
भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश देश के उन राज्यों में शामिल है, जहां पर सर्वाधिक अवैध रुप से सरकार व प्रशासन की नाक के नीचे से रेत खनन और उसका परिवहन होता है। यही वजह है कि अब प्रदेश में इसका ठेका लेने वाले नहीं मिल रहे हैं, मिलते भी हैं तो वे कुछ समय बाद ही ठेका छोड़कर भाग जाते हैं। हालत यह है कि प्रदेश में कोरोना के चलते जहां निर्माण गतिविधियों में बेहद मंदी के हालात बने रहे, वहीं अवैध रेत उत्खनन पर रोक न लगने से परेशान होकर अब आधा दर्जन ठेकेदारों ने सरकार को खदानें छोड़ने का प्रस्ताव भेज दिया है।
दरअसल इन हालातों के चलते ठेकेदारों को तय रॉयल्टी की राशि भी नहीं मिल पा रही है। ऐसे में अब खदानें छोड़ना ही उचित मान रहे हैं। हालत यह है कि पहले ही तीन जिलों में रेत खनन का काम किसी ठेकेदार के पास नहीं है, ऐसे में आधा दर्जन और ठेकेदार रेत खदानों के ठेके छोड़ने का पूरा मन बना चुके हैं। दरअसल कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के समय बनाई गई रेत ठेकों और शराब की नीति की वजह से इन दोनों ही क्षेत्रों में बड़े ठेकेदारों का प्रभुत्व कायम हो गया। जब उन्हें कम फायदा होता है तो वे या तो हाथ खड़ा कर देते हैं या फिर अपनी मांगे सरकार पर थोपने लगते हैं। कमलनाथ सरकार ने इन दोनों ही क्षेत्रों के लिए बड़े- बड़े क्लस्टर बना दिए थे, जिसकी वजह से छोटे रेत कारोबारियों के सामने पहले से ही रोजी-रोटी का संकट बना हुआ है। अब अपने एकाधिकार के चलते यही रेत कारोबारी धीरे-धीरे मनमाफिक मुनाफा न होने की वजह से ठेका छोड़ने की तैयारी कर चुके हैं। इसके पहले भी रॉयल्टी की किस्त जमा नहीं करने की वजह से रायसेन, अलीराजपुर और मंदसौर के ठेके निरस्त किए जा चुके हैं।
अब बीते तीन माह की रॉयल्टी जमा कराने से बचने के लिए जिन ठेकेदारों ने ठेका छोड़ने का प्रस्ताव खनिज निगम को दिया है वे सभी कमलनाथ सरकार में एक बेहद पॉवरफुल अफसर के बहुत ही करीबी माने जाते हैं। इन ठेकेदारों ने इसकी जो वजह बताई है उसके मुताबिक उनके लिए हर तीन माह में जमा कराई जाने वाली रॉयल्टी निकलना भी मुश्किल बना हुआ है। यही नहीं धीरे-धीरे अब ठेकदरों द्वारा रॉयल्टी का भुगतान करना भी बंद कर दिया गया है। यह प्रस्ताव ऐसे समय दिय गया है जब बारिश के चलते प्रदेश में रेत खनन का काम अधिकृत रुप से बंद हो चुका है और कोरोना लॉकडाउन खुलने से अब निर्माण काम धीरे-धीरे गति पकड़ रहा है। इसकी वजह से रेत की मांग में अब तेजी से वृद्धि हो रही है। ठेकेदारों के रॉयल्टी जमा नहीं किए जाने से अब प्रदेश सरकार भी परेशान है। रॉयल्टी जमा नहीं करने की वजह से सरकार की आय प्रभावित हो रही है। हालांकि खनिज विभाग के अफसरों का मानना है कि अगर रेत ठेकेदारों को भी शराब ठेकेदारों की तरह कुछ राहत दी जाए तो उन्हें ठेके संचालित करने में आसानी रहेगी। