
- सरकारी शिक्षकों व लेक्चरर के नाम भी आए सामने
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में मदरसों के नाम पर जमकर फर्जीवाड़ा किया जा रहा है। इसके बाद भी जिम्मेदार आंख बंद किए हुए हैं। वह तो भला हो राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग का, जिसकी वजह से हाल ही में श्योपुर जिले में जांच हो सकी है। इसके बाद अकेले एक ही जिले में आधा सैकड़ा से अधिक फर्जी मदरसों का खुलासा हुआ है। ऐसा नहीं है कि इस तरह का खेल अकेले श्योपुर में ही किया जा रहा था, बल्कि भिंड मुरैना में भी इसी तरह के फर्जीवाड़ा की बात सामने आ रही है।
इसके बाद भी प्रशासन ऐसे मदरसों के संचालकों पर कड़ी कार्रवाई करने के लिए तैयार नजर नहीं आ रहा है। इन मदरसों की मान्यता भले ही निरस्त कर दी गई है, लेकिन अब तक उनके प्रबंधन पर एफआईआर दर्ज नही कराई गई है। जबकि उनके खिलाफ जमकर फर्जीवाड़ा करने के कई सबूत सामने आ चुके हैं। इससे यह तो तय है कि यह पूरा खेल संबंधित जिम्मेदार अफसरों के साथ मिलकर खेला जा रहा था।
दरअसल , की गई जांच में पता चला है कि फर्जी मदरसों के खेल में न सिर्फ हिंदू बच्चों के नाम दर्ज करने में फर्जीवाड़ा हुआ है, बल्कि मदरसों के संचालकों को लेकर भी नियमों के अनदेखी सामने आई है। जिन 56 मदरसों की मान्यता समाप्त की गई, उनमें कई ऐसे हैं , जिनके संचालक के रूप में शासकीय शिक्षक, लेक्चरर के नाम दर्ज हैं। जबकि नियमानुसार शासकीय शिक्षक या कर्मचारी मदरसे का संचालन नहीं कर सकते। कांग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार में मंत्री रहे इब्राहिम कुरैशी के रिश्तेदार, भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के जिला महामंत्री रहे आरिफ खान और मदरसा बोर्ड की पूर्व जिला प्रभारी नफीसा के रिश्तेदार के नाम से भी कई फर्जी मदरसे संचालित बताए गए हैं। बता दें कि मदरसों में हिंदू बच्चों को तालीम दिए जाने के मामले में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने मुख्य सचिव वीरा राणा को दिल्ली तलब किया तो उसके डेढ़ माह बाद जांच में श्योपुर में सामने आई गड़बड़ी पर मदरसों की मान्यता समाप्त की गई है। श्योपुर के अलावा चंबल अंचल के भिंड और मुरैना में भी संचालित मदरसों में हिंदू बच्चों के फर्जी दाखिले की बात सामने आई है, जिसमें अभिभावकों की जानकारी के बिना ही बच्चों के नाम मदरसों में दर्ज पाया गया है। प्रदेश के स्कूली शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह ने इस संबंध में जांच के निर्देश दिए हैं।
कागजों में हो जाता हैै निरीक्षण
अहम बात यह है कि जिन मदरसों का फर्जीवाड़ा सामने आया है , उनका संचालन वर्ष 2007 से शुरू हुआ था। मान्यता के लिए सात सदस्यों की सोसाइटी को मदरसा बोर्ड और वक्फ बोर्ड से पंजीयन कराना होता है। इसके बाद बोर्ड में आनलाइन आवेदन कर उसकी हार्ड काफी जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में जमा करनी होती है। जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय से ही भौतिक सत्यापन की रिपोर्ट के बाद मदरसा बोर्ड मान्यता प्रदान करता है। जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय से वर्ष 2022 में ही जिले में संचालित 80 मदरसों का भौतिक सत्यापन कर 2025 तक मान्यता बढ़वाई गई थी। ऐसे में लंबे समय से चल रहे इस फर्जीवाड़े पर जिला शिक्षा अधिकारी, बीईओ कार्यालय, संबंधित संकुल केंद्र की निगरानी पर भी गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं, क्योंकि कई संचालक ऐसे भी हैं, जिन्होंने कुछ वर्ष पूर्व मदरसों के संचालन की जिम्मेदारी छोड़ भी दी थी, परंतु रिकार्ड में उनका ही नाम संचालक के रूप में दर्ज है। ऐसे में शासन द्वारा इन्हें अनुदानित राशि की वसूली भी आसान नहीं होगी। निरीक्षण में जो 56 मदरसे असंचालित पाए गए थे।