मांग बढ़ते ही…निजी बिजली उत्पादकों ने खड़े किए हाथ

बिजली उत्पादकों
  • हर साल हजारों करोड़ों खर्च के बाद भी एमओयू की नहीं हो पा रही सार्थकता सिद्ध

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। तेजी से दिन व दिन बढ़ रही गर्मी की वजह से प्रदेश में लगातार बिजली की मांग में वृद्धि हो रही है, लेकिन लोगों को ऐसे समय में भी र्प्याप्त बिजली नहीं मिल पा रही है। इससे  सरकार द्वारा प्रदेश में उपलब्ध बिजली के दावों की कलई पूरी तरह से खुल गई है। हालात यह हैं कि इस भीषण गर्मी के समय में हजारों करोड़ रुपए हर साल लेने वाली निजी बिजली उत्पादक कंपनियों ने भी बिजली देने से हाथ खड़े कर दिए हैं। इसकी वजह से सरकार द्वारा उनसे किए गए एमओयू बेकार साबित हो रहे हैं। इसकी वजह से ग्रामीण इलाकों में तो लोगों को हर दिन कम से कम दस घंटे तक अघोषित बिजली कटौति का सामना करना पड़ रहा है। इसकी वजह से जहां सरकार के खजाने से हर साल  हजारों करोड़ रुपए बर्बाद हो रहे हैं , वहीं आमजन को भी बिजली संकट का सामना करना पड़ रहा है। इस मामले में सरकार के साथ ही अफसरों की अदूरदर्शिता अब प्रदेश की जनता को भारी पड़ रही है। बीते माह ही प्रदेश के जिम्मेदार अफसरों ने दो राज्यों के साथ बैंकिंग के बहाने बिजली के करार कर उन्हें बिजली की आपूर्ति शुरू करवा दी है। इसकी वजह से प्रदेश में बिजली का सकंट और बढ़ गया है। सरकार लगातार कई सालों से दावा कर रही है कि प्रदेश में बिजली सरप्लस है। दावों में कहा गया है कि प्रदेश में 22500 मेगावाट बिजली का उत्पादन है , जबकि अभी प्रदेश में 11500 मेगावाट की मांग होते ही अघोषित कई -कई घंटो की कटौति होना शुरू हो चुकी है। यह हाल तब है जबकि सालाना बिजली के लिए 35 हजार करोड़ रुपए का भुगतान किया जाता है। दावा किया जा रहा है कि बिजली की खराब स्थिति की वजह कोयला की कमी है। प्रदेश के बिजली उत्पादन संयत्रों में 5 लाख टन कोयला का रिजर्व स्टॉक होना चाहिए , लेकिन अभी करीब पौने तीन लाख कोयला का ही स्टॉक बचा है। इसकी वजह से प्लाटों में तीन से चार दिन के लिए ही कोयला है। इसकी वजह से संयत्रों को पूरी क्षमता के साथ नहीं चलाया जा पा रहा है। यह हाल प्रदेश में तब बने हुए हैं जब निजि बिजली उत्पादकों से राज्य सरकार ने 25-25 साल तक के लिए एमओयू कर रखे हैं। इनसे बिजली संकट के समय बिजली मिलने के उस समय बड़े-बड़े दावे किए गए थे , लेकिन यह दावे भी पूरी तरह से झूठे साबित हो रहे हैं। इसके बाद भी सरकार इन एमओयू को रद्द करने की हिम्मत नहीं दिख पा रही है। खास बात यह है कि इन एमओयू के चलते सरकार को हर साल निजि कंपनियों को बगैर बिजली खरीदे ही करीब चार हजार करोड़ रुपयों का भुगतान करना पड़ता है।
यह है बिजली का गणित
