- एम-सेंड नीति तैयार कर रही मप्र सरकार
- गौरव चौहान

प्रदेश की नदियों में हो रहे रेत के अवैध खनन को रोकने के लिए सरकार एम-सैंड (मैन्युफैक्चर्ड सैंड) को प्रोत्साहित करने पर बल देगी। राज्य सरकार एम-सैंड नीति बनाने जा रही है, जिससे प्राकृतिक रेत और मौरंग के एक नए विकल्प की उपलब्धता होगी। सरकार की मंशा है कि पर्यावरण एवं नदियों के इकोसिस्टम को बिना नुकसान पहुंचाए सस्टनेबल विकास को गति दिया जाए। इस दृष्टि से एम-सैंड एक बेहतर माध्यम है। नदी तल से प्राप्त होने वाली रेत की सीमित मात्रा और इसकी बढ़ती मांग के दृष्टिगत एम- सैंड को नदी तल से प्राप्त होने वाली रेत के विकल्प के रूप में बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इससे रोजगार के भी नए अवसर सृजित होंगे।
जानकारी के अनुसार पर्यावरण और नदियों के संरक्षण के लिए सरकार एम-सेंड (मैन्यूफेक्चर्ड सैंड यानी पत्थर से बनने वाली रेत) को बढ़ावा दे रही है। इससे नदियों से रेत लेने की निर्भरता कम होगी। इसके साथ ही बारिश के दौरान घर बनाने वालों को सस्ती रेत मिलेगी। सरकार एम-सेंड नीति तैयार कर रही है, यह नीति अगले माह बनकर तैयार हो जाएगी। इसकी ड्राफ्ट रिपोर्ट तैयार कर ली गई है। प्रदेश में प्रति वर्ष सवा करोड़ घन मीटर रेत की जरूरत होती है। सरकार ने प्रदेश के 44 जिलों में स्थित 1,093 रेत खदानों से 3 करोड़ 11 लाख घन मीटर रेत तीन वर्ष के अंदर निकालने के लिए अनुबंध किया है। इसमें सबसे ज्यादा 64 लाख घन मीटर रेत नर्मदापुरम जिले में स्थित रेत खदानों से निकाली जाती है।
प्रदेश में बड़े पैमाने पर होता है अवैध उत्खनन
मध्य प्रदेश ऐसा प्रदेश बन चुका है, जिसकी पहचान अवैध रेत उत्खनन वाले प्रदेश के रुप में होती है। प्रशासन की मिली भगत और राजनैति संरक्षण की मदद से बैखोफ होकर रेत माफिया जमकर अवैध खनन कर रहा है। यह काम सर्वाधिक दूसरे राज्यों की लगी सीमा वाले इलाकों में होता है। प्रशासन के हाल इससे ही समझे जा सकते हैं कि बालाघाट जिले में रेत का अवैध उत्खनन और परिवहन का कार्य जोरों पर होने की शिकायतों के बाद जब जिला प्रशासन और खनिज विभाग आंखे बंद कर बैठा रहो तो वहां पर इसी साल क्षेत्रीय विधायकों को मैदान में उतराना पड़ गया था। इसके लिए उन्हें ख्ुाद प्रशासनिक अमला ले जाकर अवैध रेत घाटों पर दबिश देकर रेत परिवहन में लगे मशीनों और डंपरों पर कार्यवाही करवानी पड़ी। इन विधायकों में कटंगी विधायक गौरव पारधी, वारासिवनी विधायक विवेक पटेल और परसवाड़ा विधायक मधु भगत शामिल थे।
बिना अनुमति मशीनों से निकालते हैं रेत
