नरवाई से कोयला बनाने का प्रोजेक्ट अधर में

 कोयला

कृषि, पर्यावरण और एमएसएमई विभाग के बीच फुटबॉल बनी योजना

भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। हर साल दिल्ली में प्रदूषण फैला कर हाहाकार मचाने वाली नरवाई से मप्र में निजात पाने के लिए सरकार ने कोयला बनाने की घोषणा की थी। लेकिन करीब 20 माह बाद भी प्रोजेक्ट कागजों से बाहर नहीं आ पाया है। बताया जाता है कि तीन विभागों कृषि, पर्यावरण और एमएसएमई विभाग के बीच समन्वय नहीं होने के कारण यह प्रोजेक्ट अधर में लटका हुआ है। गौरतलब है कि पंजाब-हरियाणा में नरवाई जलायी जाती है तो दिल्ली में प्रदूषण फैल जाता है। इसकी गूंज पूरे देश में सुनाई देती थी। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। नरवाई जलाने पर रोक लगायी गयी। तमाम उपाय सरकार ने किए। लेकिन नरवाई जलाने का मामला थम नहीं रहा है।
मप्र में भी कुछ सालों से अधिकांश किसान नरवाई जलाने लगे हैं। ऐसे में सरकार ने निर्णय लिया था कि फसल कटने के बाद बचे इस कचरे से मध्य प्रदेश में कोयला बनाया जाएगा। इसके लिए सरकार ने पायलट प्रोजेक्ट होशंगाबाद में शुरू करने की घोषणा की थी। किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मप्र सरकार का ये बड़ा फैसला था। कृषि मंत्री कमल पटेल ने होशंगाबाद और हरदा में नरवाई से कोयला बनाने का प्रोजेक्ट लाने और इसे जल्द शुरू करने का भरोसा दिया था। उन्होंने अधिकारियों से पूरी कार्ययोजना मांगी थी लेकिन 20 माह बाद भी प्रोजेक्ट के नाम पर शुरूआत भी नहीं हुई है।
20 महीने पहले की थी घोषणा
गौरतलब है कि 24 फरवरी 2021 को मंत्रालय में कृषि मंत्री कमल पटेल ने विभागीय अफसरों के साथ बैठक की थी। उन्होंने कहा था नरवाई से प्रदेश में कोयला बनाया जाएगा। इसका पायलेट प्रोजेक्ट होशंगाबाद में प्रारंभ होगा। उन्होंने अधिकारियों को कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश भी दिए। नरवाई से कोयला बनने पर जहां पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाया जा सकेगा, वहीं किसानों को आर्थिक लाभ प्राप्त होगा। बिजली और गैस की तुलना में कोयले से प्राप्त होने वाली ऊर्जा सस्ती होगी। किसानों को नरवाई को जलाने से मुक्ति मिलेगी। किसानों के आर्थिक सुदृढ़ीकरण में मदद मिलेगी। पटेल ने बताया था कि पायलेट प्रोजेक्ट होशंगाबाद में लगाया जाएगा। बेहतर परिणाम मिलने पर इसे प्रदेश स्तर पर क्रियान्वित किया जाएगा। उन्होंने बाद में हरदा में भी इस प्रोजेक्ट को लाने की बात कही थी। मंत्री का वचन इसलिए अटका है। क्योंकि नरवाई से कोयला बनाने के प्रोजेक्ट में तीन विभाग शामिल होंगे। इनमें कृषि, पर्यावरण और एमएसएमई प्रमुख हैं। कृषि विभाग किसानों से नरवाई तो एकत्र करवा लेगा लेकिन कोयला बनाने के लिए औद्योगिक इकाई तो एमएसएमई के माध्यम से स्थापित होगी।
निवेशकों को आकर्षित करने पर जोर
नरवाई से कोयला बनाने का प्लान कैसा हो, इसके लिए भोपाल में विशेषज्ञों के साथ संगोष्ठी कराई जाए। संगोष्ठी में आए सुझावों के आधार पर पॉलिसी तैयार हो। दूसरे प्रदेशों में अगर नरवाई से कोयला बनाने की इकाई स्थापित हैं, तो वहां जाकर अध्ययन किया जाए। विचार यह भी चल रहा है कि निवेशक को किस तरह से आकर्षित किया जाए। जैसे कि जीएसटी माफ हो या फिर सब्सिडी दी जाए। पर्यावरण संरक्षण को लेकर भी मंथन जरूरी है। दरअसल, कृषि के साथ और भी विभागों को शामिल होना है। इसलिए प्रोजेक्ट तैयार करते समय सभी बिंदुओं पर चर्चा होना है। संचालक कृषि अभियांत्रिकी राजीव चौधरी का कहना है कि नरवाई से कोयला बनाने के लिए एक अलग पॉलिसी बनाने को लेकर मंथन चल रहा है।
किसानों का होगा आर्थिक फायदा
नरवाई से कोयला बनने पर पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाया जा सकेगा, वहीं दूसरी ओर किसानों को भी फायदा होगा। बिजली और गैस की तुलना में कोयले से मिलने वाली ऊर्जा सस्ती होगी। किसानों को नरवाई को जलाने से मुक्ति मिलेगी। किसान आर्थिक रूप से मजबूत होंगे। प्रदेश में खेतिहर मजदूर न मिलने की वजह से ज्यादातर किसान हार्वेस्टर से गेहूं कटाई कराने लगे हैं।

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