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में पहली बार ऐसा हुआ कि पांच गुना दाम पर रेत खदानें नीलाम हुई है। दरअसल ठेकेदारों ने आपसी प्रतिस्पर्धा के चलते बोली लगाते समय ध्यान ही नहीं दिया और छोटी-छोटी खदानों की बोली भी करोड़ों में चली गई। खदानें लेने के बाद भी कागजी औपचारिकता में लंबा समय लग गया और उसके बाद कोरोना संक्रमण ने दस्तक दे दी। इस दौरान लॉकडाउन भी लगा। ठेकेदार रेत की चोरी रोकने में भी नाकाम रहे हैं।
रेत नीति की कमियां दूर करेगी शिव सरकार
प्रदेश में पिछली कमलनाथ सरकार के कार्यकाल में बनी प्रदेश की रेत खनन नीति को शिव सरकार ने संशोधित करने का मन बनाया है। जल्द ही इसमें संशोधन किया जा सकता है। दरअसल नाथ सरकार में बनी इस नीति में कई कमियां है। इन कमियों से न तो सरकार को फायदा है और न ही ठेकेदार खुश हैं।
दो जिलों को अब तक नहीं मिले ठेकेदार
खास बात यह है कि प्रदेश के दो जिले उज्जैन व आगर मालवा में तो अबतक रेत के ठेके ही नहीं हो सके हैं, इसकी वजह है पांच बार टेंडर जारी करने के बाद भी रेत ठेकेदारों द्वारा उसमें रुचि नहीं लेना। दरअसल इन दोनों ही जिलों में खनिज निगम ने जितनी रेत के भंडार का अनुमान लगाया है उतनी रेत मौके पर है ही नहीं। यही वजह है रेत ठेकेदार जैसे ही खदान देखते हैं, वे तभी तय कर लेते हैं कि उन्हें ठेका नहीं लेना है।
क्लस्टर की नीति भी बनी मुसीबत
दरअसल नाथ सरकार के समय एक अफसर द्वारा अपने चहेते ठेकेदारों को उपकृत करने के लिए जिला क्लस्टर बनाने की नीति तैयार कराई गई थी। इस नीति की वजह से इस व्यवसाय से जुडेÞ छोटे-छोटे ठेकेदारों को बाहर होना पड़ गया। अगर सरकार इसमें बदलाव कर दे तो रोजगार के साथ सरकार को इस समस्या से भी निजात मिल जाएगी।
वसूले जा रहे मनमाने दाम
प्रदेशभर में रेत खदानें बंद होने से रेत के दाम आसमान छू रहे हैं। खदानों से चोरी-छिपे निकल रही रेत के व्यापारी मनमाने दाम वसूल रहे हैं। इस सीजन में 25 से 27 रुपये फीट बिकने वाली रेत वर्तमान में 60 से 75 रुपये फीट बिक रही है। यह लॉकडाउन नहीं, सिस्टम की नाकामी का असर है। जिसका फायदा बिचौलिए उठा रहे हैं। राजधानी सहित प्रदेशभर में रेत महंगी हो गई है और यह स्थिति अगले छह माह रहने वाली है। क्योंकि बारिश के चलते 15 जून से खदानों से रेत का उत्खनन बंद हो गया है। ऐसे में बिचौलिए भंडारित रेत को मनमाने दाम पर बेचेंगे। वर्तमान में नर्मदा सहित अन्य नदियों से चोरी-छिपे जमकर रेत निकाली जा रही है। यह रेत भंडारित भी हो रही है और बेची भी जा रही इसलिए व्यापारियों ने मनमाने दाम वसूलना शुरू कर दिया है। खास बात यह है कि चोरी की रेत कई थानों व पुलिस चौकियों के सामने से बेधड़क परिवहन की जा रही है।
मप्र में रेत खदानें
- 1266 कुल रेत खदानें हैं मप्र में।
- 160 खदानें सिर्फ नर्मदा नदी में।
- 1106 खदानें अन्य नदियों पर संचालित।