बता दें कि एक दिन पहले 10 जून को बालाघाट विधायिका अनुभा मुंजारे ने शहर से लगे धापेवाडा गांव के संचालित अवैध रेत घाट पहुंचकर दबिश दी, तो यहां पहुंचते ही उनके होश उड़ गए। मौके पर उन्होने पाया कि यहां रेत का अवैध खनन और परिवहन जोरो से चल रहा है। बिना अनुमति के नदी के बीच रास्ता बनाकर मशीनों से रेत निकाली जा रही थी। जबकि यह घाट स्वीकृत नहीं है। यह जानने के बाद विधायिका अनुभा मुंजारे सख्त रुख अख्तियार किया और रेत उत्खनन व परिवहन में लगे 06 डंपरो को जप्त करवाया। जिसके बाद मौके पर माफियाओ में ह्डक़ंप मच गया था।
प्लांट लगाने का मिलेगा लाइसेंस
सूत्रों के अनुसार अब गिट्टी, पत्थर की खदान की लीज और क्रेशर संचालित करने का लाइसेंस लेने वालों को एम-सेंड प्लांट लगाने के लिए सरलता से लाइसेंस मिल जाएगा। गिट्टी, पत्थर की पुरानी खदानों के संचालन की भी अनुमति मिलेगी। इसके लिए सिर्फ एक आवेदन देना होगा। उद्योग विभाग प्लांट लगाने पर 40 फीसदी की छूट देगा। खनिज साधन विभाग ने इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए रॉयल्टी में भी छूट दी है। इस तरह की रेत में 50 रुपए प्रति घन मीटर न्यूनतम कीमत रखी है। जबकि नदियों से निकलने वाली रेत खदानों के लिए 250 रुपए प्रति घन मीटर न्यूनतम कीमत रखी गई है। नदियों से निकाली गई रेत की कीमतें ठेकेदार पर निर्भर है। ठेकेदार जितनी महंगी रेत खदानें लेगा उतनी ही महंगी रेत बेचेगा। वर्तमान में कई जगह रेत तीन सौ रुपए घनमीटर तक रेत मिलती है। जबकि एम-सेंड में इसका प्रभाव नहीं होता है।
उद्योग लगाने मिलेगी सुविधा
रेत, गिट्टी, पत्थर और क्रेशर से जुड़े कारोबारी भी एम-सेंड उद्योग को फायदे का सौदा मान रहे हैं। उन्होंने इस बारे में पॉजिटिव फीडबैक दिया है। तीन साल पहले शुरू हुए एमसेंड के लाइसेंस में अब तक भोपाल, कटनी, जबलपुर सहित कई जिलों में 75 संयंत्र स्थापित कर दिए गए हैं। पिछले वर्ष एम-सेंड से सरकार को 4 करोड़ रुपए रॉयल्टी मिली थी। छतरपुर के एम-सेंड कारोबारी रुचिर जैन का कहना है कि बाजार में एम-सेंड की डिमांड ज्यादा है। इसकी क्वालिटी नदियों की रेत से बेहतर होती है। इसकी रेत सस्ती भी है। प्रदूषण भी नहीं होता है। सरकार भी इस उद्योग को प्रमोट करने में लगी है। संचालक खनिज साधन विभाग अनुराग चौधरी का कहना है कि पर्यावरण और नदियों को बचाने के लिए एम-सेंड पर जोर दिया जा रहा है। कोल और ग्रेनाइट की खदानों के संचालन से पहले उनसे बहुत सारे पत्थर निकलते हैं। इसके एम-सेंड बनाने में उपयोग होगा। इसके अलावा गिट्टी, पत्थर के खदान संचालकों को इसके उद्योग लगाने पर सुविधा दी जाएगी। प्रदेश में एम-सेंड नीति भी तैयार की जा रही है। नदियों से निकलने वाली रेत से एमसेंड बेहतर होती है। इसमें मिट्टी नहीं होती है। इसकी पकड़ भी मजबूत होती है। बिल्डर और कारोबारी मुकेश यादव के अनुसार एम-सेंड मिट्टी-धूल नहीं होने के कारण सीमेंट से पकड़ मजबूत होती है। एम-सेंड के दाने बराबर होते हैं, इससे प्लास्टर और फ्लोरिंग के लिए उपयोगी है।