धूल खाती रही… राजौरा कमेटी की रिपोर्ट

  • अधिकारियों की लापरवाही का प्रमाण है मंत्रालय अग्निकांड
  • गौरव चौहान

राज्य सरकार के सबसे बड़े प्रशासनिक भवन मंत्रालय में विगत दिनों लगी आग सरकारी अधिकारियों की लापरवाही का परिणाम है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि अगर अधिकारियों ने सतपुड़ा भवन में लगी आग के बाद बनाई गई कमेटी ने जो रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। अगर उस रिपोर्ट पर अमल किया गया होता तो मंत्रालय में आग नहीं लगी होती। गौरतलब है कि सतपुड़ा घटना की जांच के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तत्कालीन अपर मुख्य सचिव गृह राजेश राजौरा की अध्यक्षता में जांच कमेटी गठित की थी। राजौरा कमेटी ने भविष्य में आगजनी की घटनाओं की पुनर्रावृत्ति रोकने के लिए भी सिफारिशें की थीं। मंत्रालय के अधिकारी खासकर सामान्य प्रशासन विभाग ने कमेटी की रिपोर्ट को खोलकर ही नहीं देखा। आज भी रिपोर्ट मंत्रालय में धूल खा रही है।
हालांकि मंत्रालय की घटना की जांच के लिए गठित अपर मुख्य सचिव मोहम्मद सुलेमान की कमेटी ने भी घटना के लिए शॉर्ट सर्किट को जिम्मेदार ठहराया है। कमेटी अगले 10 दिन के भीतर शासन को घटना की विस्तृत रिपोर्ट सौंपेगी। 12 जून 2023 को सतपुड़ा भवन में लगी आग के लिए भी शॉर्ट सर्किट को जिम्मेदार बताया गया था। पिछले महीने 20 फरवरी को भी सतपुड़ा भवन में आग लगी। उसकी वजह भी शॉर्ट सर्किट ही बताई गई थी। गौरतलब है कि सतपुड़ा की घटना के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने फायर सेफ्टी एक्ट बनाने का ऐलान किया था। अभी तक प्रदेश में इस दिशा में कोई ठोस काम ही नहीं हुआ है। हालांकि घटना के तत्काल बाद अधिकारियों ने बैठकों की खानापूर्ति भी की थी।
कैमरे बंद कैसे होगी जांच
मंत्रालय के पुराने भवन में कैमरे खराब होने की बात सामने आई है। मौके पर उपस्थित कर्मचारियों ने बताया कि वल्लभ भवन में कैमरे लगे हैं, लेकिन खराब है। सामान्य प्रशासन विभाग ने मंत्रालय में साल भर पहले कर्मचारी नेताओं के बीच हुए विवाद के बाद यह लिखित तौर पर बताया कि कैमरे खराब हैं। इस बीच कर्मचारियों के फोन भी मंत्रालय से चोरी गए, जिसकी पुलिस में भी रिपोर्ट हुई, लेकिन कैमरे खराब होने की वजह से कोई पता नहीं चला। कैमरे खराब होने की वजह से आगजनी की घटना की जांच पर भी सवाल उठ रहे हैं। क्योंकि कैमरे खराब होने की वजह से आगजनी की घटना के सही साक्ष्य नहीं मिल पाएंगे।
मंत्रालय की पांचवी मंजिल का निर्माण अस्थाई है। छत शेड की है। जिस पर डामर की मोटी चादर बिछी हुईं हैं। मंत्रालय में पदस्थ राजधानी परियोजना प्रशासन (सीपीए) (अब लोक निर्माण विभाग) के इंजीनियर बारिश में पानी टपकने पर हर बार डामर सीट बिछा देते थे। ऐसे में डामर की परत काफी मोटी हो गई। पांचवी मंजिल पर आग भडकऩे की बड़ी वजह भी यही डामर है। डामर में आग पकडऩे के बाद बेकाबू हो गई थी। डामर की वजह से धुंआ तेज उठ रहा था।
जीएडी की घनघोर लापरवाही
