- कई संस्थानों के वैज्ञानिकों की टीम कर रही है काम
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मौजूदा समय में केन्द्र सरकार का फोकस नैनो यूरिया के अधिकाधिक उपयोग पर बना हुआ है। यही वजह है कि किसानों को इस यूरिया के उपयोग के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। यह कितना कारगर है इसको लेकर अभी किसान पूरी तरह से आशस्वस्त नही हैं। यही वजह है कि अब इसकी उपयोगिता को लेकर रिसर्च कराया जा रहा है। अहम बात यह है कि यह रिसर्च भी मप्र में हो रहा है। इसका जिम्मा प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालयों सहित आठ संस्थानों के वैज्ञानिकों को सौंपा गया है।
इन सभी को अलग-अलग फसलों में इस यूरिया की उपयोगिता का पता करने का काम दिया गया है। राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय को बाजरा, चना और सोयाबीन की फसल पर नैनो यूरिया के प्रभाव का पता लगाने की जिम्मेदारी दी गई है। इसी तरह से अन्य संस्थाओं के वैज्ञानिकों को भी अलग-अलग फसलों में प्रयोग का जिम्मा दिया गया है। इसमें इसके फायदे और नुकसान का पता लगाया जाना है। इस रिसर्च के लिए दो साल का समय तय किया गया है। इस दौरान साइंटिफिक डेटा एकत्रित किया जाएगा। जिसे डेटा स्टेट डिपार्टमेंट, इफिको और केंद्रीय कृषि मंत्रालय को भेजा जाएगा। अहम बात यह है कि यह शोध ऐसे समय किया जा रहा है जब यह नैनो यूरिया बाजार में उपयोग के लिए आ चुका है। इसको इफिको द्वारा तैयार किया गया है। इस शोध की सबसे बड़ी वजह है, किसानों का इस पर पूरी तरह से भरोसा नहीं किया जाना। यही वजह है कि इसका उपयोग नहीं बढ़ पा रहा है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह राष्ट्र व्यापी प्रकल्प है। जिसको लेकर अब भारत सरकार नैनो डीएपी जल्द लेकर आने वाला है। इसके साथ ही मालनपुर में नैनो यूरिया की एक यूनिट लगाने की तैयारी की जा रही है।
यह भी लगाया जाएगा पता
शोध में यह भी पता लगाया जाएगा कि फसल पर नैनो यूरिया कैसे काम करता है, एक बोरी सामान्य यूरिया के लिए कितना नैनो यूरिया का उपयोग करना होगा, इसके उपयोग से किसानों की आय पर क्या प्रभाव होगा। फसल की उत्पादकता और मिट्टी के स्वास्थ्य,पर्यावरण और मनुष्य के स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव होगा।
इन संस्थानों के वैज्ञानिक कर रहे हैं रिसर्च
ग्वालियर की कृषि यूनिवर्सिटी सहित देश की आठ कृषि यूनिवर्सिटी के विज्ञानी फसलों पर नैनो यूरिया के प्रभाव का पता लगाने के लिए शोध कर रहे हैं। इस प्रोजेक्ट को तमिलनाडु एग्रीकल्चर कृषि यूनिवर्सिटी नेतृत्व कर रही है। इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टिट्यूट नई दिल्ली द्वारा गेहूं और सरसों पर शोध किया जा रहा है, जबकि क्रीडा हैदराबाद द्वारा मक्का और अरहर पर , जीबी पंत यूनिवर्सिटी पंतनगर उत्तराखंड द्वारा धान व सरसों पर , बसंत राव नायक मराठबाड़ा परभणी महाराष्ट्र द्वारा अरहर, मक्का और गेहूं पर शोध किया जा रहा है। इंस्टिट्यूट आफ नैनो साइंस आफ टेक्नोलाजी मोहाली पंजाब में माइक्रो न्यूट्रीयंट्स में बायोलाजिकल, नाइट्रोजन फिक्सेशन, ग्रीनहाउस गैसेस का इम्यूनिशन आदि का पता किया जा रहा है। यह शोध चार तरह से किया जा रहा है। जिसमें सुपर नैनो यूरिया, सुपर नैनो यूरिया के साथ सल्फर, नैनो एनपीके जिसमें नाइट्रोजन पोटाश और फास्फोरस शामिल है। इसी तरह से नैनो ट्रेस एलिमेंट्स जिसमें माइक्रोन्यूट्रिएंट्स इसमें मैंगनीज मोलीविडनम, कॉपर, जिंक, आयरन कैल्शियम शामिल है। इसका , मिट्टी और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का पता लगाया जाना है।
दो हेक्टेयर जमीन पर होगा उर्वरक का प्रयोग
कृषि विज्ञानी डा. एकता जोशी के मुताबिक कहना है कि राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय को बाजारा, चना और सोयाबीन की फसल पर नैनो यूरिया के प्रभाव को देखना है। इसके लिए इन फसलों को दो हेक्टेयर भूमि में बोया गया है। जिस पर मशीन की मदद से नैनो यूरिया का छिडक़ाव किया जा रहा है। इसी तरह से दिल्ली की आईआरआई कृषि यूनिवर्सिटी को गेहूं और सरसों की फसल पर शोध करना है। वहीं महाराष्ट्री की दोनों यूनिवर्सिटी में जिन फसलों पर नैनो यूरिया का शोध किया जाना है उन फसलों पर उर्वरक का छिडक़ाव ड्रोन की मदद से होगा। जिससे इस बात का भी पता चलेगा कि नैनो यूरिया का छिडक़ाव सामान्य हाथ की मशीन या ड्रोन से करने पर अधिक प्रभावी होगा।