्होंने इसे बरकरार रखा है। लेकिन सारे सियासर तामझाम के बाद भी वे एक आम कार्यकर्ता ही नजर आए।
    सबको साथ लेकर चलने की परंपरा
    ज्योतिरादित्य सिंधिया जब कांग्रेस में थे तो उनकी अपनी एक अलग लाइन थी। लेकिन अब उन्होंने भाजपा की सबको साथ लेकर चलने वाली परंपरा अपना ली है। राजनीतिक विश्लेषक भविष्य की भाजपा की राजनीति में सिंधिया को अग्रणी पंक्ति में शुमार करते हैं, उन्होंने जो राजनीतिक लाइन अख्तियार की है, उसे देखते हुए इससे काफी हद तक सहमत हुआ जा सकता है। अतीत पर नजर डालें तो स्वतंत्रता के उपरांत सिंधिया परिवार के नेतृत्व की छवि ऐसे ताकतवर क्षत्रप की रही, जिन्होंने कम से कम ग्वालियर की अपनी राजनीतिक जमीन पर हिस्सेदारी देने में कोताही बरती, ग्वालियर की सियासत स्व. माधवराव सिंधिया के प्रभावशाली व्यक्तित्व के इर्दगिर्द ही सिमटी रही लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया इस मायने में अपनी पिछली पीढ़ियों से कुछ हटकर नजर आ रहे हैं। यह ठीक है कि गत दिनों रोड शो के नायक सिंधिया ही थे लेकिन स्वागत रथ पर केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर की उपस्थिति ने सब कुछ बयां कर दिया। सिंधिया अपनी अलग लाइन अपनाने के बजाए सबको साथ लेकर  चलना चाहते हैं। मुरैना के चंबल राजघाट पुल से मप्र की सीमा में प्रवेश करने के साथ ही संवाद माध्यमों से चर्चा में सिंधिया ने साफ कर दिया कि वे सभी को साथ लेकर चलने के हिमायती हैं और हम सभी मिलकर अंचल, प्रदेश और देश का विकास करेंगे। साथ खड़े नरेन्द्र सिंह तोमर ने उनके इस संकल्प से सहमति जताई।
    पूरी तरह जमीनी राजनीति
    सिंधिया की कांग्रेस में सियासत का अंदाज जो भी रहा हो लेकिन भाजपा में वे पूरी तरह जमीन की राजनीति कर रहे हैं। वे जब मेला परिसर में पहुंचकर नगर के प्रबुद्धजनों से मिले तो उपनगर की एक वाटिका में मीसाबंदियों का सम्मान किया। अपनी कुलदेवी मांढरे की माता मंदिर पर पूजा के बाद बाहर निकलते वक्त जब स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे अनूप मिश्रा उन्हें बिना मास्क के दिखे तो खुद जेब से निकालकर उन्हें मास्क पहना दिया। पहले के दौरे में वे अपने धुर विरोधी रहे पूर्व सांसद जयभान सिंह पवैया के घर जाकर गिले शिकवे दूर कर ही चुके हैं। यह सच है कि भाजपा में व्यक्ति आधारित राजनीति के लिए ज्यादा गुंजाइश नहीं है, सिंधिया भी इस मर्यादा से आबद्ध हैं लेकिन वे इस हदबंदी से और आगे निकलकर खुद को पार्टी का जमीनी कार्यकर्ता साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे।  महाराजपुरा स्थित विमानतल के विस्तार की परियोजना के लिए मिली भूमि के निरीक्षण के बाद सिंधिया ने यही कहा कि मैं शिलान्यास नहीं लोकार्पण में विश्वास रखता हूं। उन्होंने विमानतल को पिता माधवराव सिंधिया व दादी विजयाराजे सिंधिया का स्वप्न बताया और कहा कि उस सपने को मैं जल्द पूरा करूंगा। अपने पूर्वजों को याद करने के बाद इस भूमि आवंटन के लिए वे केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का खास तौर पर शुक्रिया जताना नहीं भूले। सिंधिया के इस बदले रूप को देखकर निश्चित रूप से कांग्रेस पसोपेस में है।

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