हिमाचल की तर्ज पर मप्र में भी बागी बनेंगे मुसीबत

प्रदेश में भी भाजपा आलाकमान की चलेगी 20 फीसदी विधायकों के टिकट पर कैंची

भाजपा आलाकमा

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम।
बीते रोज हिमाचल व गुजरात में आए  विधानसभा चुनाव परिणामों का असर मप्र पर पड़ना तय है। भाजपा के लिए इस बार प्रदेश में अभी से हिमाचल की तरह बागियों का मुसीबत बनना भी तय माना जा रहा है। इनमें कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने वाले नेताओं को लेकर अधिक चुनौति रहने वाली है। दरअसल प्रदेश में बीते दो दशक से भाजपा की सरकार है , जिसकी वजह से एन्टी इनकंबेंसी होना स्वाभाविक है। इसे दूर करने के लिए टिकटों को काटा जाना जरुरी है। भाजपा इस फार्मूले को गुजरात व दिल्ली में सफलता पूर्वक आजमा चुकी है। यही फार्मला भाजपा के लिए हिमाचल में उसके लिए सत्ता से बाहर होने की बड़ी वजह भी बनकर सामने आ चुका है, लेकिन माना जा रहा है कि इस पर मप्र में हर हाल में अमल किया जाएगा।
दरअसल मप्र ऐसा राज्य है, जहां पर कांग्रेस एक मजबूत विपक्ष बनकर उभरा है और इस प्रदेश में भी लगभग गुजरात और हिमाचल जैसे हालात बने हुए हैं। गुजरात में तो भाजपा हाईकमान के अलावा स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने पूरी तरह से कमान सम्हाल रखी थी, लेकिन हिमाचल में अन्य नेताओं के हाथों में कमान रही, जिसकी वजह से वे हिमाचल प्रदेश में बागियों पर नकेल नहीं कस सके और भाजपा को सत्ता से बाहर होना पड़ गया है। हिमाचल में भाजपा के 14 बागी चुनावी मैदान में उतर गए थे। इन बागियों के मतों और भाजपा प्रत्याशियों के मतों को मिला दिया जाए तो भाजपा उम्मीदवार कांग्रेस पर भारी पड़ते दिखते हैं, लेकिन न तो खुद ही जीते और न ही भाजपा प्रत्याशियों को जीतने दिया।
मप्र में पहले से ही इसी तरह के हालात बने हुए हैं। इसकी वजह है हैं श्रीमंत और उनके समर्थक। दरअसल इन नेताओं की वजह से प्रदेश में भाजपा चौथी बार सत्ता में आ सकी। इसकी वजह से भाजपा के मूल नेताओं की जगह उन्हें इसके प्रतिफल के रुप में न केवल उपचुनावों में भाजपा को उन्हें टिकट देना पड़ा बल्कि मंत्रिमंडल में भी अधिकांश को जगह देनी पड़ी। इसकी वजह से स्वभाविक इन पदों के दावेदारों में नाराजगी पहले ही पैदा हो चुकी है। पार्टी की सत्ता में वापसी की वजह से भाजपा नेताओं ने कुछ हद तक समझौता भी कर शांती की राह पकड़ रखी है , लेकिन अगर इन दलबदल करने वाले नेताओं को आम चुनावों में फिर वरीयता दी गई तो भी असंतोष फैलना तय है और अगर इन्हे टिकट नहीं दिया गया तो इनका बागी होना भी तय माना जा रहा है। ऐसे में प्रदेश में भाजपा संगठन के सामने दोहरी मुसीबत अभी से बनती दिख रही है। इसके अलावा भाजपा के ही कई ऐसे विधायक हैं जो ऐन-केन प्रकारेण किसी तरह बीते चुनाव में जीतने में सफल रहे थे, लेकिन इस बार पार्टी व सरकार की सर्वे रिपोर्ट में जीत मुश्किल बताई जा रही है उनका टिकट कटना भी तय माना जा रहा है।
