हाई कोर्ट में फंसी… मध्यप्रदेश सरकार की पदोन्नति नीति

  • तारीख पर तारीख… कर्मचारियों की उम्मीदों को झटका
  • गौरव चौहान
 पदोन्नति नीति

मप्र सरकार ने करीब 9 साल बाद प्रदेश के लाखों कर्मचारियों की पदोन्नति का रास्ता खोला था, लेकिन नए और पुराने नियमों को लेकर कर्मचारियों का एक वर्ग हाई कोर्ट पहुंच गया। उसके बाद हाईकोर्ट ने फिलहाल पदोन्नति पर रोक लगा दी है। वहीं हाई कोर्ट में अभी तक दो बार सुनवाई टल गई है। ऐसे में कर्मचारियों को डर सता रहा है की तारीख पर तारीख में पदोन्नति का मामला फिर अधर में न चला जाए।
गौरतलब है कि कर्मचारियों की पदोन्नति संबंधी याचिका सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन होने के कारण वर्ष 2016 से प्रदेश में प्रमोशन रुके हुए हैं। जैसे-तैसे मप्र सरकार की पहल पर कर्मचारियों की पदोन्नति का रास्ता साफ हुआ, तो यह मामला एक बार फिर मप्र हाईकोर्ट की तारीख में अटक गया है। मप्र हाईकोर्ट जबलपुर में कर्मचारियों की पदोन्नति के नए नियमों को लेकर लगी याचिकाओं पर 15 जुलाई को सुनवाई टल गई थी। चूंकि सुनवाई की अगली तारीख अभी तय नहीं है, इसलिए प्रदेश के 5 लाख से ज्यादा कर्मचारी परेशान हैं। वे असमंजस में हैं कि मामले में अगली सुनवाई कब होगी और कोर्ट का क्या फैसला आएगा?
विभागीय पदोन्नति समिति की बैठकों पर रोक
कर्मचारियों की याचिकाओं पर 7 जुलाई को हुई पहली सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने सरकार को अगली सुनवाई तक पदोन्नति की प्रक्रिया पर रोक लगाने का आदेश दिया था। कोर्ट के आदेश पर सभी 54 विभागों में विभागीय पदोन्नति समिति की बैठकों पर रोक लगी हुई है। पदोन्नति प्रक्रिया शुरू होगी या पूर्व की तरह प्रमोशन पर रोक बरकरार रहेगी, यह हाईकोर्ट के फैसले पर निर्भर करेगा। यही वजह है कि कर्मचारी कोर्ट की अगली सुनवाई का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।  पदोन्नति मामले की सुनवाई हाईकोर्ट के नवनियुक्त चीफ जसिटस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की खंडपीठ कर रही है। दरअसल, वर्ष 2016 से सुप्रीम कोर्ट में मप्र के कर्मचारियों की पदोन्नति संबंधी याचिका विचाराधीन है। पदोन्नति का रास्ता खोलने के लिए डॉ. मोहन यादव कैबिनेट ने 17 जून को मप्र लोक सेवा प्रमोशन नियम-2025 को मंजूरी दी थी। सरकार ने पदोन्नति के नए नियमों के संबंध में 19 जून को गजट नोटिफिकेशन जारी कर दिया था। इसके बाद मुख्य सचिव अनुराग जैन ने 26 जून को सभी विभागों के एसीएस, पीएस, सचिव, आयुक्त और विभागाध्यक्षों के साथ बैठक कर 31 जुलाई से पहले पूर्व विभागीय पदोन्नति समिति (डीपीसी) की पहली बैठक बुलाने के निर्देश दिए थे, ताकि दिसंबर, 2024 की स्थिति में प्रमोशन के लिए पात्र कर्मचारियों को पदोन्नति दी जा सके। सीएस के निर्देश पर सभी विभागों ने डीपीसी की बैठकें बुलाने की तैयारियां कर ली थीं। इस बीच पदोन्नति के नए नियमों के विरोध में कुछ कर्मचारी हाईकोर्ट पहुंच गए। हाईकोर्ट ने 7 जुलाई को कर्मचारियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार को अगली सुनवाई (15 जुलाई) में कर्मचारियों की पदोन्नति के पुराने नियम (वर्ष 2002) और नए नियम (वर्ष 2025) में अंतर संबंधी तुलनात्मक चार्ट पेश करने का आदेश दिया था। साथ ही अगली सुनवाई तक पदोन्नति प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट में 15 जुलाई को मामले में सुनवाई नहीं होने के कारण कर्मचारी निराश हैं।
