सैटेलाइट से होगी वनाधिकार पट्टो की निगरानी

सैटेलाइट
  • जंगल पर कब्जे और कटाई का मिलेगा तुरंत अलर्ट

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र ने वन संरक्षण में ऐतिहासिक कदम उठाते हुए देश का पहला एआई-आधारित रियल-टाइम वन अलर्ट सिस्टम लागू किया है। यह सिस्टम सैटेलाइट इमेज, मोबाइल फीडबैक और मशीन लर्निंग की मदद से वनों में अतिक्रमण, अवैध भूमि उपयोग और पर्यावरण क्षरण का पता लगाएगा। वहीं वनाधिकार पट्टों की बंदरबाट पर सरकार सैटेलाइट इमेजरीज से रोक लगाएगी। विधानसभा में ध्यानाकर्षण के जबाव में सरकार की इस घोषणा के बाद इसके आदेश जारी करने की मांग सामने आई है। वनाधिकार पात्रता निर्धारित करने सैटेलाइट इमेजरीज को आधार बनाने पर खुशी जाहिर करते हुए सेवानिवृत्त आईएफएस अधिकारी आजाद सिंह डबास ने इसके मद्देनजर मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को पत्र भेजा है।
गौरतलब है कि मप्र में वनाधिकार पट्टों पर लंबित 2.73 लाख दावों के निपटारे के लिए मुख्यमंत्री द्वारा 31 दिसंबर 2005 की सैटेलाइट इमेजरी को आधार बनाने की घोषणा की गई है। इसके पीछे तर्क दिया गया है कि इससे असली दावेदार और अतिक्रमणकारी की पहचान में जहां आसानी होगी वहीं जरूरतमंद को न्याय भी सुनिश्चित हो सकेगा। हालांकि कांग्रेस के कुछ जनजातीय विधायक इसके विरोध में आ गये हैं। बावजूद इसके वन विभाग के सेवानिवृत्त अधिकारी इसे जनहित में बताते हुए इसके पक्ष में हैं और इसे प्रभावी बनाने सरकार से आदेश जारी करने की मांग करने लगे हैं। सेवानिवृत्त आईएफएस अधिकारी डबास ने बताया कि सरकार का यह निर्णय बचे-हुए वनों को बचाने में मददगार साबित होगा। इसकी जरूरत पिछले 20 वर्षों से बनी हुई थी। इसके आदेश जल्द जारी किये जाएं इसके लिये मुख्यमंत्री को पत्र भेजा गया है। प्रदेश में 3653.30 वर्ग किमी भूमि 2,69,215 को व्यक्तिगत और 5923.04 वर्ग किमी भूमि 27,976 सामुदायिक वनाधिकार के नाम पर जा चुकी है। इस बार करीब हजार वनगांवों के करीब 2 लाख वनवासियों में करीब 5 हजार वर्ग किमी जमीन बंटने का अनुमान है। प्रदेश में 77073 वर्ग किमी वन भूमि है।
व्यस्था लागू करने वाले मप्र इकलौता राज्य
उपग्रह चित्र यानी सैटेलाइट इमेजरी के जरिये वनाधिकार पट्टे देने वाला मप्र पहला राज्य बनने जा रहा है। जानकारी के मुताबिक इससे पहले किसी अन्य राज्य में पात्रता सुनिश्चित करने इसका इस्तेमाल नहीं किया गया है। कांग्रेस विधायक हीरालाल अलावा को सरकार के इन नवाचार पर ऐतराज है। सोशल मीडिया के माध्यम से यह सामने भी आया है। उनका सवाल है कि क्या जंगलों में पीढिय़ों से रहने वाले जनजातियों का हक अब उपग्रह से तय किया जाएगा। डिजिटल न्याय के नाम पर जमीनी सच्चाई को ठुकराया जा रहा है। वन अधिकार पत्र धारक शासकीय योजनाओं के लाभ से अभी भी दूर हैं। जानकारी के मुताबिक अब तक 55 हजार 357 वन अधिकार पत्र धारकों को ही कपिलधारा कूप, 58 हजार 796 को भूमि सुधार, मेंढ़-बंधान, 61 हजार 54 को पक्का आवास व प्रधानमंत्री आवास, 1 लाख 86 हजार 131 को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का लाभ मिल पाया है।
सैटेलाइट इमेजरी से रूकेगा अतिक्रमण
सैटेलाइट इमेजरी से माफिया पर भी लगाम लगेगी, तो अपने प्रभाव के बल पर जनजातियों को आगे कर वनों में अतिक्रमण कराते हैं। यह वनकर्मचारियों व अधिकारियों पर अनावश्यक दबाव नहीं बना पाएंगे। अवैध पटटों की पहचान सुनिश्चित होगी और बेदखली की कार्रवाई भी शुरू की जा सकती है। सैटेलाइट इमेजरी से जमीन की सही स्थिति और उपयोग का पारदर्शी रिकॉर्ड रखा जा सकता है। इससे पट्टा वितरण की प्रक्रिया में भ्रष्टाचार और मानव त्रुटियों की संभावना कम होगी। सैटेलाइट डेटा के आधार पर यह साबित करना आसान होगा कि जमीन पर खेती या पौधारोपण हुआ है या नहीं।

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