निकाय चुनाव: कांग्रेस में मंथन की तैयारी, दूसरे चरण पर भी पैनी नजर

निकाय चुनाव

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। विधानसभा चुनाव के डेढ़ साल पहले हुए नगरीय निकाय चुनाव के पहले चरण की मतगणना के बाद अब कांग्रेस ने इन परिणामों के विश्लेषण करने की तैयारी शुरू कर दी है। इसके लिए सभी जिलों से कांग्रेस पार्षदों की हार-जीत की पूरी जानकारी तलब की गई है। इसके साथ ही कुछ जिलों से तो पीसीसी तक चुनावी जानकारी आ भी गई है, जबकि शेष जिलों से जल्द ही जानकारी भेजने को कहा गया है। उधर, कांग्रेस को दूसरे चरण में विंध्य और बुंदेलखंड अंचल के परिणामों से अच्छी उम्मीदें बनी हुई हैं। दूसरे चरण की मतगणना कल होनी है। इस मतगणना का डिटेल भी जल्द भेजने को पहले से ही कह दिया गया है। दरअसल इस आने वाली जानकारी के आधार पर निकायों में पार्टी के विधायकों द्वारा दिलाए गए पार्षद पद के टिकटों की हार जीत का विश्लेषण कर विधायकों से उनसे संबंधित निकायों में मिली हार-जीत को लेकर कैफियत ली जाएगी। इसके डाटा के मिलान के लिए पीसीसी चीफ द्वारा अलग से टीम बनाई गई है। दरअसल यह पूरी कवायद आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर की जा रही है। कांग्रेस सूत्रों की माने तो कमलनाथ नगर निगमों में पार्टी के महापौर प्रत्याशियों के प्रदर्शन से संतुष्ट हैं, लेकिन पार्षद प्रत्याशियों की हार को लेकर वे बेहद गंभीर बने हुए हैं। चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद नाथ द्वारा बीते दो दिनों में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से भी चर्चा की जा रही है। उनके द्वारा सभी जिलों के संगठन से पार्षद प्रत्याशियों के हार के कारणों की विस्तृत रिपोर्ट भी मांगी गई है। दरअसल बीते माह पार्षद पद के टिकट वितरण के बाद कमलनाथ ने निकाय चुनाव के जिला व संभाग प्रभारियों के साथ बैठक में कहा था की  यह चुनाव न सिर्फ शहर की सरकार का फैसला करेंगे, बल्कि 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमीफायनल भी हैं। सभी विधायक और विधानसभा चुनाव लड़ने के दावेदार यह बात अच्छी तरह से याद रखें कि निकाय चुनाव का प्रदर्शन उनका रिपोर्ट कार्ड भी बनेगा। जिन विधायकों ने टिकट दिलवाए हैं। अब जिताने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की ही है। नगरपालिका और नगर परिषदों के 904 वार्ड के लिए चुनाव हुए थे, जिनमें से भाजपा को 531, कांग्रेस को 271, अन्य को 94 और आप को 4 और 4 बसपा को मिले हैं। इन नतीजों से साफ है कि कांग्रेस को इन निकायो में 904 में से 500 से ज्यादा निकाय जीतने का आंकलन था, जिसमें से 271 पर ही उसके पार्षद जीत सके हैं।
तन्खा का कद बढ़ा
राज्य सभा सदस्य विवेक तन्खा भले ही खुद लोकसभा का चुनाव हार गए हों , लेकिन जबलपुर में जगत बहादुर सिंह की जीत ने उनका सियासी कद बहुत बढ़ा दिया है। तन्खा के करीबी जगत बहादुर सिंह को संगठन का पद भी उनकी पंसद की वजह से दिया गया था और मेयर का प्रत्याशी भी पार्टी ने तन्खा की सिफारिश पर ही बनाया था। टिकट तय होते ही तन्खा खुद पूरी तरह से शहर में सक्रिय रहे। उन्होंने कांग्रेस के अलावा शहर के बुद्धिजीवियों पर भी अपना फोकस बनाए रखा और प्रत्याशी के पक्ष में माहौल बनाने में लगे रहे।
भोपाल संभाग पड़ा भारी
कांग्रेस को सर्वाधिक हार का सामना भोपाल संभाग में करना पड़ा है। सीहोर में कांग्रेस को 50 में महज 9 पर जीत मिली है। इस जिले में 17 प्रत्याशी निर्विरोध विजय रहे हैं। इसी तरह विदिशा जिले में भाजपा को 44 और कांग्रेस को 13 पार्षद मिले।
निर्दलीयों ने किया नुकसान
