आरजीव्हीपी विवि ने हर कंप्यूटर पर किया 23 हजार रुपए अधिक भुगतान

आरजीव्हीपी विवि
  • पांच दर्जन कंप्यूटर की खरीदी में 15 लाख रुपए से अधिक का लगा चूना  …

    भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम।
    मप्र का एक मात्र राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विवि हमेश अपनी गड़बडियों को लेकर चर्चा में बना रहता है, इसके बाद भी सरकार प्रबंधन पर नकेल कसने में नकाम बनी हुई है। अब ताजा मामला कम्प्यूटर की खरीदी से जुड़ा हुआ है। विश्वविद्यालय प्रबंधन ने हाल ही में पांच दर्जन कम्प्यूटर की खरीदी की है।
    इन कम्प्यूटर की खरीदी में हर कम्प्यूटर के लिए विवि द्वारा तय मूल्य से 15 हजार रुपए से अधिक का भुगतान कर दिया। इसकी वजह से अब तो नियमों के विपरीत जाकर की गई। इस खरीदी में  विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार डॉ. आरएस राजपूत की भूमिका ही सवालों के घेरे में आ गई है। दरअसल इन कम्प्यूटरों की खरीदी के लिए रजिस्ट्रार राजपूत ने आरजीपीवी के यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (यूआइटी) का डायरेक्टर रहते गवर्नमेंट ई-मार्केट (जेम) के माध्यम से 2018 में दो अलग-अलग आदेश जारी किए। उस समय तो इन  कम्प्यूटर की सप्लाई नहीं हुई। इसके बाद जब डॉ. राजपूत जब आरजीपीवी में रजिस्ट्रार बने तो उनके द्वारा वर्ष 2020 में करीब दो वर्ष पुराने आदेश के अनुसार कम्प्यूटर सप्लाई कराकर उनका भुगतान करा दिया गया। इसमें खास बात यह है कि इन कम्प्यूटरों की खरीदी के लिए वर्ष 2018 में जिस समय आदेश जारी किया गया था , तब एक  कम्प्यूटर की कीमत 86 हजार 350 रुपए थी।
    अब जब उनकी सप्लाई की गई है तो उनकी कीमत कम होकर 63,290 रुपए प्रति कम्प्यूटर ही रह गई। इसके बाद भी भुगतान 86 हजार 350 रुपए प्रति कंप्यूटर के हिसाब से कर दिया गया।
    ऐसे में हर एक कम्प्यूटर पर 23 हजार 60 रुपए अधिक का भुगतान किया गया। इस अधिक राशि के भुगतान की वजह से विवि को करीब 15 लाख रुपए से अधिक की चपत लग गई।
    विभिन्न स्तर पर हुई शिकायत
    इस मामले का खुलासा होने के बाद अब इस मामले की शिकायत राज्य सरकार के तकनीकी शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव, विभागीय मंत्री, मुख्य सचिव, मुख्यमंत्री कार्यालय और राजभवन के अलावा लोकायुक्त और इओब्डल्यू में की गई है। इसके बाद राजभवन ने इस मामले में संज्ञान लेना शुरू कर दिया है। इसके बाद भी विवि प्रशासन इस मामले को दबाने के प्रयासों में लगा हुआ है। अब इस मामले में राजभवन द्वारा विवि के कुलपति को पत्र लिखा जा चुका है। इसके बाद भी इस मामले में विवि प्रबंधन स्वतंत्र रूप से जांच कराने की जगह परीक्षण के नाम पर मामले को रफा दफा करने के प्रयासों में लगा हुआ है।
    अधीनस्थ अफसर को दिया जांच का जिम्मा
    इस आर्थिक अनियमितता के मामले में रजिस्ट्रार डॉ.राजपूत पर आरोप लगने के बाद भी विवि प्रबंधन ने मामले में परीक्षण कराने का जिम्मा उनके ही अधीनस्थ डिप्टी रजिस्ट्रार डॉ. प्रभात पटेल को परीक्षण करने के लिए बनाई गई समिति का बना दिया है। इनके अलावा इस समिति में जिन चार अफसरों को सदस्य बनाया गया है वे भी आरोपी रजिस्ट्रार के अधीन कार्यरत अधिकारी और असिस्टेंट प्रोफेसर्स हैं। इसमें भी खास बात यह है कि इस समिति के गठन का आदेश भी रजिस्ट्रार राजपूत द्वारा ही जारी किया गया है।  4 सितंबर 2020 को राजपूत को इस विवि का रजिस्ट्रार नियुक्त किया गया। इसके कुछ दिन बाद ही 2018 के आदेशों के तहत विवि में कम्प्यूटर सप्लाई की प्रक्रिया शुरू करवा दी गई। जिसके लिए रजिस्ट्रार ने 26 सितंबर 20 को तकनीकी समिति गठित कर दी। इसके बाद एक माह में ही अक्टूबर 2020 में उसके लिए भुगतान कर दिया गया।  वर्ष 2018- 19 में कंप्यूटर सप्लाई नहीं होने के पीछे जो कारण बताया गया उसमें कहा गया है कि कंप्यूटर प्रदाय करने वाली फर्म के बार-बार संपर्क करने के बाद भी यूआईटी व विवि के ही लोगों ने सप्लाई नहीं ली।

Related Articles