अध्यक्ष को पद से हटाना अब आसान नहीं

  • नगरीय विकास एवं आवास विभाग तैयार कर रहा प्रस्ताव, आएगा अध्यादेश
  • गौरव चौहान
अध्यक्ष

मप्र में करीब एक साल पहले विधि एवं विधायी विभाग ने मप्र नगर पालिका द्वितीय संशोधन अध्यादेश 2024  लागू किया था। इसके तहत प्रावधान किया गया था कि नगर पालिका और नगर परिषद के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के विरुद्ध तीन वर्ष के पहले अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकेगा। अब नगरीय विकास एवं आवास विभाग नया प्रस्ताव तैयार कर रहा है। इसके तहत अब अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को साढ़े चार साल से पहले नहीं हटाया जा सकता। यानी प्रदेश में अब नगर पालिका और परिषद के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को पद से हटाना अब आसान नहीं होगा।
गौरतलब है कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव के समय बड़ी संख्या में पार्षद कांग्रेस छोडकऱ भाजपा में शामिल हुए। जुलाई-अगस्त 2022 में नगरीय निकायों के चुनाव हुए थे। इसको देखते हुए सरकार ने 2024 में नगर पालिका अधिनियम 1961 की धारा 43 क में अध्यादेश के माध्यम से संशोधन लागू किया था। इसके लिए तीन चौथाई पार्षदों के हस्ताक्षर से ही प्रस्ताव प्रस्तुत किया जा सकेगा। इससे पहले नगर पालिका या नगर परिषद के अध्यक्ष के प्रति यदि दो तिहाई पार्षद अविश्वास व्यक्त करते थे तो उन्हें हटाने के लिए दो वर्ष की कालावधि पूर्ण होने पर अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता था। अब नए प्रावधान के तहत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को साढ़े चार साल से पहले नहीं हटाया जा सकता। प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव ने आरोप लगाया कि सरकार निर्वाचित पार्षदों का अधिकार छीन कर अध्यक्षों को मनमानी करने की छूट देना चाहती है। भ्रष्टाचार चरम पर है और इसके विरुद्ध कोई आवाज न उठा सके, इसका प्रविधान अधिनियम में संशोधन करके किया जा रहा है। अविश्वास प्रस्ताव लाने की अवधि साढ़े चार वर्ष कर दी जाती है तो फिर पांच वर्षीय कार्यकाल में यह आ ही नहीं पाएगा क्योंकि इसके बाद तो चुनाव की तैयारियां प्रारंभ हो जाती हैं। इसके विरोध में प्रदेशभर के पार्षदों का वृहद सम्मेलन बुलाया जाएगा और आवश्यकता पडऩे पर हाई कोर्ट में याचिका भी दायर की जाएगी।
समिति से हरी झंडी मिलते ही आएगा कैबिनेट में
सरकार मप्र नगर पालिका अधिनियम 1961 में संशोधन करके अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत करने की अवधि एक बार फिर बढ़ाकर साढ़े चार वर्ष करने जा रही है। यह अवधि पिछले साल अगस्त में दो से बढ़ाकर तीन वर्ष की गई थी। नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने प्रस्ताव तैयार कर लिया है। इसे वरिष्ठ सचिव समिति से हरी झंडी मिलते ही कैबिनेट के सामने अंतिम निर्णय के लिए रखा जाएगा। नगर पालिका और परिषद के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को पद से हटाना अब आसान नहीं होगा, क्योंकि सरकार अविश्वास प्रस्ताव लाने की अवधि साढ़े चार वर्ष करने की तैयारी में है। पांच वर्षीय कार्यकाल में अविश्वास प्रस्ताव आते-आते तो कार्यकाल पूरा होने लगेगा। नए प्रावधान के तहत अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के विरुद्ध तीन चौथाई पार्षद अविश्वास प्रस्ताव ला सकते हैं। इसके स्वीकार होने पर बुलाए जाने वाले विशेष सम्मेलन में कोई भी पार्षद प्रस्ताव प्रस्तुत करेगा। यह तीन चौथाई पार्षदों के बहुमत से ही पारित होगा। इसके बाद रिक्त की पूर्ति के लिए मुख्य नगर पालिका अधिकारी द्वारा कलेक्टर को प्रस्ताव भेजेंगे, जो राज्य निर्वाचन आयोग के पास जाएगा और उपचुनाव होगा।
लगभग 80 प्रतिशत पदों पर भाजपा या उसके समर्थक
प्रदेश में 16 नगर निगम, 98 नगर पालिका और 264 नगर परिषद हैं। इनमें से महापौर और अध्यक्ष के लगभग 80 प्रतिशत पदों पर भाजपा या उसके समर्थक हैं। यही स्थिति पार्षदों को लेकर भी है। पार्षदों की नाराजगी के कारण कई निकायों में अध्यक्षों को पद से हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव की सूचनाएं दी गई थीं। इस स्थिति से बचने के लिए सरकार ने पिछले साल अगस्त में अविश्वास प्रस्ताव लाने की अवधि दो से बढ़ाकर तीन वर्ष कर दी थी। उम्मीद थी कि स्थितियां बदल जाएंगी पर ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है। सूत्रों का कहना है कि कई स्थानों से अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने की सूचनाएं प्राप्त हो रही हैं। उधर, नगर पालिका संघ ने मुख्यमंत्री डा.मोहन यादव को पत्र लिखकर कहा कि पार्षद दबाव बनाते हैं। इससे वे विकास कार्यों को गति नहीं पाते हैं, इसलिए अविश्वास प्रस्ताव लाने की अवधि बढ़ाई जानी चाहिए। सरकार भी इस तर्क से काफी हद तक सहमत है। इसे आधार बनाकर ही अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए अवधि तीन से बढ़ाकर साढ़े चार वर्ष करने के लिए अध्यादेश का प्रारूप तैयार किया है, जिसे वरिष्ठ सचिव समिति की हरी झंडी मिलते ही कैबिनेट के समक्ष अंतिम निर्णय के लिए प्रस्तुत किया जाएगा।

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