इसी तरह से कई पार्टी विधायक बेहद उम्र दराज हो चुके हैं जो पार्टी द्वारा तय उम्र के क्राइटेरिया में फिट नहीं बैठ रहे हैं, उनका भी टिकट कटना तय माना जा रहा है। ऐेसे में उनमें से भी अधिकांश बगावत कर सकते हैें।  इनमें मौजूदा मंत्रियो ंसे लेकर विधायक तक के नाम शामिल हो सकते हैं। दरअसल प्रदेश में कई भाजपा विधायक ऐसे हैं, जो लगातार कई चुनावों से पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ते आ रहे हैं , जिसकी वजह से उनके इलाकों में दूसरे नेताओं व कार्यकर्ताओं को मौका ही नहीं मिल पा रहा है।
मप्र में भी बड़े फेरबदल की संभावना
गुजरात के नतीजों के बाद भाजपा का अब मप्र में भी सत्ता और संगठन में बड़े बदलाव और फेरबदल के साथ चुनाव में उतरने की संभावना जताई जा रही है।   पांच बिंदुओं को गुजरात की चुनावी जीत में अहम माना जा रहा है, जिस पर मप्र में भी अमल होगा। माना जा रहा है कि इसके लिए पार्टी हाईकमान अपने स्तर पर तैयारी भी कर चुका है। इसके लिए प्रदेश में अलग-अलग सर्वे के आधार पर कुंडली भी तैयार कर ली गई है। पार्टी सूत्रों के अनुसार एंटी इनकम्बेंसी सर्वे में साफ दिख रही है। इसलिए कठोरता से टिकट पर कैंची चल सकती है। सभी उम्रदराज व लंबे समय से विधायकों को चुनाव से पहले धीरे-धीरे संकेत दे दिए जाएंगे।
मप्र में होगा बड़ा बदलाव
सत्ता और संगठन में बड़ा बदलाव एक माह के अंदर संभावित है। मंत्रिमंडल में फेरबदल के संकेत तो पहले से ही मिल रहे हैं। अभी भाजपा की 127 सीटें हैं। इनमें से करीब आधा सैकड़ा विधायकों के टिकट कटना तय है। उनकी जगह नए लोगों को मौका मिलेगा। पिछले चुनाव में 84 नए विधायक बने। इनमें 50 कांग्रेस, 28 भाजपा के थे। प्रदेश में भी भाजपा ओबीसी और आदिवासी का समीकरण तैयार कर सकती है।
इन सीटों पर चलेगी कैंची!
जिन सीटों पर मौजूदा भाजपा विधायक हैं उनमें से विभिन्न वजहों से गुढ़, गुना, त्योंथर, अनूपपुर , उज्जैन उत्तर, होशंगाबाद, देवतालाब , रहली, पाटन, बालाघाट, सिंगरौली, जयसिंह नगर, इंदौर, गरोठ, शिवपुरी, सिलवानी, इच्छावर, सांची , धार, मैहर और मल्हारगढ़ विस सीटों पर नए चेहरे आ सकते हैं।  
इन सीटों पर रहेगी मुसीबत
जौरा, सुमावली, मुरैना, दिमनी, अंबाह, मेहगांव, गोहद, ग्वालियर, ग्वालियर पूर्व, डबरा, भांडेर, करैरा, पोहरी, बमोरी, अशोकनगर, मुंगावली, सुरखी, मल्हारा, अनूपपुर, सांची, ब्यावरा, आगर, हाटपिपल्या, मांधाता, नेपानगर, बदनावर, सांवेर, सुवासरा की विधानसभा सीटों पर चेहरे बदलने में सर्वाधिक मुसीबत रहने वाली है। दरअसल इन पर दूसरे दलों से आए नेताओं को उपचुनाव में टिकट दिया गया था। उन सीटों पर एक बार फिर दलबदल करने वाले नेता स्वाभाविक रूप से दावेदार हैं।  ।

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