कोयले की कमी से हांफने लगे मप्र के पावर प्लांट

 पावर प्लांट

– नवरात्रि पर मप्र सहित देशभर में छा सकता है अंधेरा!

– देश के 72 थर्मल संयंत्रों के पास सिर्फ तीन दिन का कोयला, बन सकते हैं चीन जैसे हालात

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। देश में भी चीन की तरह ही बिजली संकट की आशंका है। विशेषज्ञों ने केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय व अन्य एजेंसियों की तरफ से जारी कोयला उपलब्धता के आंकड़ों का आंकलन कर यह चेतावनी दी है। मंत्रालय की मानें, तो देश के 135 थर्मल पावर संयंत्रों में से 72 के पास महज तीन दिन और बिजली बनाने लायक कोयला बचा है। बाकी 50 संयंत्रों में से भी चार के पास महज 10 दिन और 13 के पास 10 दिन से कुछ अधिक की खपत लायक ही कोयला बचा है। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि नवरात्रि में मप्र सहित देशभर में अंधेरा छा सकता है।
मप्र के 4 संयंत्रों सहित 135 थर्मल पावर संयंत्रों में कुल खपत का 66.35 फीसदी बिजली उत्पादन करते हैं। इस लिहाज से देखें तो 72 संयंत्र बंद होने पर कुल खपत में 33 फीसदी बिजली की कमी हो सकती है। मप्र की बात करें तो यहां के चारों थर्मल पावर प्लांट में सिर्फ 2.67 लाख मीट्रिक टन कोयला बचा है। यह चार दिन का है। हालत यह है कि सिंगाजी ताप बिजली घर में सिर्फ 2 दिन का कोयला बचा है। इस कारण बिजली उत्पादन पर गंभीर असर पड़ सकता है। प्रदेश में नवरात्रि और रबी सीजन से पहले बिजली संकट गहरा सकता है।
50 साल में यह सबसे गंभीर स्थिति
सरकार के अनुसार, कोरोना से पहले अगस्त-सितंबर 2019 में देश में रोजाना 10,660 करोड़ यूनिट बिजली की खपत थी, जो अगस्त-सितंबर 2021 में बढ़कर 12,420 करोड़ यूनिट हो चुकी है। उस दौरान थर्मल पावर संयंत्रों में कुल खपत का 61.91 फीसदी बिजली उत्पादन हो रहा था। इसके चलते दो साल में इन संयंत्रों में कोयले की खपत भी 18 प्रतिशत बढ़ चुकी है। बिजली मामलों के जानकार एवं रिटायर्ड चीफ इंजीनियर राजेंद्र अग्रवाल कहते हैं पिछले 50 साल में यह सबसे गंभीर स्थिति है। सारणी, बिरसिंहपुर, अमरकंटक चचाई और सिंगाजी पावर प्लांट से आधा ही यानी 2000 मेगावाट बिजली उत्पादन हो पा रहा है। रबी सीजन की फसलों की बुआई के दौरान ग्रामीण इलाकों में बिजली सप्लाई की दिक्कत पैदा हो सकती है। शहरी इलाकों को भी बिजली संकट का सामना करना पड़ सकता है।
आयातित कोयला तीन गुना महंगा
दो साल में इंडोनेशियाई आयातित कोयले की कीमत प्रति टन 60 डॉलर से तीन गुना बढ़कर 200 डॉलर तक हो गई। इससे 2019-20 से ही आयात घट रहा है। लेकिन तब घरेलू  उत्पादन से इसे पूरा कर लिया था। केंद्र ने स्टॉक की सप्ताह में दो बार समीक्षा के लिए कोयला मंत्रालय के नेतृत्व में समिति बनाई है। केंद्रीय बिजली प्राधिकरण, कोल इंडिया लि., पावर सिस्टम ऑपरेशन कॉपोर्रेशन, रेलवे और ऊर्जा मंत्रालय की भी  कोर प्रबंधन टीम बनाई गई है, जो रोज निगरानी कर रही है।
10 घंटे बिजली देना बंद
प्रदेश में बिजली संकट के चलते सरकार ने सामान्य एवं अधिक बारिश वाले जिलों में खेती के लिए प्रतिदिन 10 घंटे दी जाने वाली बिजली आपूर्ति को बंद कर दिया है। ग्वालियर-चंबल के शिवपुरी, श्योपुर, दतिया, ग्वालियर, मुरैना, मंदसौर एवं अन्य जिलों में किसानों को 10 घंटे बिजली नहीं दी गई है। विभागीय सूत्रों के अनुसार जिस जिले में बारिश अच्छी हुई है और सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ी है। वहां 10 घंटे की बिजली नहीं दी गई है।
किस प्लांट में कितना कोयला
अमरकंटक 26800
बिरसिंहपुर 130300
सारणी 76200
सिंगाजी 60800
अगस्त में मिल चुकी थी कोयला संकट की आहट
कोयला संकट का आकलन दो महीने पहले उस समय ही आ चुका था, जब एक अगस्त को भी महज 13 दिन का ही कोयला भंडारण बचा हुआ था। उस समय थर्मल प्लांट प्रभावित हुए थे और अगस्त के आखिरी हफ्ते में बिजली उत्पादन में 13 हजार मेगावाट की कमी हो गई थी। सीएमटी के हस्तक्षेप ने तब हालात सुधारे थे, लेकिन उत्पादन में अब भी 6960 मेगावाट की कमी चल रही है। दरअसल, कोरोना की दूसरी लहर कम होने के साथ ही औद्योगिक गतिविधियां रफ्तार पकडऩे लगी थीं और इसके साथ ही कोयले की खपत भी बढ़ गई। सरकार का अनुमान है कि बिजली की मांग बढ़ती रहेगी। इसलिए जरूरी है रोजाना कोयला आपूर्ति को खपत से ज्यादा बढ़ाया जाए। सरकार ने 700 मीट्रिक टन कोयला खपत का अनुमान लगाया है और आपूर्ति के निर्देश दिए हैं। सीईए ने कोयले का बकाया नहीं चुकाने वाली बिजली कंपनियों को सप्लाई सूची में नीचे व नियमित भुगतान वाली कंपनियों को प्राथमिकता देने की सिफारिश की।

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