कुमार गंधर्व के लिए बेटी से बढ़कर थीं प्रभादेवी लुनावत

  • गौरीशंकर दुबे
प्रभादेवी लुनावत

स्मृति शेष : प्रभादेवी लुनावत

शास्त्रीय गायक शिव पुत्र सिद्धारमैय्या कोमकली मठ (कुमार गंधर्व) के पड़ोसी मोतीलाल सुराना स्वतंत्रता संग्राम सैनानी थे। देवास में तेल मिल चलाते थे। तब इंदौर से उज्जैन और भोपाल जाने वाले ट्रेनें देवास में नहीं रुकती थीं। उन्हीं के कहने पर देवास ट्रेन पहुंची थी। उनकी बेटी प्रभा देवी को कुमार गंर्धव अपनी बेटी मानते थे। उस जमाने में श्वेतांबर जैन परिवार में जो खास पकवान बनते, उन्हें कुमार गंधर्व तक परोसने का काम प्रभा देवी ही करती थीं। कुमार गंधर्व को अस्थमा था। प्रभा देवी उन्हें घर का बना ताजा छांछ देकर आती थीं। 1955 में रसायन शास्त्र के शिक्षक सुरेश लुनावत के साथ विवाह होने के बाद जब वे देवास जातीं, तो कुमार गंधर्व से जरूर मिलती थीं। सैलाना, झाबुआ, मंडलेश्वर, बबलई, पानसेमल, खेतिया में रहने के बाद प्रभा देवी अपने बेटे संजय और बेटियों साधना और नैना को उच्च शिक्षा के लिए इंदौर ले आईं, क्योंकि सुरेश लुनावत के तबादले होते रहते थे। तब उनकी पगार 765 रुपए थी। संगम नगर में मकान की किश्त 275 रुपए आती थी, लेकिन प्रभा देवी को पढ़ाई का महत्व पता था। संजय लुनावत ने इस शहर में अपना बड़ा पुरुषार्थ साबित किया है। वे कहते हैं-मां ने एक बड़ी सीख दी, जिसका मैं अक्षरश: पालन करता हूं-गम खाओ, कम खाओ, लेकिन नाक की सीध में चलो। लोगों की पदवी, धन दौलत, शौहरत के बजाय उनसे प्रेम करो।
कोई सवा महीने पहले संजय लुनावत कोविड का इलाज करा रहे थे। अस्पताल से लेकर आईसोलेशन तक वे मां से दूर रहे। शायद यही दिन थे, जबकि उन्होंने बरसों से चले आ रहे उस नियम को तोड़ा, जबकि परिवार रात का खाना साथ खाता था। प्रभा देवी के यहां जिन मेहरियों ने काम किया, उनके बच्चों के कपड़े लत्तों से लेकर पढ़ाई यहां तक कि कन्याओं का विवाह भी उन्होंने ही कराया। ईश्वर आराधना में लीन रहने वाली प्रभा देवी अब ईश्वर के श्रीचरणों में हैं। बेटे को एक और काम दे गई है कि जो बच्चे कोविड काल में अनाथ हो गए, उनके लिए एक आश्रम बना दो, जहां शिक्षा के साथ जीवन बनाने के साधन सुविधा हों। मां का आदेश सर्वोपरि मानने वाले संजय ने दो दिन पहले ही योजना पर काम शुरू कर दिया है।

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