सतपुड़ा की आग के बाद सबक नहीं लिया। जीएडी के अफसरों को पूरा रिकॉर्ड, कबाड़, पुराना फर्नीचर बाहर करना था। ऐसा न करके सीढ़ियों पर रखवा दिया। मंत्रालय में सरकार का प्रमुख कार्यालय है। फिर भी पुरानी बिल्डिंग के कैमरे खराब है। जीएडी के अफसरों ने लिखकर दिया। तत्कालीन एसीएस विनोद कुमार का ध्यान सिर्फ कमीशन पर था। उपसचिव माधवी नागेन्द्र, अधीक्षक मनोज श्रीवास्तव को इस मामले में निलंबित होना चाहिए। दोनों ने गंभीर लापरवाही बरती। आग बुझाने के ऑक्सीजन सिलंडरों का भी अभी पूरी तरह से ऑडिट नहीं हुआ। पांचवी मंजिल पर जिस ओर से आग पूरे फ्लोर में फैली, वहां बोरों में भरकर फाइलें, पुराना फर्जीचर रखा था। पिछले महीने 20 फरवरी को सतपुड़ा की आग के बाद 21 फरवरी को मॉक ड्रिल हुई। मंत्रालय में आग हादसा नहीं , बल्कि जीएडी के अफसरों की गंभीर लापरवाही का नतीजा है।
राजौरा कमेटी की रिपोर्ट में सिफारिश
सतपुड़ा की घटना की जांच के लिए गठित अपर मुख्य सचिव राजेश राजौरा कमेटी ने राज्य शासन को घटना की रिपोर्ट के साथ-साथ भविष्य में आगजनी की घटनाएं रोकने के लिए प्रमुख सिफारिशें की थी। मंत्रालय के अधिकारियों ने सतपुड़ा आगजनी की रिपोर्ट को खोलकर ही नहीं देखा। यही वजह है कि एक भी सिफारिश पर काम नहीं हुआ। राजौरा कमेटी ने सतपुड़ा भवन की आग के बाद राज्य शासन को भविष्य में आगजनी से बचने के लिए प्रमुख सिफारिशें की थी। जिनमें सरकारी भवनों के अलावा आवासीय भवन, व्यावसायिक इमारतों को आगजनी की घटनाओं से बचाने के लिए प्रमुख सुझाव दिए थे। इनमें फायर सेफ्टी एक्ट, फायर सेफ्टी अधिकारी की नियुक्ति अनिवार्य रूप से करना था। फायर सेफ्टी अधिकारी की जिम्मेदारी रहेगी कि पूरे भवन में बिजली लाइनों से लेकर सभी तरह की लाइनों का लोड, बिजली उपकरणों, भवन एवं बिजली लाइन की क्षमता के अनुसार फिट करना। अग्निशमन यंत्रों का नियमित रख-रखाव होना। मंत्रालय में आगजनी से बचाव के लिए एक भी सिफारिश का पालन नहीं किया गया। सतपुड़ा की घटना को अधिकारियों ने गंभीरता से लिया होता तो मंत्रालय में 9 मार्च को आगजनी की विकराल घटना नहीं होती।
फायर सेफ्टी सिस्टम की खुली पोल
सतपुड़ा और वल्लभ भवन में पांच मंजिल हैं। दोनों भवनों पांचवी मंजिल की आग बुझाने में पूरा सिस्टम नाकाम साबित रहा है। वहीं दूसरी ओर प्रदेश में 25 मंजिल से ज्यादा के आवासीय भवन हैं। साथ ही व्यावसायिक भवन भी हैं। ऐसे में यदि इन भवनों में ऐसी घटनाएं होती हैं तो फिर हालात भयाभय हो सकते हैं। सरकार के पास आग बुझाने के लिए उपलब्ध संसाधनों की पोल खुल गई है। मंत्रालय में आगजनी की घटना में सबसे ज्यादा सक्रियता नगरीय प्रशासन विभाग ने निभाई। राजधानी के सभी फायर स्टेशनों से बड़ी फायर ब्रिगेड सूचना के एक घंटे के भीतर मंत्रालय परिसर में पहुंच चुकी थी। पास के फायर स्टेशनों से आधे घंटे के भीतर फायर ब्रिगेड ने पहुंचकर ऑपरेशन शुरू कर दिया था। साथ ही सीहोर, विदिशा, मंडीदीप एवं अन्य नगरीय निकायों से भी दमकल अमला बुलाया गया। आगजनी की घटना के तत्काल बाद मुख्यमंत्री सचिवालय सक्रिय हो गया। सचिवालय के अधिकारियों ने नगर निगम, फायर बिग्रेड, एयरपोर्ट, सेना, भेल एवं अन्य संस्थाओं के पास उपलब्ध संसाधनों को मंत्रालय बुलवाया। सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव अनिल सुचारी प्रवेश पत्र कार्यालय में आग पर पूरी तरह से काबू पाने तक बैठे रहे। साथ में जीएडी के अन्य अधिकारी भी मौजूद थे।

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