10 घंटे का काम 30 मिनट में करके पैसा कमा रहे प्राइवेट अस्पताल

 प्राइवेट अस्पताल

भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। देश में पैसा कमाने का अनोखा खेल देखिए, 10 घंटे का काम 30 मिनट में करके पैसा कमाया जाता है, लेकिन रिजल्ट की परवाह नहीं की जाती। जबकि रिजल्ट कई बार खतरनाक साबित हो जाता है। बात हो रही है, सिजेरियन डिलीवरी की। मप्र में मुनाफा कमाने के लिए निजी अस्पताल हर दूसरी गर्भवती का सिजेरियन प्रसव कर रहे हैं। ये चौंकाने वाले आंकड़े नेशनल फैमिली हेल्थ मिशन के सर्वे में सामने आए हैं। सर्वें के अनुसार निजी अस्पतालों में सालाना 1.34 लाख के प्रसव हो रहा है। इनमें 52.3 प्रतिशत यानी 70,529 हजार का सिजेरियन प्रसव और 64,327 का सामान्य प्रसव हो रहे हैं।  नेशनल फैमिली हेल्थ मिशन के सर्वे के अनुसार राज्य में हर साल करीब 13.50 लाख प्रसव हो रहे हैं। चिकित्सा विभाग के आंकड़ों के मुताबिक 89.6 फीसदी यानी 11.72 लाख प्रसव सरकारी अस्पतालों में हो रहे हैं। सर्वे के अनुसार, प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में 11.72 लाख गर्भवतियों में सिर्फ 8.2 फीसदी यानी 96,107 हजार केसों में प्रसव जटिलताओं से सर्जरी की जा रही है। इसके उलट निजी अस्पतालों में सालाना 1.34 लाख का प्रसव हो रहा है। इनमें 52.3 प्रतिशत यानी 70,529 हजार का सिजेरियन प्रसव और 64,327 का सामान्य प्रसव हो रहा है। यानी, निजी अस्पतालों में भर्ती हर दूसरी गर्भवती का सिजेरियन प्रसव हो रहा है।
कमाई के लिए सारे मानक दरकिनार
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के अनुसार, सिजेरियन डिलीवरी की दर 15 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। लेकिन सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि निजी अस्पतालों में यह आंकड़ा कहीं ज्यादा है। प्रदेश में छोटे निजी अस्पताल सिजेरियन का 45 से 50 हजार रुपए तक चार्ज करते हैं, जबकि बडेÞ निजी अस्पताल एक लाख से लेकर सुविधा के मुताबिक 1.50 लाख तक वसूलते हैं। यानी यदि कम से कम 50 हजार भी मानकर  चलें तो सालाना औसतन प्राइवेट अस्पताल 70,529 सिजेरियन प्रसव करते हैं। इस हिसाब से कुल सालाना कारोबार 350 करोड़ तक पहुंच जाता है। यानी अस्पताल सिर्फ सिजेरियन प्रसव से 350 करोड़ रुपए से ज्यादा कमा रहे हैं।  स्त्री रोग विभाग सुल्तानिया जनाना अस्पताल की प्रमुख डॉ. अरुणा कुमार का कहना है कि निजी अस्पताल में ये आंकड़ा क्यों है…हम कुछ नहीं बोल सकते। हमारे यहां 100 में 35 से 40 प्रतिशत सिजेरियन प्रसव होते हैं, क्योंकि यदि कहीं जटिल मामला होता है तो हमारे यहां रैफर करते हैं। जैसे हमारे यहां गंजबासौदा से भी सर्जरी के लिए आते हैं, क्योंकि वहां कोई करने वाला नहीं है।
संक्रमण बढ़ने का डर
नॉर्मल डिलीवरी में कई बार 10 से 15 घंटे तक का समय लग जाता है। इसके उलट सीजेरियन डिलीवरी में 30 से 45 मिनट लगते हैं। इससे डॉक्टरों का समय बचता है। दूसरी ओर, सीजेरियन डिलीवरी की अच्छी फीस मिलती है। प्रसूता को सात से आठ दिन तक भर्ती रहना पड़ता है। इस तरह सीजेरियन डिलीवरी को कमाई का जरिया बना लिया गया है। सी-सेक्शन या सिजेरियन एक बड़ी सर्जरी है, इसके खतरे भी हैं। इसमें संक्रमण का खतरा अधिक होता है। महिलाओं को अधिक रक्त बहने, रक्त के थक्के जमने जैसी परेशानी हो सकती है। पहले सिजेरियन प्रसव के बाद अगले प्रसव में भी सिजेरियन करने की मजबूरी बन जाती है। एमजीएम मेडिकल कॉलेज इंदौर के स्त्री रोग विभाग की पूर्व प्रमुख डॉ. लक्ष्मी मारू का कहना है कि किन्हीं जटिलताओं से ही सिजेरियन प्रसव कराया जाता है। अब आॅन डिमांड भी कई लड़कियां सिजेरियन करवाना चाहती हैं। वे दर्द व जोखिम नहीं लेना चाहतीं, इसलिए सिजेरियन चाहती हैं। बात सरकारी अस्पताल की है। तो वहां डॉक्टर होते नहीं है। सिस्टर डिलीवरी करती हैं, इसलिए वहां कोई निर्णय लेने वाला नहीं होता।

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