354 करोड़ रु. की बैंक धोखाधड़ी मामले में रतुल पुरी बरी

धोखाधड़ी
  • दिल्ली की अदालत का आदेश…

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने कांग्रेस नेता कमलनाथ के भतीजे और उद्योगपति रतुल पुरी को 354 करोड़ की बैंक धोखाधड़ी मामले में आरोपमुक्त कर दिया। पुरी और अन्य पर सीबीआई ने ऋण न चुकाने व कई बैंकों को वित्तीय नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया था। विशेष न्यायाधीश संजीव अग्रवाल ने आदेश में कहा, आरोपों में मुख्य रूप से दीवानी प्रकृति के विवाद की झलक है। आपराधिक लक्षण नहीं हैं। दीवानी प्रकृति के विवाद को आपराधिक रंग दिया जा रहा है। मामले को आरोपियों के पक्ष में मोडऩे वाली बात यह थी कि बैंकों ने अपने 40 अफसरों की जांच और केस चलाने के लिए सीबीआई की मंजूरी देने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने कहा, सक्षम प्राधिकारियों ने बैंकरों पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में जांच पर रोक लगाई। इससे पता चलता है कि मामले में कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं थी या धोखाधड़ी, छल या प्रलोभन के आपराधिक तत्व नहीं थे। ऋण का डायवर्जन, गबन या दुरुपयोग नहीं हुआ। इसका इस्तेमाल आरबीआई की गाइडलाइन और बैंकिंग मानदंडों के अनुसार किया गया। सीबीआई ने रतुल पुरी, उनकी मां नीता पुरी और निजी कंपनी मोजर बेयर इंडिया लिमिटेड (जो सीडी और डीवीडी बनाती है) पर बैंकों के एक संघ के साथ धोखाधड़ी करने का आरोप लगाया था। इसने आरोप लगाया था कि आरोपियों का लक्ष्य बैंकों को दिए गए ऋणों का दुरुपयोग करके पैसे हड़पकर बैंकों को धोखा देना था। सीबीआई ने यह भी आरोप लगाया था कि धन की हेराफेरी बैंक अधिकारियों की सक्रिय मिलीभगत के बिना संभव नहीं हो सकती थी, क्योंकि ऋणों की निगरानी करना बैंक अधिकारियों का काम था। न्यायाधीश अग्रवाल ने कहा, किसी भी समय ऋण का कोई डायवर्जन, गबन या दुरुपयोग नहीं हुआ और ऋण का उपयोग उन उद्देश्यों के लिए किया गया जिसके लिए इसे आरबीआई के दिशानिर्देशों और बैंकिंग मानदंडों के अनुसार वितरित किया गया था और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि विभिन्न बैंकों/बैंकों के संघ के 40 वरिष्ठ अधिकारियों को विभिन्न सक्षम अधिकारियों द्वारा पीसी अधिनियम की धारा 17 ए के तहत जांच करने की मंजूरी भी नहीं दी गई थी।
ये है मामला
सीबीआई ने पुरी, मां नीता और मोजर बेयर कंपनी पर बैंकों के संघ से धोखाधड़ी का आरोप लगाया था। आरोप था-ऋणों का दुरुपयोग कर धन की हेराफेरी कर बैंकों को धोखा दिया। यह बैंकरों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं था, चूंकि ऋण की निगरानी बैंकरों का काम था।

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