मप्र में अभी छह हजार मेगावाट का सरकारी उत्पादन होता है , जबकि 5 हजार मेगावाट नेशनल ग्रिड और निजी संयत्रों से ली जाती है। निजी कंपनियों से भी पूरी बिजली नहीं मिल पा रही है। हालात यह हैं कि सरकार बिजली संयत्र कोयले की कमी से परेशान हो रहे हैं , जबकि पानी से बिजली बनाने वाले संयत्रों को पानी की कमी से परेशान होना पड़ रहा है। इसकी वजह से बिजली का उत्पादन कम हो पा रहा है। मध्यप्रदेश में इन दिनों मांग व आपूर्ति में करीब दो हजार मेगावॉट का अंतर बना हुआ है। इस अंतर की वजह है बिजली की बढ़ी मांग और कोयले की किल्लत इससे बिजली संकट गहरा गया है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में 8 से 10 घंटे की बिजली कटौती शुरू हो गई है। सिंचाई के लिए भी किसानों को 5 से 6 घंटे ही बिजली मिल पा रही है। इसकी वजह से अघोषित बिजली की कटौति की जा रही है। मप्र में सामान्य दिनों में 7 से 8 हजार मेगावॉट बिजली की मांग रहती थी, वहीं यह मांग अप्रैल में 12000 मेगावाट पर पहुंच जाती है। इसी सीजन में करीब 35 फीसदी बिजली की मांग मे इजाफा हो जाता है करीब 5000 मेगा वाट बिजली की खपत बढ़ जाती है इससे मध्य प्रदेश में गर्मी के दिनों में बिजली संकट की स्थिति रहती है।
यह है कोयला की स्थिति
प्रदेश में थर्मल प्लांट्स चलाने के लिए प्रतिदिन 58 हजार मीट्रिक टन कोयले की जरूरत होती है, जबकि अभी मिल रहा है करीब 50 हजार मीट्रिक टन कोयला। प्रदेश के चार थर्मल पॉवर प्लांट में श्री सिंगाजी प्लांट में 26 दिन का स्टॉक की जगह सिर्फ 4 दिन का स्टॉक ही बचा हुआ है। इस प्लांट की क्षमता 2520 मेगावॉट है। वहीं, सतपुड़ा थर्मल पॉवर प्लांट में भी 26 दिन का स्टॉक की जगह अभी 7 दिन का कोयला बचा हुआ है। इसकी क्षमता 1330 मेगावॉट है। संजय गांधी प्लांट में भी 26 दिन की जगह सिर्फ 2 दिन का कोयला बचा हुआ है। इसकी क्षमता 1340 मेगावॉट के आसपास है। वहीं, अमरकंट प्लांट में 17 की जगह 14 दिन का कोयला का स्टॉक बचा है। हालांकि, इसकी क्षमता सिर्फ 210 मेगावॉट है। प्रदेश को रोजाना सिर्फ 10 रैंक ही मिल पा रहे है। एक रैक में 4 से 5 हजार मीट्रिक टन कोयले की ढुलाई होती है। इसके अलावा 6 जल विद्युत गृह है। ताप विद्युत गृहों की बिजली उत्पादन क्षमता 4670 मेगावाट है और जल विद्युत गृहों की उत्पादन क्षमता 745 मेगावाट है। इन सभी बिजली घरों से उत्पादन क्षमता से कम बिजली मिली है।
अफसर दिखाते हैं खास मेहरबानी
ऐसा नहीं है कि यह स्थिति प्रदेश में पहली बार बनी है। इसके पहले भी बीते साल सिंतबर में भी इसी तरह की स्थिति बन चुकी है, तब भी निजि बिजली कंपनियों द्वारा बिजली  देने में असमर्थता जाहिर कर दी गई थी, जिससे प्रदेश को बिजली संकट का सामना करना पड़ा था। इसके बाद भी अफसरों ने उन पर कोई कार्रवाई नही की। शर्तों के मुताबिक उन्हें बिजली की आपूर्ति करनी थी। हद तो यह हो गई शर्त पर खरा नहीं उतरने के बाद भी न तो करार ही रद्द किया गया और न ही उन्हें नोटिस तक जारी किए गए  अफसरों की इस मेहरबानी की वजह क्या है यह तो सरकार व अफसर ही जानते हैं।

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