– श्री राम नवमी विशेष: श्रीराम का जीवन अपने आप में मर्यादा और आदर्शों की व्याख्या
– मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के 9 आदर्श और उनका अनुपम जीवन दर्शन
- प्रवीण कक्कड़

राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है,
कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है।
मैथलीशरण गुप्त जी की यह पंक्तियां… श्रीराम के जीवन को परिभाषित करती हैं। हम जब भी श्रीराम का नाम लेते हैं। मन हर्ष से भर जाता है। एक पवित्रता का अनुभव होने लगता है। श्रीराम का जीवन अपने आप में मर्यादा और आदर्शों की व्याख्या है। वे वन जाकर जहां पिता की आज्ञा का पालन करते हैं, वहीं भाईयों से स्नेह दिखाकर परिवार में गठजोड़ को परिभाषित करते हैं। वन में केवट और शबरी से संवाद कर समाजवाद सिखाते हैं, वहीं निशादराज, सुग्रीव और विभीषण के संबंधों से मित्रता की सीख देते हैं। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाने वाली श्री राम नवमी भगवान श्रीराम के आदर्श जीवन और उनकी दिव्य लीला का स्मरण कराती है। श्रीराम न केवल भारतीय संस्कृति के आदर्श पुरुष हैं, बल्कि वे मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में प्रतिष्ठित हैं, जिन्होंने अपने जीवन के प्रत्येक पक्ष में धर्म, न्याय और कर्तव्य का पालन कर मानवता को एक उच्च आदर्श दिया।
श्रीराम का जन्म और उनका अद्भुत चरित्र
श्रीराम का जन्म अयोध्या के सूर्यवंशी राजा दशरथ और रानी कौशल्या के यहाँ हुआ। उनके जन्म का उद्देश्य धरती से अधर्म का नाश करना और मर्यादित जीवन का आदर्श प्रस्तुत करना था। बाल्यकाल से ही वे गुणवान, विनम्र और सर्वप्रिय थे। गुरु विश्वामित्र के साथ राक्षसों का वध करते हुए उन्होंने अपनी वीरता का परिचय दिया और माता सीता के स्वयंवर में शिव धनुष तोडक़र उन्हें पत्नी रूप में प्राप्त किया। किंतु, श्रीराम का वास्तविक चरित्र तब उजागर हुआ जब उन्हें 14 वर्ष का वनवास मिला। उन्होंने बिना किसी प्रतिरोध के पिता की आज्ञा मानी और सीता तथा लक्ष्मण के साथ वन चले गए। वनवास के दौरान उन्होंने ऋषियों की रक्षा की, राक्षसों का संहार किया और अंतत: लंकापति रावण का वध कर धर्म की स्थापना की।
श्रीराम के 9 आदर्श: जीवन में उतारने योग्य प्रेरणादायक सूत्र
कर्तव्यपरायणता – धर्म सर्वोपरि है
श्रीराम ने सिद्ध किया कि व्यक्ति को हर परिस्थिति में अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए, चाहे उसके लिए कितनी भी बड़ी क़ुर्बानी देनी पड़े।
2. आज्ञाकारिता – गुरु और माता-पिता की आज्ञा शिरोधार्य
उन्होंने माता-पिता और गुरु की आज्ञा को कभी नहीं तोड़ा, यहाँ तक कि सिंहासन का मोह भी उन्हें विचलित नहीं कर पाया।
धैर्य – हर संकट में संयम बनाए रखो
सीता के वियोग में भी उन्होंने धैर्य नहीं खोया, बल्कि योजना बनाकर रावण को पराजित किया।
4. न्याय – अन्याय के सामने कभी न झुकें
उन्होंने रावण जैसे बलशाली अत्याचारी का वध कर दिखाया कि अन्याय का अंत अवश्य होता है।
5. विनम्रता – गुणवान होकर भी अहंकाररहित
वे अयोध्या के राजा थे, किंतु निषादराज गुह, केवट और वानरों से भी मित्रता की।
6. प्रेम और समर्पण – स्नेह ही सच्चा बल है
लक्ष्मण, भरत और हनुमान जैसे भक्तों के प्रति उनका प्रेम अद्वितीय था।
7. सत्यनिष्ठा – सत्य ही परम धर्म है
उन्होंने कभी झूठ नहीं बोला, यहाँ तक कि रावण को भी युद्ध से पहले सचेत किया।
8. त्याग – सुखों से ऊपर है धर्म
उन्होंने राजसी वैभव छोडक़र वनवास स्वीकार किया, क्योंकि धर्म सुख से बढक़र था।
9. आदर्श शासन – प्रजा ही ईश्वर है
रामराज्य का आदर्श आज भी शासन व्यवस्था के लिए प्रेरणादायी है, जहाँ प्रजा सुखी और सुरक्षित थी।
श्रीराम केवल एक देवता नहीं, बल्कि एक आदर्श जीवनशैली के प्रतीक हैं। यदि हम उनके इन 9 सूत्रों को अपने जीवन में उतार लें, तो निश्चित ही हमारा जीवन धन्य हो जाएगा। इस राम नवमी पर प्रण लें कि हम धर्म, कर्तव्य और मर्यादा के मार्ग पर चलें, क्योंकि यही श्रीराम को सच्ची भेंट होगी।
(लेखक पूर्व पुलिस अधिकारी हैं)