- जातीय समीकरण भी त्रिपाठी ने उलझाए
- विनोद उपाध्याय
राजनीतिक पार्टियों ने लोकसभा चुनाव की तैयारियां तेज कर दी हैं। प्रथम चरण के बाद द्वितीय चरण की सात सीटों के लिए मतदान होना है। दूसरे चरण के सात लोकसभा क्षेत्रों में सतना सीट भी शामिल है। इस सीट पर चुनाव रोचक हो गया है। सतना में भाजपा के गणेश सिंह के लिए बसपा से चुनाव लड़ रहे पूर्व विधायक नारायण त्रिपाठी रोड़ा बन सकते हैं। वहीं, कांग्रेस के लिए दलबदल करने वाले नेता परेशानी खड़ी कर रहे हैं।
सतना संसदीय सीट पर भाजपा ने एक बार फिर मौजूदा सांसद गणेश सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है। वे विधानसभा चुनाव हार गए थे। वहीं, कांग्रेस ने सिद्धार्थ कुशवाहा को प्रत्याशी बनाया है। कुशवाहा ने ही गणेश सिंह को सतना से चुनाव हराया था। वहीं, इस सीट पर पूर्व विधायक नारायण त्रिपाठी ने बसपा से नामांकन भर कर मुकाबला रोचक बना दिया है। 2018 में नारायण त्रिपाठी भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीते थे, लेकिन 2023 का विधानसभा चुनाव उन्होंने अपनी अलग पार्टी बनाकर लड़ा। हालांकि, उनको सफलता नहीं मिल पाई। नारायण त्रिपाठी भाजपा प्रत्याशी गणेश सिंह के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं। सतना में सबसे ज्यादा 19 प्रत्याशी मैदान में हैं।
इस तरह का जातीय गणित
चूंकि बीजेपी और कांग्रेस के दोनों प्रत्याशियों से सवर्ण वोटरों की नाराजगी है, ऐसे में अब उन्हें नारायण के तौर पर एक विकल्प मिल चुका है। सतना और मैहर जिले में सवर्ण वोटरों की संख्या लगभग छह लाख के आसपास है। इस सीट पर ओबीसी और सर्वण नेताओं के मैदान में आने के बाद अब निर्णायक भूमिका में एससी और एसटी वर्ग के वोट रहेंगे। इस वर्ग का वोट जिस दल के साथ रहेगा, वही जीत अर्जित करेगा। पिछले चुनाव में दलित-आदिवासी वोटों के बलवूते सांसद गणेश सिंह ने दो लाख 31 हजार से अधिक वोटों से जीत दर्ज की थी। इस बार सतना लोकसभा सीट में 17 लाख 7 हजार 71 मतदाता हैं। सबसे अधिक संख्या में ब्राह्मण मतदाता ही हैं। इसके बाद अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के मतदाता हैं।
तीन दशक से भाजपा का फोकस ओबीसी पर
इस सीट में बीजेपी 28 साल से पिछड़ा यानी ओबीसी उम्मीदवार को मैदान में उतार रही है। इन सालों में कांग्रेस ब्राह्मण और क्षत्रिय वर्ग पर भरोसा करती रही। यह प्रयोग विफल रहा तो उसने भी ओबीसी प्रत्याशी को चुनावी रण में उतार दिया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रमुख दलों में कौन बाजी मारेगा। सतना लोकसभा सीट में यदि मतदाता के लिहाज से देखें तो, यहां पर सवर्ण वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है। इसके बावजूद दोनों दलों ने सवर्ण नेताओं को मौका नहीं दिया है।
कांग्रेस ने हर वर्ग को आजमाया
1996 से 2019 तक 23 सालों में हुए सात चुनावों के दौरान कांग्रेस के उम्मीदवारों की यदि बात की जाए तो इस दौरान पार्टी ने एक-एक बार ओबीसी और ब्राह्मण जनप्रतिनिधि पर भरोसा जताया है। वहीं 1998 से 2014 तक लगातार पांच बार क्षत्रिय वर्ग से आने वाले जनप्रतिनिधियों पर दांव लगाया, लेकिन हर बार पार्टी को निराशा ही हाथ लगी है।
यह हैं सतना के जातिगत समीकरण
सतना लोकसभा में करीब 1 लाख क्षत्रिय, 1 लाख 23 हजार पटेल, 65 हजार वैश्य, अनुसूचित जाति के 1 लाख 47 हजार, अनुसूचित जनजाति के 1 लाख 37 हजार वोटर्स हैं। इसी तरह से ब्राह्मणों की संख्या 3.50 लाख के करीब है। बसपा ने नारायण त्रिपाठी को को मैदान में उतारकर ब्राह्मण को साधने की कोशिश की है। वहीं, भाजपा ने क्षत्रिय और पटेल वोटों को साधने के लिए सतना सीट से एक बार फिर से गणेश सिंह को मैदान में उतारा है।
पार्टी छोड़ रहे नेताओं ने बढ़ाई परेशानी
सतना लोकसभा सीट पर कांग्रेस को एक के बाद एक झटके लग रहे हैं। पार्टी के कई नेता हाथ का साथ छोड़ भाजपा का दामन थाम चुके हैं। इन नेताओं के दल बदलने से सतना लोकसभा सीट पर सियासी समीकरण बदल सकते हैं। हाल में पूर्व विधायक यादवेन्द्र सिंह, सतना नगर निगम के पूर्व अध्यक्ष सुधीर सिंह तोमर, पूर्व महापौर सतना पुष्कर सिंह तोमर, मोलाई राम चौधरी पूर्व मंडी अध्यक्ष, संजय सिंह जिला पंचायत सदस्य सतना पुष्कर सिंह तोमर के बाद पूर्व महापौर व पूर्व लोस प्रत्याशी राजाराम आदि नेता बीजेपी में शामिल हुए हैं। ये सभी नेता पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के समर्थक हैं।
भाजपा के लिए भी राह आसान नहीं
नारायण त्रिपाठी विंध्य क्षेत्र के बड़े ब्राह्मण नेता हैं। नारायण के बसपा में शामिल होने से ब्राह्मण वोट बैंक बीएसपी में शिफ्ट हो सकता है। विधानसभा चुनाव में यह ट्रेंड देखने को मिला था। तब बीजेपी नेता शिवा चतुर्वेदी ने बगावत करते हुए बीएसपी से चुनाव लड़ा था और वे 33,567 वोट लेकर तीसरे स्थान पर थे। उस समय गणेश सिंह करीब 4 हजार से चुनाव हार गए थे। इस संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की 7 सीटें आती हैं, जिनमें चित्रकूट, रैगांव, सतना, नागौद, मैहर, अगरपाटन व रामपुर बघेलान शामिल।
