
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। भाजपा से जुड़ी दो कट्टर हिन्दुत्व चेहरे की पहचान रखने वाली साध्वियां इन दिनों अपनी ही पार्टी से नाराज बताई जा रही हैं। इसकी वजह है पार्टी द्वारा उन्हें इस बार लोकसभा का प्रत्याशी नहीं बनाया जाना। इसके बाद से अब माना जा रहा है कि उनका राजनैतिक वनवास पूरी तरह से शुरु हो चुका है। यह बात अलग है कि उन्होंने अपनी नाराजगी खुलकर जताने की जगह लिए अलग तरह का तरीका चुना है। भोपाल की मौजूदा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर का दर्द जरूर टिकट कटने के बाद खुलकर झलक चुका है। वे टिकट कटने की वजह मीडिया को मानकर उस पर गुस्सा निकाल चुकी हैं। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती भी प्रत्याशियों की सूची घोषित होने के बाद उत्तराखंड चली गई हैं। उमा भारती ने बीता लोकसभा चुनाव भी नहीं लड़ा था। इसके बाद से वे ं खासतौर पर भोपाल में कई मामलों में अपनी सक्रियता दिखाती रही हैं। यह बात अलग है कि जिन मामलों को लेकर वे सक्रिय रहीं हैं, वह सक्रियता चर्चा में बने रहने वाले अधिक रहे हैं। इसका फायदा उन्हें अपने भतीजे को मंत्री बनाने में जरूर मिला। इस दौरान उन्हें न तो पार्टी की बैठकों में देख गया और न ही वे पार्टी के सार्वजनिक कार्यक्रमों में नजर आईं। यह बात अलग है कि वे हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में जरूर कुछ प्रत्याशियों के समर्थन में चुनाव प्रचार करती नजर आयीं। इस दौरान उनके द्वारा इस बार लोकसभा चुनाव लड़ने का दावा जरूर किया जाता रहा, जिससे राजनैतिक गलियारों में यह चर्चा रही कि एक बार फिर से वे प्रदेश राजनीति में वापसी करना चाहती हैं। प्रत्याशियों की घोषणा के बाद उन्होंने कहा कि वे गंगा मिशन को समय देना चाहती है, सांसद रहते मिशन को समय नहीं दे पाती हैं। इसके बाद उमा उत्तराखंड यात्रा पर निकल गईं। इधर भोपाल से टिकट कटने पर प्रज्ञा भी नाखुश दिखीं। प्रत्याशियों की घोषणा के बाद उन्होंने सीहोर में अवैध शराब दुकान पर ताला जड़ दिया। उन्होंने भाजपा विधायक सुदेश राय पर अवैध शराब दुकान संचालित कराने का आरोप लगाया। इस मामले में प्रज्ञा को पीछे हटना पड़ा।
दोनों साध्वी की कर्मस्थली रही भोपाल
मप्र की राजनीति में उमा के बाद भाजपा ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को 2019 में भोपाल लोकसभा से उतारा था। हालांकि सांसद बनने के बाद प्रज्ञा सिंह ठाकुर भाजपा में खुद को उमा भारती के विकल्प के तौर पर स्थापित नहीं कर पाईं। यही वजह है कि अब दोनों ही साध्वियों को चुनावी राजनीति से खुद दूर होना पड़ा है। यहां बता दें कि 1999 के लोकसभा चुनाव में उमा भारती भी भोपाल से सांसद बनीं। इसके बाद उनका मप्र की राजनीति में उनका कद तेजी से बढ़ा था। इन दोनों साध्वियों को टिकट मिलने की वजह भी उनका कट्टर हिंदुत्व का चेहरा होना रहा है, लेकिन विकास के मामलों में उनकी छवि कभी अच्छी नहीं बन सकी है।