
नगरीय निकाय और पंचायती राज में महिला सशक्तिकरण की हकीकत…
भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। नगरीय निकाय और पंचायती राज में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देकर प्रदेश सरकार ने उन्हें सशक्त बनाने की पहल की है। उम्मीद थी कि महिलाएं प्रतिनिधि बनकर नगर-गांव के विकास में भागीदार बनेंगी। महापौर, जिपं अध्यक्ष, नपाध्यक्ष, जनपद अध्यक्ष और नगर परिषद अध्यक्ष, सरपंच, पंच और पार्षद बनकर नगर-गांव की सरकार चलाएगी, लेकिन प्रदेश में ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा। चुनाव जीतने के बाद ज्यादातर महिला प्रतिनिधि पावरलेस होकर रबर स्टॉम्प बनकर रह गई हैं, जबकि उनके पति, बेटा या अन्य परिजन अधिकारों का उपयोग कर रहे हैं। पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं का स्तर सुधारने के लिए सरकार ने पंचायती राज में हिस्सेदारी 33 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 फीसदी कर दी है। इससे लगा था कि जनप्रतिनिधि बनने से महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार आएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में आधी भागीदारी के बाद समाज में महिलाओं को जीवन स्तर में बदलाव पर किए गए सर्वेक्षण के आंकड़े निराश करने वाले हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो महज दो फीसदी महिलाएं ही प्रदेश में घर की दहलीज पार कर विकास में भागीदारी निभा रही हैं। ये ऐसी महिलाएं हैं, जो बिना पति व परिवार के अपने दम पर गांव व नगरीय निकायों की सरकार चला रही हैं।
सरकार के निर्देश को दरकिनार करने निकाला तोड़: नगरीय निकाय और पंचायतों के चुनाव में जीतकर आई महिलाओं को अधिकार संपन्न बनाने के लिए सरकार ने उनके परिजनों को सरकारी बैठकों से दूर रखने का निर्देश दिया है। सरकार के निर्देश को दरकिनार करते हुए माननीयों (मंत्री, सांसद, विधायक) ने महिला जनप्रतिनिधियों के पुरुष परिजनों को सरकारी बैठकों में शामिल होने के लिए उन्हें अपना जनप्रतिनिधि बना दिया। इसके बाद महिला जनप्रतिनिधियों के परिजन सरकार बैठकों में अधिकार के साथ शामिल हो रहे हैं। यही नहीं इन बैठकों में वे महिला जनप्रतिनिधि के अधिकारों का उपयोग भी कर रहे हैं। यह मामला इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि खंडवा नगर निगम में एमआईसी की पहली बैठक का निगम कमिश्नर सविता प्रधान ने यह कहते हुए बहिष्कार कर दिया कि बैठकें महापौर के पति लेते हैं।
इन्होंने बनाया अपना प्रतिनिधि
प्रदेश में जिन माननीयों ने महिला जनप्रतिनिधियों के परिजन को अपना प्रतिनिधि बनाया है उनका कहना है कि यह हमारा अधिकार है। उद्यानिकी मंत्री भारत सिंह कुशवाह ने ग्वालियर में जिपं अध्यक्ष के पति को जिपं में अपना प्रतिनिधि बनाया है। इस संदर्भ में उनका कहना है कि यह हमारा अधिकार है कि हम किसे अपना प्रतिनिधि बनाएंगे। लेकिन जब उनसे पूछा गया कि महिला जनप्रतिनिधि के परिजन को ही क्यों चुना और यह तो सरकार की मंशा के विपरीत है। इस पर मंत्री ने कहा- सरकार भी तो हम ही हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इसी तरह खंडवा सांसद ज्ञानेश्वर पाटील से पूछा तो उन्होंने कहा कि अभी खंडवा निगम में महापौर के पति और मूंदी नप में अध्यक्ष के पति को सांसद प्रतिनिधि बनाया है।
कुछ जिलों में कलक्टरों की सख्ती
सरकार की सख्ती के बाद राजगढ़, अशोकनगर जिलों के कलेक्टरों ने पंचायत चुनाव में चुनी गईं महिलाओं के पुरुष परिजन का बैठकों में प्रवेश पर रोक लगाने वाला आदेश जारी किया। लेकिन ऐसी सख्ती अन्य जिलों के कलेक्टरों ने नहीं दिखाई। सागर में चुनी गई महिला जनप्रतिनिधि के परिजन शपथ तक ले गए। पंंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री महेंद्र सिंह सिसौदिया का कहना है कि महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार ने निर्णय लिया है कि महिला जनप्रतिनिधियों के साथ उनके पति और परिजन बैठक में हिस्सा नहीं ले सकते। जहां तक सांसद-विधायक द्वार महिला जनप्रतिनिधि के परिजन को बैठक में प्रवेश कराने के लिए अपना प्रतिनिधि बनाया है तो संबंधित से बात की जाएगी।
लेटर पंच पर पति कर रहे हस्ताक्षर
पंचायती राज में महिला सशक्तिकरण की चौंकाने वाली स्थिति यह है कि सरपंच व अध्यक्ष होने के बाद भी वह अपने कामकाज से अनजान है। सरपंच एवं अध्यक्ष सहित गांव की पंच तक हर काम उनके पति देखते हैं। बैठकों से लेकर जिला कार्यालय तक हर जगह पति ही फाइल लेकर जाते हैं। चौंकाने वाली हकीकत तो यह है कि सरकारी दस्तावेजों में जिले की 60 फीसदी महिला प्रतिनिधियों के हस्ताक्षर भी उनके पति ही करते हैं। पंचायती राज व्यवस्था में 50 फीसदी पदों पर निर्वाचित होने के बाद भी महिलाएं अपने अधिकारों का उपयोग कर पाने में अपने परिजनों के चलते पूरी तरह से लाचार नजर आ रही हैं। जानकारों के अनुसार महिला जनप्रतिनिधियों की आड़ में उनके अधिकारों का उपयोग उनके पति या परिजन खुलेआम कर रहे हैं। अधिकारियों की बैठक तक में बेरोंकटोक महिला जनप्रतिनिधियों के पति जाते हैं ओैर अधिकारी उन्हें फटकार लगाने के बजाय चुप्पी साधे रहते हैं।