रैगांव उपचुनाव:भाजपा व कांग्रेस के बीच रोचक मुकाबले की बनी स्थिति

रैगांव उपचुनाव
  • बसपा के मैदान में न होने से अनुमान लगाना हुआ कठिन…

    भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम।
    प्रदेश में जिन चार सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, उन सभी में कमोवेश कांग्रेस व भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है, लेकिन इनमें शामिल सतना जिले की रैगांव सीट की अगर बात की जाए तो वहां पर भाजपा व कांग्रेस के बीच बेहद रोचक मुकाबला दिखना शुरू हो गया है। यह स्थिति फिलहाल इस उपचुनाव के लिए नामांकन दाखिल होने के बाद उभरी है। दरअसल यह सीट उन सीटों में शामिल है, जिस पर बसपा का प्रभाव माना जाता है।
    इस सीट पर बसपा उम्मीदवार हमेशा से ही कांग्रेस व भाजपा का न केवल चुनावी गणित बिगाड़ते रहे हैं। बल्कि बीते चुनाव से पहले तो बसपा जीत तक दर्ज करा चुकी है। इस बार उपचुनाव होने की वजह से बसपा चुनावी मैदान से बाहर है, जिसकी वजह से ही इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर की स्थिति बन गई है। खास बात यह है कि इस सीट पर नामांकन के दौरान भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आने के बाद माहौल बनता दिखना शुरू हो गया है। खास बात यह है कि इस सीट पर पहली बार ऐसा देखने को मिला है कि पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी की घोषणा के बाद भाजपा की ओर से चार लोगों द्वारा अपने नामांकन जमा कराए गए हैं। जानकारों की माने तो इसकी वजह है पार्टी के कुछ नेताओं को उम्मीद थी कि स्थानीय स्तर पर भाजपा प्रत्याशी के विरोध के चलते उन्हें मौका मिल सकता है।
    थाम ली गई बगावत
    मुख्यमंत्री द्वारा नामांकन दाखिला कराने के बाद रैगांव में आयोजित सभा में मुख्य बागी पूर्व विधायक स्वर्गीय जुगलकिशोर बागरी के पुत्र पुष्पराज बागरी को मना लिया गया।  यही नहीं भाजपा की अधिकृत प्रत्याशी प्रतिमा बागरी को लेकर मुख्यमंत्री को मंच से कहना पड़ा कि यह चुनाव जनता और कार्यकर्ता को ही लड़ना है, प्रत्याशी तो पार्टी का प्रतीक होता है। दूसरी तरफ कांग्रेस प्रत्याशी घोषित होने के बाद पार्टी के अंदर और बाहर पहली बार किसी प्रकार के विरोधी स्वर सुनाई नहीं दिखे, नहीं तो आमतौर पर पिछले तीन चार चुनाव से कांग्रेस ही कांग्रेस के खिलाफ चुनाव मैदान में उतर जाती थी। हालांकि कुछ लोग इसे तूफान से पहले की शांति के रूप में देख रहे हैं। जानकारों की माने तो कांग्रेस में भी भाजपा की ही तरह भितरघात की स्थिति बन सकती है। हालांकि कुछ  लोगों का कहना है कि चित्रकूट विधानसभा उपचुनाव में इस तरह का प्रयास सफल नहीं हो सका था। उधर, भाजपा का एक बड़ा धड़ा संगठन के इस फैसले से खुश नहीं है कि नेता का बेटा या बेटी राजनैतिक उत्तराधिकारी नहीं बन सकता है। परम्परा से राजनीतिक विरासत नेता अपनी आने वाली पीढ़ियों को सौंपते रहे हैं। संगठन ने इस उपचुनाव में उस परम्परा को तोड़ने की जो कोशिश की है। इसका चुनाव परिणाम पर क्या असर पड़ता है यह तो आने वाला परिणाम ही बताएगा।

Related Articles