
- खरगोन दंगों के बाद पुलिस की पड़ताल में खुलासा
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र सहित देशभर में पिछले कुछ सालों से हो रहे दंगे-फसाद के पीछे पॉपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया (पीएफआई)का हाथ सामने आया है। वहीं खरगोन में हुए दंगों के बाद चौकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। जांच में खुलासा हुआ है कि मिशन सक्सेस होने के बाद ही पीएफआई फंडिंग करता है। यानी पीएफआई दंगे-फसाद और हमले से पहले नहीं, बल्कि बाद में फंडिंग करता है। संगठन ने मॉब लिंचिंग के आरोपियों के परिजनों की भी आर्थिक मदद की है।
गौरतलब है कि मप्र में कुछ सालों में पीएफआई की गतिविधियां भी तेजी से बढ़ी हैं। यह खुलासा खरगोन दंगों के बाद पुलिस की पड़ताल में हुआ है। खरगोन में हुए दंगों के बाद राज्य में सरकार के पास यह जानकारी आई थी कि पीएफआई की ओर से कुछ लोगों को फंडिंग की जा रही है। यह तथ्य भी सामने आया था कि खरगोन में भी पीएफआई ने कुछ लोगों को फंडिंग की है। पीएफआई को लेकर तमाम जानकारियां सामने आने के बाद राज्य सरकार ने संगठन की गतिविधियों की अंदरूनी तौर पर जांच करने के निर्देश दिए थे। दरअसल प्रदेश सरकार की मंशा यह थी कि अगर पीएफआई की गतिविधियां संदिग्ध पाई जाती है और उसके ठोस सबूत मिलते हैं, तो उस पर प्रतिबंध लगाने जैसा सख्त कदम उठाने की भी तैयारी थी।
खरगोन में कुछ लोगों को की गई आर्थिक मदद
पुलिस की शुरुआती जांच में पता चला है कि पीएफआई की ओर से फंडिंग तो की जाती है, लेकिन यह मदद दंगे-फसाद अथवा हमले से पहले नहीं की जाती है। संगठन की ओर से जो मदद की जाती है, वह हमले अथवा दंगों के बाद की जाती है। अब तक हमले से पहले मदद करने जैसी जानकारी सामने नहीं आई है। खरगोन में हुए दंगे के बाद पीएफआई ने कुछ लोगों की आर्थिक मदद की है। जिन लोगों के घर गिरे हैं अथवा गिराए गए हैं, उनमें से कुछ लोगों की भी संगठन की ओर से मदद की गई है। पीएफआई को एक मजबूत कैडर वाला संगठन माना जाता है। आर्थिक मदद करने को लेकर उस पर लगातार सवाल भी उठते रहते हैं।
पीएफआई को मिल रही है मुस्लिम देशों से मदद
पॉपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया को संयुक्त अरब अमीरात, सउदी अरब, बहरीन, कुवैत, कतर और ओमान से अच्छी-खासी धनराशि अपनी गतिविधियों और प्रोपेगंडा के प्रचार-प्रसार के लिए मिलती है। यह खुलासा गृह मंत्रालय द्वारा पीएफआई को लेकर तैयार किए गए डोजियर से मिलता है। पीएफआई के कर्ताधर्ता रेहाब फाउंडेशन, द इंडियन सोशल फोरम और द इंडियन फ्रेटरनिटी फोरम सरीखे मुखौटा संगठनों के बैनर तले संयुक्त अरब अमीरात में सक्रिय है। पीएफआई के नेतृत्व ने अल आईन, दुबई में लुलु हाइपर मार्केट के पीछे अपना कार्यालय खोल रखा है। इसके साथ ही इस्लामिक कट्टरता फैलाने में संगठन सक्रिय है।
2006 में आया अस्तित्व में, सिमी का उत्तराधिकारी
22 नवंबर 2006 को तीन समूहों कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी, नेशनल डेवलपमेंट फंड (केरल) और मनीथा नीथि पसारई (तमिलनाडु) के विलय से बने पीएफआई की जड़े आज कहीं अधिक गहरी पैठ बना चुकी हैं। डोजियर के मुताबिक तकरीबन 24 राज्यो में पीएफआई के 80 हजार से अधिक कार्यकर्ता हैं। डोजियर में पीएफआई को प्रतिबंधित संगठन सिमी का ही उत्तराधिकारी बताया गया है। डोजियर में कहा गया है कि कट्टरपंथी इस्लाम और उसकी विचारधारा को मानने वाला यह संगठन केरल में बड़ी संख्या में हत्याओं में लिप्त रहा है। इसके इतर दंगों के अलावा कई अन्य आपराधिक घटनाओं में भी संगठन की संलिप्तता सामने आई है।
कथनी-करनी में जमीन-आसमां का अंतर
यह अलग बात है कि पीएफआई घोषित तौर पर राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने समेत सांप्रदायिक और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए लोकतांत्रिक परिपाटियों के अंदर काम करने का दावा करता है। संगठन का घोषित एजेंडा अल्पसंख्यकों समेत पिछड़े तबके के आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक विकास पर काम करना है। इसके साथ ही संगठन देश के विभिन्न इलाकों में कमजोर तबके के कल्याण और विकास के लिए भी काम करता है। हालांकि गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक पीएफआई का एक गुप्त अंग है, जो अत्याधुनिक विस्फोटकों, हथियारों और गोला-बारूद के इस्तेमाल में प्रशिक्षित है। 2010 जुलाई में केरल पुलिस ने देसी बम, हथियारों, सीडी समेत तालिबान और अल-कायदा समर्थित साहित्य बरामद किया था। 2013 अप्रैल में केरल पुलिस ने राज्य भर में पीएफआई के केंद्रों पर छापामार कार्रवाई की थी, जिसमें नारथ, कन्नूर से हथियारों, विदेशी मुद्रा समेत तलवारें, विस्फोटक बनाने की सामग्री जब्त की थी।