
मुख्यमंत्री के तबादला आदेश के बाद भी नहीं किया जा रहा रिलीव
भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम । लोक शिक्षण में पदस्थ अपर संचालक कामना आचार्य के तबादला आदेश के मामले में पहले तो विभागीय मंत्री लाचार साबित हुए उसके बाद मुख्यमंत्री सचिवालय ने उनकी नई पदस्थापना का आदेश जारी किया तो उसका भी पालन नहीं हो पा रहा है। इस मामले में हालात यह हैं कि पूरी सरकार पर ही विभाग के अफसर भारी पड़ रहे हैं। उधर तबादला आदेश जारी होने के बाद भी वे अब भी संचानालय में कुर्सी पर जमी हुई हैं। दरअसल वे ऐसी अधिकारी हैं, जो बीते दो दशक से एक ही जगह पदस्थ हैं , लेकिन मजाल है की सरकार किसी की भी रही हो , कोई भी उन्हें संचानालय से बाहर भेज पाया हो। कुछ दिन पहले स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने लोक शिक्षण में पदस्थ अपर संचालक कामना आचार्य के ट्रांसफर के लिए प्रमुख सचिव स्कूल शिक्षा को नोटशीट लिखी, लेकिन उनकी नोटशीट को फाइलों में दबा दिया गया, इसके बाद फिर से उनके तबादला के लिए फिर से सीएम समन्वय से नोटशीट चलाई गई। इसके बाद कहीं जाकर उनका तबादला 29 अगस्त को लोक शिक्षण से पीजीबीटी कालेज में प्राचार्य के पद पर कर दिया गया। यह आदेश तो जारी कर दिया गया , लेकिन अब उन्हें रिलीव ही नहीं किया जा रहा है। ऐसा नहीं है की वे ऐसी पहली अफसर हैं , जिनकी नौकरी के दो दशक एक ही जगह पूरे हुए हों ,बल्कि ऐसे कई अन्य अफसर हैं। ऐसे ही दूसरे अफसर हैं संयुक्त संचालक देवभूषण प्रसाद । इनकी आधी नौकरी भी राज्य शिक्षा केंद्र में हो चुकी है। वे केन्द्र में बीते 22 वर्ष से पदस्थ हैं। खास बात यह है की उनका भी एक साल पहले तबादला इंदौर कर दिया गया था , लेकिन बाद में उनके द्वारा ट्रांसफर आदेश संशोधित करवा कर लोक शिक्षण के लिए करवा लिया गया , लेकिन छह माह बाद भी उन्हें रिलीव नहीं किया गया है। यही नहीं यहां पर यहां पर पदस्थ अशोक पारिख, उस्मान खान, जितेंद्र ठेकेदार, महेश मूलचंदानी, विभूति श्रीवास्तव, अभिलाषा शर्मा, शेखर सराठे, देवेंद्र सिसोदिया, दीपक वर्मा, आरके पांडे, अरविंद सिंह बुंदेला, बीबी गुप्ता समेत ऐसे कई नाम है, जो दस सालों से ज्याद समय से राज्य शिक्षा केंद्र में जमे हुए है। इनमें से कई के ट्रांसफर हुए, लेकिन अभी तक रिलीव नहीं किया गया।
जिलों की रैंकिंग में नहीं किया जा रहा सीएम के निर्देशों का भी पालन
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शासकीय शालाओं की रैंकिंग प्रणाली विकसित करने और सीएम डैशबोर्ड में प्रदर्शित करने के निर्देश दिए थे। जिस पर अमल करते हुए राज्य शिक्षा केंद्र ने बीती 20 मई को सभी 52 जिलों की रैंकिंग जारी कर दी थी। यह काम लोक शिक्षण संचालनालय को भी करना था। लोक शिक्षण को नवमीं से बारहवीं तक के सरकारी स्कूलों की रैकिंग जारी करना थी। करीब तीन माह का समय बीत जाने के बाद भी लोक शिक्षण ने अभी तक जिलों की रैकिंग जारी करना ही उचित नहीं समझा है।
बर्खास्तगी के बाद स्टे लेकर फिर लिया बजट का जिम्मा
राज्य शिक्षा केंद्र अनियमितताओं का अड्डा बन चुका है। जितेंद्र ठेकेदार को वित्तीय अनियमितता में सेवा से बर्खास्त किया गया था। इसके बाद वे करीब साढ़े तीन साल बाद कोर्ट से स्टे लेकर आए। जिसके बाद उन्हें चीफ इंजीनियर का जिम्मा दे दिया गया है। सिविल काम में राज्य शिक्षा केंद्र का करीब 23 फीसदी बजट होता है। इसके बाद वे इस वजह के प्रभारी बन चुके हैं। कहा तो यह भी ता रहा है की उनके पास बीई की डिग्री तक नहीं है।
सवा साल बाद भी नहीं किया रिलीव
तबादला होने के बाद भी शिक्षा विभाग के अफसर उन्हें रिलीव न कर मनचाही जगह पर पदस्थ किए रहते हैं। इसका एक और उदाहरण हैं लोक शिक्षण संचालनालय की समग्र शिक्षा अभियान शाखा में पदस्थ सहायक समन्वयक सच्चिदानंद प्रसाद । उनका तबादला सवा साल पहले शाजापुर के हायर सेकेंडरी स्कूल में प्राचार्य पद पर हुआ था , लेकिन उन्हें अब तक रिलिविंग ही नहीं दी जा रही है। शिक्षा विभाग में ऐसे कई मामले हैं जिनमें स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारी नियमों को ही ताक पर रख कर मनमानी जारी रखे हुए हैं।