निर्दलीय प्रत्याशियों ने भाजपा और कांग्रेस दोनों को नुकसान पहुंचाया है। पहले चरण में पार्षद पद पर 384 निर्दलीय जीते और 553 निर्दलीय प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहे हैं। इनकी वजह से भाजपा व कांग्रेस के प्रत्याशियों को कई जगह तीसरे स्थान तक पर रहना पड़ा है। बालाघाट जिले में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली जबकि 10 निर्दलीय जीते। टीकमगढ़ जिले में सिर्फ दो पार्षद जीते और 14 निर्दलीय आए। छतरपुर जिले में 14 और पन्ना जिले में 16 निर्दलीय जीते। सतना में यह संख्या 24 तक पहुंच गई।
इन नेताओं का कद हुआ कम
पार्टी के कई दिग्गज नेताओं का पहले चरण की मतगणना के बाद पार्टी में कद बेहद कम हो गया है , जबकि कुछ नेताओं के कद में भारी वृद्वि हुई है। अगर बात पूर्व केन्द्रीय मंत्री व पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सुरेश पचौरी की बात की जाए तो उनकी पंसद के आधार पर इटारसी व सोहागपुर में प्रत्याशी बनाए गए थे, लेकिन दोनों ही जगह पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है। सोहागपुर नगरपरिषद जब से बनी थी तब से कांग्रेस के पास थी, लेकिन इस बार वहां भी हार गई। भोपाल की बात की जाए तो नरेला विस क्षेत्र में  जिला कांग्रेस अध्यक्ष कैलाश मिश्रा और युवा नेता मनोज शुक्ला की पंसद को तरजीह दी गई थी। इस क्षेत्र में पिछले चुनाव में पांच पार्षद थे , जिनकी संख्या अब कम होकर 2 रह गई है। इसी तरह से आरिफ मसूद के खुद के वार्ड में भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। उनके वार्ड से दो बार से पार्टी को हार का सामना करना पड़ रहा है। इसी तरह से पार्टी के संगठन महामंत्री चंद्र प्रभाष शेखर , पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा व जीतू पटवारी का के खुद के वार्ड में भी कांग्रेस नहीं जीत सकी है। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति के इलाके गोटेगांव में भी कांग्रेस हार गई। इसी तरह से नरिसंहपुर और करेली में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। ये चारों नगरीय निकाय पूर्व मुख्यमंत्री दिग्वजिय सिंह के प्रभाव वाले हैं, जहां कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। राजगढ़ में 15 वार्डों में से सिर्फ 3 में ही कांग्रेस प्रत्याशी जीत सके हैं।
कांग्रेस को दिख रहीं संभावनाएं
दूसरे चरण में जिन नगरीय निकायों के चुनाव परिणाम आने है उनमें कांग्रेस को खासतौर पर विंध्य और बुंदेलखंड से उम्मीदें लगी हुई हैं। इन दोनों ही अंचलों में पहले चरण में कांग्रेस ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी है। इसी तरह से पहले चरण में चंबल और ग्वालियर अंचल के भिंड और ग्वालियर में कांग्रेस ने बड़ा झटका भाजपा को दिया है। विंध्य में कांग्रेस को संतोषजनक परिणाम मिले हैं। रीवा जिले में भाजपा को 18 तो कांग्रेस को 14 पार्षद, सतना जिले में 120 पार्षद पदों में भाजपा को 56 और कांग्रेस के खाते में 35 पद आए हैं। सतना में महापौर प्रत्याशी की हार की वजह बने हैं पार्टी छोड़कर बसपा से प्रत्याशी बने पूर्व मंत्री सईद अहमद। उमरिया जिले की 54 पदों में भाजपा के 23 और कांग्रेस के 22 पार्षद प्रत्याशी जीते। इसी तरह से बुंदेलखंड के तीन जिलों में प्रदर्शन देखा जाए तो छतरपुर जिले में 86 पदों में से भाजपा 42 और कांग्रेस 29 पर विजयी रही है। दमोह में पूर्व मंत्री जयंत मलैया के पुत्र सिद्धार्थ के समर्थक मैदान में थे, बावजूद कांग्रेस के 26 पार्षद बने। बड़ा नुकसान सागर जिले में हुआ है। यहां 153 में से कांग्रेस को महज 17 सीटें ही मिलीं।

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