
- अस्तित्व पर खतरा, जलीय जीवों का जीवन भी संकट में
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। ग्वालियर -चम्बल अंचल की जीवनदायनी माने जाने वाली चंबल नदी इन दिनों अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। इसकी वजह है इलाके का रेत माफिया। इस माफिया पर सरकार से लेकर शासन तक नकेल कसने में अक्षम साबित हो रहा है। इसकी वजह है अफसरों व नेताओं का रेत माफिया से गठजोड़ होना। यहां का रेत माफिया कितना असरकारक है कि हर साल औसतन वह आधा दर्जन लोगों की जान ले लेता है, फिर भी अवैध रेत खनन और उसके परिवहन पर कोई रोक नहीं लग पाती है। इसका असर यह है कि नदी के साथ ही उसमें पाए जाने वाले जलीय जीवों के अलावा घडिय़ाल और डॉल्फिन सेंचुरी के अस्तित्व पर ही संकट आ चुका है। यह हाल तब बने हुए हैं जबकि, अदालत और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) भी रेत खनन पर रोक लगा चुका है। रेत माफिया ने बेतहाशा खनन कर चंबल का सीना जगह-जगह छलनी कर दिया है। श्योपुर, सबलगढ़ से लेकर अंबाह, पोरसा और उधर भिंड में अटेर उसेद घाट तक माफिया इस कदर चंबल को खोदने में लगे हैं कि कई स्थानों पर तो नदी की धारा ही टूटने के कगार पर पुहंच चुकी है। उल्लेखनीय है कि एक दशक से भी अधिक समय से चंबल में रेत खनन पर न्यायालय की रोक है और एनजीटी ने भी मप्र राजस्थान, और उत्तर प्रदेश की सरकारों को चंबल में रेत के खनन को पूरी तरह रोकने के निर्देश दिए हुए हैं। एनजीटी ने तो तीनों राज्यों के डीजीपी, मुख्य सचिव, सहित ग्वालियर, भिंड, मुरैना, धौलपुर, भरतपुर, आगरा, इटावा, झांसी के कलेक्टरों, और पुलिस अधीक्षकों को अवैध खनन रोकने, निगरानी करने और खनन माफिया पर प्रभावी कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। लेकिन आज तक कुछ भी नहीं हुआ है और उलटे खनन लगातार बढ़ता ही जा रहा है।
इन जलीय जीवों को खतरा
चंबल अभयारण्य में बेतहाशा ढंग से चल रहे रेत खनन से यहां बनाए गए घडिय़ाल डॉल्फिन व गैंगटिक कछुओं के अभयारण्य को जबरदस्त खतरा है। घडिय़ाल और कछुए तो रेत पर ही अंडे देते हैं। लेकिन खनन से उनके अंडे नष्ट हो रहे हैं। उधर खनन से नदी का पानी भी प्रदूषित हो रहा है जिससे डॉल्फिन भी मुश्किल में है, क्योंकि वह साफ पानी में ही रहतीं हैं। कुल मिलाकर चंबल में अवैध खनन, हमें बड़े पर्यावरणीय संकट की ओर ले जा रहा है। पर्यावरणविदों की मानें तो चबल अभयारण्य में रेत के खनन से पर्यावरण को लगातार खतरा बढ़ रहा है। इससे नदी के तल का न केवल तेजी से क्षरण हो रहा है बल्कि उसकी गहराई भी कम हो रही है। यही वजह है कि अनेक स्थानों पर नदी का प्रवाह टूट रहा है। अवैध खनन से जलीय जीवों के आवास नष्ट हो रहे हैं। इतना ही नहीं पानी की गुणवत्ता में भी कमी आ रही है। विशेषज्ञों की मानें तो अवैध खनन से चंबल और उसके आसपास की मिट्टी की गुणवत्ता भी खराब हुई है। पारिस्थितिकी तंत्र पर भी नकारात्मक असर देखने को मिल रहा है। यदि समय रहते खनन नहीं रुका तो नदी का अस्तित्व समाप्त होते देर नहीं लगेगी।
क्या कहते हैं पर्यावरणविद
इस मामले में पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी सेंचुरी अथवा अभयारण्य में खनन, अतिक्रमण, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन नहीं करते हैं। चंबल सेंचुरी जलीय जीवों के लिए बना है। इसे सेंचुरी बनाकर वहीं प्रवास किए गए है कि उनके रहवास और जीवन पर कोई प्रभाव न पड़े। घडिय़ाल अतिसंकट ग्रस्त प्रजाति है, वह चंबल में ही पाई जाती है। नव प्रजाति के कछुए भी मिलते हैं, वे अंडे रेत पर देते हैं। रेत और पानी उनका घर है। रेत नहीं होगी तो वह अंडे कहां देंगे? रेतीय क्षेत्र ऐसा हो जहां उसके आसपास कोई बाधा न हो। शांत क्षेत्र होना चाहिए। रेत का खनन होगा तो घडिय़ाल सहित अन्य प्रजातियों के आवास क्षेत्र समाप्त हो जाएगा। वह अंडे नहीं दे पाएंगे और धीरे-धीरे नष्ट होने लगेगे। कुछ प्रजाति के पक्षी जैसे स्कीनर रेत में ही अंडे देता है, ब्लैक बेली टर्न, रिवर टर्म पक्षी भी चंबल के लिए महत्वपूर्ण हैं, ये भी रेत पर अंडे देते हैं। रेत जाएगी तो इनके जीवन पर भी प्रभाव पड़ेगा। इसलिए इन जलीय जीवों को बचाने के लिए रेत उत्खनन को पूरी तरह से रोकना अति आवश्यक है।