जनता के फीडबैक पर लागू होगी दूसरे राज्यों की नीति

 राज्यों की नीति
  • मप्र में अब नई पॉलिसी साक्ष्य के आधार पर बनेगी

    भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम।
    मप्र में अब किसी दूसरे राज्य की नीति आसानी से लागू नहीं की जाएगी। उस नीति को लागू करने से पहले जनता से फीडबैक लिया जाएगा। फीडबैक में मिले साक्ष्यों के आधार पर नई नीति बनाकर लागू की जाएगी। इसके पीछे सरकार की मंशा है कि प्रदेश की जनता पर दूसरे राज्य की नीति को वैसे के वैसे न थोपी जाए। इसलिए मप्र सरकार अब साक्ष्य के आधार पर जनता से जुड़ी पॉलिसी बनाएगी।
    जानकारी के अनुसार अभी तक प्रदेश में जनता से जुड़ी विभिन्न योजनाओं, नीतियों या पॉलिसी लागू करने में सरकारी अमला अन्य राज्यों में लागू पॉलिसी को आधार बनाकर या उसमें कुछ संशोधन के बाद उसे लागू करा देते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। अब नई पॉलिसी साक्ष्य के आधार पर बनेगी। इसके लिए ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लोगों से फीडबैक लिया जाएगा, उसके बाद उस पॉलिसी को लागू किया जाएगा।
    अधिकारियों तथा कर्मचारियों को प्रशिक्षण
    पॉलिसी बनाने से पहले डाटा कलेक्शन होगा और कितने लोग उसके समर्थन में हैं और कितने नहीं, इस पर भी विचार होगा। इसके लिए जिला स्तर के अधिकारियों तथा कर्मचारियों को प्रशिक्षण भी दिया जाएगा।  खासकर उन कर्मचारियों को, जो  डाटा कलेक्शन करते हैं। इसी तरह सकल राज्य घरेलू उत्पाद जीएसडीपी), जिला घरेलू उत्पाद (डीडीपी) की गणना में वन संपदा और कृषि उपज की गणना जिले बार उत्पादन और फसल के आधार पर की जाएगी।
    टास्क फोर्स का गठन
    प्रदेश में दूसरे राज्यों की पॉलिसी लागू करने से पहले उस पर विचार विमर्श करने के लिए राज्य सरकार ने एक टास्क फोर्स का गठन किया है। योजना, आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग द्वारा सीनियर फैलो प्रो. अमिताभ कुंडू की अध्यक्षता में गठित टास्क फोर्स सारे मामलों में विचार कर तीन माह के भीतर अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को प्रस्तुत करेगा। तीन माह की अवधि के लिए प्रति बैठक 10 हजार रुपए अथवा अधिकतम 1.50 लाख रुपए (अध्यक्ष) के लिए एवं शासकीय सदस्यों के लिए एक लाख रुपए एकमुश्त जो भी कम हो, भुगतान की जाएगी। साथ ही यात्रा भत्ते की पात्रता उच्च स्तर के आईएएस अधिकारियों के बराबर मिलेगी।
    निधि के उपयोग और मंजूरी के लिए भी अलग विभाग
    सूत्रों ने बताया कि सांसद निधि और विधायक निधि के उपयोग, संधारण और मंजूरी देने के लिए भी अलग से विभाग बनाने पर विचार किया जा रहा है, क्योंकि जिलों में सांख्यिकी अधिकारी केवल इसी काम को तवज्जो देते हैं, जिससे सांख्यिकी से जुड़े कार्य प्रभावित होते हैं।

Related Articles