
- बीते चुनाव में कांग्रेस से मिल चुकी है मात …
भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश की भाजपा सरकार लगातार आदिवासी वर्ग के विकास के लिए दावे व वादे करते नहीं थकी है, लेकिन वास्तविकता में उनका लाभ इस वर्ग को नहीं मिल सका है, जिसका खामियाजा भाजपा को बीते चुनाव में उठाना पड़ा था। इसकी वजह से ही भाजपा को सत्ता से बाहर होना पड़ा था। अगर प्रदेश की आरक्षित सीटों की बात करें तो इनकी संख्या 82 है। इनमें से भाजपा महज 25 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी थी। इसके उलट 2013 के चुनाव में भाजपा ने 53 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
कांग्रेस को 2013 की तुलना में बीते चुनाव में 28 सीटों का फायदा हुआ था, जिसकी वजह से ही वह डेढ़ दशक बाद सत्ता में वापसी करने में सफल हुई थी। प्रदेश में सत्ता की सीढ़ी एससी-एसटी वर्ग के मतदाता ही हैं। प्रदेश में एक बार फिर से सत्ता पाने के लिए भाजपा को सुरक्षित सीटों का तिलिस्म तोड़ना होगा। बीते विधानसभा चुनाव में भाजपा इनमें से एक तिहाई से भी कम सीटों पर जीत हासिल कर पाई। साल 2013 के चुनाव में सुरक्षित सीटें ही भाजपा की ताकत थीं। अगर इस वर्ग की बात करें तो प्रदेश में कुल 47 विधानसभा सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित है, इसके अलावा इन्हे मिलाकर 84 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां आदिवासियों का दबदबा है। मप्र में 230 विधानसभा सीटे हैं, यानी ये 84 सीटे विधानसभा चुनाव जीताने में निर्णायक साबित होती है, लिहाजा कोई भी पार्टी आदिवासियों को नाराज कर इन सीटों को खतरे में नहीं डालना चाहती।
जिसको मिला साथ उसकी बनी सरकार
प्रदेश में साल 2003 में दिग्विजय सिंह की सरकार थी, 2003 में जब चुनाव हुए तो आदिवासी वोट बैंक भाजपा के साथ आ गया और भाजपा को उस समय आदिवासियों के लिए आरक्षित 41 सीटों में से 37 सीटों पर जीत मिली थी, नतीजा दिग्विजय सरकार सत्ता से बाहर हो गई और भाजपा के हाथ में सरकार आ गई। इसके बाद 2008 के चुनाव में भी आदिवासियों ने भाजपा का साथ दिया। परिसीमन के चलते आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 41 से बढक़र 47 हो गई थी। इस चुनाव में भाजपा को 47 सीटों में से 29 सीटों पर जीत मिली थी। इसकी वजह से एक बार फिर भाजपा को ही सत्ता में रहने का मौका मिला। इसके बाद जब 2013 में चुनाव हुए तो भाजपा को फिर 47 में से 31 सीटों पर जीत मिली। नतीजा प्रदेश में तीसरी बार भाजपा की सरकार बनी, लेकिन 2018 के चुनाव में आदिवासी वोट बैंक ने पाला बदल लिया और कांग्रेस का साथ दिया। इसकी वजह से कांग्रेस को 30 सीटों पर जीत मिली, एक सीट निर्दलीय के खाते में गई, जबकि भाजपा के खाते में 16 सीटें ही आई।
भाजपा ने उठाए कई कदम
आदिवासियों के बीच अपना जनाधार बनाने के लिए शिवराज सरकार ने पेसा एक्ट लागू किया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खुद सभाओं को संबोधित किया और आदिवासियों के बीच पहुंचकर उन्हें पेसा एक्ट के बारे में जानकारी दी। इस कानून के तहत आदिवासी क्षेत्रों में ग्राम सभा की स्थापना करने का प्रावधान किया गया और स्थानीय सहित अन्य मामलों में निर्णय लेने की अनुमति दी गई। इसके अलावा प्रदेश में वीरांगना रानी दुर्गावती गौरव यात्रा निकाली।