श्री राम की कथा बताएगी किताब रामराजा

  • रामनवमी पर रिलीज होगा भजन… आगे फिल्म की प्लानिंग

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
भारतीय संस्कृति और अध्यात्म प्रेमियों के लिए जल्द ही पुस्तक रामराजा उपलब्ध होगी। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने पिछले दिनों इसका विमोचन किया था। अब रामनवमी से यह पाठकों के लिए उपलब्ध होगी।  इस किताब को मध्यप्रदेश के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी पी. नरहरि और शोधकर्ता देव ऋषि ने लिखा है। आगे  इस किताब पर एक फिल्म भी बनेगी। नामी प्रोड्यूसर भरत चौधरी ने किताब के लेखकों से संपर्क किया है। इसका डायरेक्शन भी लेखक देवऋषि ही करेंगे।
यह है कथा…: रानी श्रीराम की मूर्ति को लेकर ओरछा आई और जब तक मंदिर निर्माण नहीं हुआ, तब तक वह मूर्ति महल में ही रखी रही। बाद में जब रामराजा के मंदिर का निर्माण किया गया, तब तक भगवान राम वहीं प्रतिष्ठित हो चुके थे और उनकी शर्तों के अनुसार, उन्हें अब महल से हटाया नहीं जा सकता था। तभी से भगवान श्री राम ओरछा के राजा के रूप में पूजे जाते हैं।  किताब में यह भी बताया गया है कि जिस दिन भगवान श्रीराम ने रानी कुंवर गणेश को दर्शन दिए, उसी दिन गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना आरंभ की थी। यह संयोग भारतीय संस्कृति की आध्यात्मिक गहराइयों को दर्शाता है।
ओरछा के राजा हैं राम… भजन का होगा लोकार्पण: भगवान श्रीराम के ओरछा आगमन की इस कथा को संगीतबद्ध करने के लिए विशेष भजन ओरछा के राजा है राम भी तैयार किया गया है। इसे बॉलीवुड के मशहूर गायक शान ने अपनी आवाज दी है। संगीतकार देवऋषि हैं। गीतकार देव ऋषि और पी. नरहरि हैं। इस भजन की धुन भक्तों को रामराजा के पावन चरणों में अर्पित होने का अहसास कराएगी। देवऋषि के मुताबिक  इस भजन को इस वर्ष रामनवमी पर रामराजा मंदिर को समर्पित करते हुए रिलीज किया जाएगा। इस पुस्तक में भगवान श्रीराम के ओरछा आगमन की ऐतिहासिक और आध्यात्मिक कथा को संकलित किया गया है। साथ ही इसमें बुंदेलखंड के गौरवशाली इतिहास, मंदिर निर्माण की कथा और भक्ति परंपरा की गहराई से व्याख्या भी की गई है।
रामराजा केवल एक ऐतिहासिक कथा नहीं, बल्कि आध्यात्मिक दर्शन है। यह हमें सिखाता है कि भगवान मंदिर तक सीमित नहीं होते, वे हमारे राष्ट्र और हृदय के राजा हैं। यह पुस्तक उन सभी के लिए है, जो भारतीय इतिहास और अध्यात्म की गहराइयों को समझना चाहते हैं।
क्या है किताब में…
किताब में रामराजा ओरछा के ऐतिहासिक वैभव के साथ उन तमाम पहलुओं को शामिल किया गया है, जो अब तक मानो अनछुए थे। इसमें बताया गया है कि प्रदेश का ओरछा एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां भगवान श्रीराम को राजा के रूप में पूजा जाता है। रामराजा मंदिर का इतिहास 15वीं शताब्दी से जुड़ा है। जब बुंदेलखंड के शासक राजा मधुकर शाह और उनकी रानी कुंवर गणेश के भक्ति मार्ग ने इस परंपरा को जन्म दिया। राजा मधुकर शाह भगवान श्रीकृष्ण के उपासक थे और वे चाहते थे कि रानी भी उनके साथ वृंदावन जाएं, लेकिन रानी श्रीराम की अनन्य भक्त थीं। उन्होंने अयोध्या जाकर कठोर तपस्या करने का संकल्प लिया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान श्रीराम ने बाल रूप में दर्शन दिए और उनके साथ ओरछा आने के लिए सहमत हुए।

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