
- आदिवासियों को नहीं मिल रहा सरकारी योजनाओं का लाभ
विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में सरकार का सबसे अधिक फोकस आदिवासी समाज पर है। इस समाज की बेहतरी के लिए सरकार ने कई तरह की योजनाएं संचालित कर रखी हैं। लेकिन, हकीकत यह है कि आदिवासियों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। आलम यह है कि चंद रूपयों के लिए आदिवासियों को साहूकारों से कर्ज लेना पड़ रहा है। इसके एवज में उन्हें अपना राशन कार्ड गिरवी रखना पड़ता है। हम बात कर कर रहे हैं ग्वालियर, मुरैना, श्योपुर और शिवपुरी जिले की। जहां चंद रुपयों के लिए आदिवासी समुदाय के लोग अपने परिवार का पेट पालने वाले बहुमूल्य राशन कार्ड को गिरवी रख देते हैं। फिर होता ऐसा है कि वे लोग राशन कार्ड वापस नहीं ले पाते हैं और उनके राशन कार्ड पर साहूकार मजे करते हैं। गौरतलब है कि गरीबों के उत्थान के लिए सरकार अनेकों कल्याणकारी योजनाएं चला रही है। रोजगार, स्वास्थ्य, भोजन की भरपूर व्यवस्था के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन प्रदेश के इस जिले में इन सब योजनाओं के क्रियान्वयन पर पलीता लगता नजर आ रहा है। शिवपुरी ब्लॉक में आने वाला मंझेरा गांव आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है। यहां पर आदिवासी परिवार ज्यादा हैं। इन परिवारों की स्थिति ऐसी है कि यहां पर रहने वाले लोगों के पास अपने बच्चों के इलाज के लिए रुपये नहीं होते, जिसके लिए यह लोग अपने परिवार का पेट पालने वाले अंत्योदय राशन कार्ड को गिरवी रख कर साहूकारों से रुपया उधार लेते हैं। राशन कार्ड के बदले में मिलने वाली राशि 1000, 1500, 2000 के आस-पास रहती है। पैसे की तंगी के चलते साहूकारों से ली गई उधार रकम परिवार के सदस्यों की बीमारी में लगाई जाती है। मजबूरी में उठाया गया कदम अब यहां पर चलन में आ गया है।
पट्टे की जमीन भी गिरवी रखी
श्योपुर के चेनपुरा गांव में आदिवासी, मुस्लिम और दलित परिवार रहते हैं। इनमें से अधिकांश लोग खेती या फिर मजूदरी करते हैं। गांव के दुकानदार शंकरलाल आर्य ने बताया कि यहां आदिवासी जरूरत पडऩे पर राशन कार्ड गिरवी रखते हैं। मुरैना के निचली बहराई और बघेवर गांव में भी आदिवासी परिवार रहते हैं। यहां कुछ लोगों ने पट्टे की जमीन भी गिरवी रखी थी। जौरा एसडीएम प्रदीप तोमर ने बताया कि निचली बहराई के दो मामलों में आदिवासियों को उनकी जमीन का पुन: कब्जा दिलाया गया है। जिपं सदस्य मंदे बाई सहरिया का कहना है कि यह सही है, घाटीगांव और दूसरे क्षेत्र में सहरिया परिवार पैसों की जरूरत पडऩे पर अपना राशन कार्ड गिरवी रखते हैं। अक्सर ऐसा परिवार में किसी की तबीयत खराब होने पर होता है। बाद में जब फसल कटाई के वक्त मजदूरी मिलती है तो कार्ड वापस उठा लेते हैं। ग्वालियर कलेक्टर रुचिका चौहान का कहना है कि सहरिया आदिवासियों को जरूरतें पूरी करने के लिए अपने राशनकार्ड गिरवी रखना पड़ रहे हैं, ऐसा कोई मामला जानकारी में नहीं आया है। यदि ऐसा है तो पता लगवाएंगे।
60 प्रतिशत से ज्यादा राशन कार्ड दूसरों के पास
एक अनुमान के मुताबिक शिवपुरी जिले के 60 प्रतिशत से ज्यादा राशन कार्ड पर अन्य लोग राशन लेते हैं। जिसमें मिलने वाले गेहंू,चावल, मिट्टी का तेल का उपयोग साहूकार करते हैं। जिन्होंने रुपये लिए होते हैं वह दाने-दाने को मोहताज हो जाते हैं। ग्वालियर जिले के हरिपुरा गांव में रहने वाले पहलवान सिंह आदिवासी को 5 साल पहले पैर में चोट लग गई थी। इलाज के लिए पैसे नहीं थे। तब उन्होंने गांव के ही एक साहूकार से 5 हजार रु. उधार लिए। इसके एवज में पहलवान को अपना राशन कार्ड गिरवी रखना पड़ा। तब से उनका राशन साहूकार ही ले रहा है। वे बाजार से राशन ला रहे हैं। यह हकीकत सिर्फ पहलवान की नहीं है। ग्वालियर, मुरैना, श्योपुर और शिवपुरी जिले के कई गांवों में आदिवासियों को छोटी-छोटी जरूरतों और इलाज के लिए राशन कार्ड को साहूकार के पास गिरवी रखना पड़ता है। राशन कार्ड गिरवी रखने के बाद हर महीने सरकार से मिलने वाला 35 किलो गेहूं और चावल पैसे देने वाला साहूकार ले लेता है। लेकिन आदिवासी परिवार के मुखिया को हर माह राशन की दुकान पर अंगूठा लगाने या हस्ताक्षर करने जाना पड़ता है।
11 तरह की सेवाएं मुफ्त उपलब्ध
दरअसल, पीएम जनमन योजना में सरकार के 9 विभाग आदिवासियों को 11 तरह की सेवाएं मुफ्त उपलब्ध करा रहे हैं। इसके तहत सबको पक्का घर, स्वच्छ पानी, सडक़, पोषण आहार और इलाज की व्यवस्था कराने का दावा किया जाता है, लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है। केंद्र-प्रदेश सरकार की योजनाओं का फायदा भी आदिवासियों को नहीं मिल रहा है। शिवपुरी से 11 किमी दूर कोटा गांव की अशर्फी आदिवासी के पति का निधन हो चुका है। बेटी मनीषा को खुजली हुई तो दवा मंगाने पैसों की जरूरत पड़ी। मजबूरी में गांव के एक साहूकार से राशन कार्ड गिरवी रख 2 हजार रुपए लिए। पठारा गांव में न पानी आता है, न बिजली। पीएम आवास भी नहीं बने हैं। दिव्यांग आदिवासी रवि ने बताया कि 6 साल पहले बीमारी के वक्त साहूकार से 2 हजार रु. लिए थे। दो माह पहले पैसा चुकाकर कार्ड ले लिया है। पुनिया बाई ने बताया कि मेरी नातिन की शादी थी। मैंने 5 हजार में एक व्यापारी के पास राशन कार्ड गिरवी रखा था। एक साल से मजदूरी कर राशन कार्ड वापस लेने के लिए पैसे जोड़ रही हूं। गौरी बाई ने कहा कि 5-6 महीने पहले मेरी तबीयत खराब हो गई थी। इलाज के लिए राशन कार्ड गिरवी रखकर 3500 लिए थे। पैसों के बदले कंट्रोल से मेरा राशन साहूकार ले लेता है। मदद नहीं मिलती तो क्या करें।