
- विभिन्न विभागों की रिपोर्ट के बाद सरकार जुटी कवायद में
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में रेत का अवैध खनन बड़ी समस्या बना हुआ है। खासकर प्रतिबंधित क्षेत्रों में जिस तरह अवैध खनन हो रहा है उसको लेकर सरकार चिंतित है। प्रदेश में अवैध खनन को समाप्त करने के लिए कुछ क्षेत्रों में इसे वैध बनाने की योजना बनाई जा रही है। खासकर चंबल अभयारण्य के कुछ हिस्सों में चंबल और इसकी सहायक नदियों पर रेत खनन को वैध करने की तैयारी की जा रही है। गौरतलब है कि राज्य सरकार ने चंबल से वैधानिक रेत खनन की 3 साल पहले तैयारी कर ली थी। इसके बाद से लगातार बैठकें हो रही हैं। पिछली सरकार में अधिकारी किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे। अब फिर से अधिकारियों ने माथापच्ची शुरू की है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय और राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की गाइडलाइन की वजह से पीछे हट गए हैं। न्यायालय के अनुसार चंबल अभयारण्य के 1 किमी के बाहर भी किसी तरह का खनन या अन्य गतिविधियां नहीं हो सकतीं। यही वजह है कि 292 हेक्टयर भूमि चंबल अभयारण से गैर-अधिसूचित कराने के बाद भी राज्य सरकार रेत के वैधानिक खनन का रास्ता नहीं बना पा रही है। दरअसल, चंबल नदी के किनारे रेत का बड़ी मात्रा में अवैध उत्खनन होता है। सर्वोच्च न्यायालय से लेकर राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने चंबल अभयारण्य क्षेत्र में किसी भी तरह के उत्खनन पर सख्त पाबंदी लगा रखी है। इसके बावजूद रोज जमकर अवैध उत्खनन हो रहा है। चंबल को इस अवैध उत्खनन के दाग से मुक्ति दिलाने के लिए प्रदेश सरकार रेत के वैधानिक खनन का रास्ता तलाश रही है। इसके लिए अलग-अलग विभागों के अधिकारी कई बार बैठकें कर चुके हैं, लेकिन अभी तक रेत के वैधानिक खनन के रास्ते तक नहीं पहुंच पाए हैं। राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य के दायरे में प्रदेश के तीन जिले श्योपुर, भिंड और मुरैना आते हैं। जिसमें बड़ा हिस्सा मुरैना का है। अभयारण्य वाले हिस्से में ही तीनों जिलों में रेत का जमकर अवैध उत्खनन होता है। मुरैना में इसकी मात्रा ज्यादा है। इन क्षेत्रों से वैधानिक तौर पर रेत निकालने के लिए सरकार ने 2 साल पहले चंबल अभयारण्य क्षेत्र से 292 हेक्टयर भूमि को गैर-अधिसूचित घोषित कर दिया है। जिसमें 40.59 हेक्टेयर श्योपुर, 20.90 हेक्टेयर भिंड और 230.90 हेक्टेयर भूमि मुरैना की शामिल है। मुरैना में चंबल से रेत का अवैध उत्खनन राजघाट (पिपरई) और बरवासिन घाट से होता है। इसी क्षेत्र की 230.90 हेक्टयर भूमि को रेत के वैध खनन के लिए गैर-अधिसूचित क्षेत्र घोषित किया है।
3 साल पहले शुरू हुई थी कवायद
वन विभाग के अनुसार 13 जुलाई 2021 को प्रस्ताव पर काम करना शुरू किया गया था। दिसंबर 2021 में केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को सौंपी गए प्रस्ताव में राज्य ने कहा था कि, पांच हिस्सों को खोलने से अवैध खनिजों के संघर्ष कम होंगे, स्थानीय समर्थन हासिल होगा और रॉयल्टी से राजस्व प्राप्त होगा जिसमें से एक चौथाई का उपयोग सुरक्षा उपायों को मजबूत करने के लिए किया जा सकता है। वहीं दूसरी ओर इस प्रस्ताव में जल्द से जल्द कानूनी खदानों के ठेकेदारों को उनके पट्टे वाले क्षेत्र से 4 गुना सटे अभयारण्य भूमि पर अवैध खनन की जांच के लिए जिम्मेदार बनाने की मांग की गई है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो उनके पट्टे भी समाप्त कर दिए जाएंगे। 3 साल पहले वन विभाग के अधिकारी अमित बसंत निकम चंबल अभ्यारण्य से 292 हेक्टयर भूमि गैर अधिसूचित घोषित करने की विस्तृत रिपोर्ट दे चुके हैं। जिसमें बताया गया कि यह भूमि वन विभाग की नहीं है। यह न किसी परियोजना में शामिल हैं न ही यहां पुनर्वास परियोजना है। यह जनजाति प्रभाव वाला क्षेत्र भी नहीं है। आवासीय क्षेत्र में भी यह शामिल नहीं है। यहां पेड-पौधे नहीं है, खुला मैदान है। इससे चंबल अभ्यारण्य के जीवों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। खास बात यह है कि रिपोर्ट के अनुसार इस क्षेत्र में किसी तरह के अतिक्रमण के निशान भी नहीं मिले हैं। कोई धार्मिक या ऐतिहासक स्थल नहीं है। इन्हीं आधारों पर सरकार ने भूमि को गैर अधिसूचित घोषित किया। ऐसा करने से रेत का वैधानिक खनन होगा, जिससे राज्य को राजस्व और स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा।