
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण का मामला ऐसा उलझा है की पिछले पांच साल से पदोन्नति नहीं हो पा रही है। इस कारण कई विभागों का कैडर गड़बड़ा गया है। इनमें राज्य प्रशासनिक सेवा का कैडर भी प्रभावित हुआ है। प्रदेश में राज्य प्रशासनिक सेवा के 7873 पद स्वीकृत हैं। इनमें से 7250 पद वर्ष 2016 से प्रमोशन नहीं मिलने के कारण भरे नहीं जा सके हैं। इस कारण प्रदेश की राजस्व व्यवस्था गड़बड़ा गई है।
जानकारी के अनुसार, प्रदेश में डिप्टी कलेक्टर (राप्रसे) कॉडर में 873 पद स्वीकृत हैं। इनमें से 436 पद सीधी भर्ती से तथा 437 पद तहसीलदार तथा भू-अभिलेख अधिकारी के प्रमोशन से भरे जाते हैं। 873 पदों में से 451 पद जिलों में पोस्टिंग के लिए आरक्षित हैं, जबकि अन्य विभागों में पदस्थ करने 222 पद, प्रतिनियुक्ति के लिए 55 पद, अवकाश के लिए 31 तथा प्रशिक्षण के लिए 14 पद मंजूर हैं, लेकिन जिलों में नियुक्ति के लिए स्वीकृत 451 पदों में से 250 पद खाली होने से राजस्व व्यवस्था गड़बड़ा रही है। यानी डिप्टी कलेक्टरों के 50 फीसदी ही पद जिलों में भरे हुए हैं। पद खाली होने के कारण जिलों में खसरे में सुधार, भू- अर्जन, जाति प्रमाण पत्र तथा अपील के मामलों का निराकरण नहीं हो पा रहा है। यदि दिसंबर में पंचायत चुनाव कराए जाते हैं, तो रिटर्निंग अधिकारियों की नियुक्ति करने में भी कलेक्टरों को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
5 साल से नहीं हो रहा प्रमोशन
प्रमोशन में आरक्षण के पेंच के कारण तहसीलदार तथा एसएएलआर को प्रमोशन का लाभ वर्ष 2016 से नहीं मिला है। हाई कोर्ट द्वारा प्रमोशन पर रोक लगाने की वजह से डीपीसी नहीं हुई है। तहसीलदार संवर्ग के वर्ष 2008, 2009, 2010 तथा 2011 बैच के अधिकारी प्रमोशन पाने इंतजार कर रहे हैं। इन चार साल के 200 अधिकारियों को प्रमोशन मिलता तो वे डिप्टी कलेक्टर से संयुक्त कलेक्टर के पद पर प्रमोशन पाने की कतार में आ जाते। इसी तरह नायब तहसीलदार भी प्रमोशन पाने का इंतजार कर रहे हैं। इन्हें भी पांच साल से प्रमोशन नहीं मिल पाया है। कई जिलों में नायब ही तहसीलदारों का काम देख रहे हैं।