अधिकांश विभागों ने कर ली थी डीपीसी
पदोन्नति नियम लागू होने से कई विभागों ने डीपीसी कर ली थी। पदोन्नति की सूची तक तैयार हो गई थी, लेकिन हाई कोर्ट में निर्णय के बाद विभागों ने अब फिलहाल पदोन्नति आदेश निकालने की प्रक्रिया रोक दी है। इससे पहले राज्य निर्वाचन आयोग में तो नए नियमों के तहत दो पदोन्नति सूची भी जारी कर दी थी। दरअसल, सामान्य वर्ग के अधिकारियों-कर्मचारियों ने पदोन्नति नियम 2002 के आरक्षण संबंधी प्रविधानों के विरोध में हाई कोर्ट जबलपुर में याचिका दायर की थी। वर्ष 2016 में हाई कोर्ट ने नियम को विधि विरुद्ध मानते हुए निरस्त कर दिया था। तब से पदोन्नतियां बंद थीं और कर्मचारी संगठन सरकार पर नए नियम लागू करने को लेकर दबाव बना रहे थे। सरकार ने विधि विशेषज्ञों और कर्मचारी संगठनों के प्रतिनिधियों से परामर्श करने के बाद नए नियम बनाए लेकिन इसमें भी आरक्षण संबंधी वही सब प्रविधान किए गए जो पहले थे। आरक्षित वर्ग को 36 प्रतिशत आरक्षण देने के साथ अनारक्षित वर्ग के पदों पर पदोन्नति का अवसर भी दिया। वहीं, पुराने नियम से जो अधिकारी-कर्मचारी पदोन्नत होकर सामान्य वर्ग से आगे हो गए थे, उन्हें पदावनत भी नहीं किया। जबकि, हाई कोर्ट ने पदावनत करने के लिए कहा था। इसके विरुद्ध सरकार उच्चतम न्यायालय चली गई थी और यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दिए गए थे। तब से न तो पदोन्नतियां हुईं और न ही किसी को पदावनत किया गया।
कर्मचारियों को अगली सुनवाई का इंतजार
सपाक्स के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. केएस तोमर का कहना है कि सभी कर्मचारी हाई कोर्ट की अगली सुनवाई का इंतजार कर रहे हैं। कोर्ट के फैसले के आधार पर तय करेंगे की आगे क्या करना है? आधिकारिक जानकारी के मुताबिक डीपीसी की पहली बैठक के बाद ही साढे 4 लाख से ज्यादा कर्मचारियों को प्रमोशन मिल जाएगा। यह पदोन्नति के लिए पात्र कुल कर्मचारियों की संख्या का 90 प्रतिशत है। ये वे कर्मचारी है, जो दिसंबर, 2024 की स्थिति में पदोन्नति के लिए पात्र है। सामान्य प्रशासन, संसदीय कार्य जैसे छोटे विभाग डीपीसी की बैठक बुलाने की तैयारी कर चुके हैं, उन्हें कोर्ट के आदेश का इंतजार है। बता दें कि प्रदेश में नौ साल से पदोन्नति पर रोक लगी होने के कारण इस अवधि में एक लाख से ज्यादा कर्मचारी बगैर प्रमोशन मिले रिटायर्ड हो चुके हैं। पदोन्नति के जो नए नियम बने हैं उसके अनुसार पदोन्नति के लिए रिक्त पदों को एससी (16 प्रतिशत), एसटी (20 प्रतिशत) और अनारक्षित में बांटा जाएगा। पहले एससी-एसटी के हिस्से वाले पद भरे जाएंगे। फिर अनारक्षित पदों पर एससी-एसटी से लेकर सभी दावेदार पात्र होंगे।  क्लास-1 अधिकारी के लिए लिस्ट मेरिट कम सीनियोरिटी के आधार पर, जबकि क्लास-2 और नीचे के पदों के लिए सीनियोरिटी कम मेरिट के आधार पर दावेदारों की सूची बनेगी। पूर्व में प्रमोशन पा चुके कर्मचारियों को रिवर्ट नहीं किया जाएगा, न रिटायर्ड कर्मचारियों को लाभमिलेगा। डीपीसी में एससी-एसटी वर्ग का एक-एक अधिकारी शामिल होगा।

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