आंगनबाड़ियों को पोषण आहार देने आगे नहीं आ रहे लोग

आंगनबाड़ियों
  • कार्यकर्ताओं व सहायिकाओं पर काम का बोझ …

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। सामाजिक जागरुकता और आम लोगों द्वारा मदद नहीं किए जाने की वजह से प्रदेश की शिव सरकार द्वारा कुपोषण दूर करने के लिए शुरू किया गया पोषण मटका कार्यक्रम सफल नहीं हो पा रहा है। दरअसल इस कार्यक्रम को प्रदेश में बच्चों का कुपोषण दूर करने के लिए शुरू किया गया था।
दूसरी बार करीब ढाई साल पहले शुरू हुए इस अभियान की हालत यह है कि अधिकांश आंगनवाड़ियों में इसकी रस्म आदायगी की जा रही है। इसकी वजह है लोगों से दान में पोषण वाली सामग्री का न मिलना। इस मामले में आंगनबाड़ी केन्द्र की कार्यकर्ता से लेकर सहायिका तक परेशान है। दरअसल इन पर काम को बोझ तो पहले से ही रहता है उसके बाद बीच-बीच में अन्य काम का बोझ भी डाल दिया जाता है, जिसकी वजह से वे अपना मूल काम करने का वक्त ही नहीं निकाल पाती हैं। ऐसे में दान की सामग्री जुटाने के लिए उनके पास समय ही नहीं रहता है। यह वे महिलाएं हैं जिन पर मूल काम के अलावा भीड़ प्रबंधन से लेकर वैक्सीनेशन तक की जिम्मेदारी आती रहती है।
महिला एवं बाल विकास विभाग के अफसर इस तरह के मामलों में भी पूरी तरह से सक्रियता नहीं दिखाते हैं। कुछ दिनों पहले विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने जब जिलों का दौरा किया तो यह हकीकत सामने आई। अब आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, पर्यवेक्षकों को पोषण मटका हेतु सामग्री जुटाने के लिए जनसमुदाय को प्रेरित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। अधिकारियों ने इस पर भी नाराजगी जताई कि कुछ पोषण कार्नर में सामग्री आ भी रही है तो वह बच्चों को आसानी से नहीं मिल पा रही है। दरअसल विभाग के स्पष्ट निर्देश हैं कि सामग्री ऐसे स्थान पर रखी जानी चाहिए, जहां से बच्चे अपनी मनमर्जी से असानी से उठा सकें। दरअसल राज्य सरकार ने कुपोषण दूर करने के लिए पोषण मटका कार्यक्रम दोबारा शुरू किया है। इसके तहत प्रदेश के सभी 97135 आंगनबाड़ी केंद्रों में पोषण कार्नर शुरू किए गए हैं। इनमें बच्चों के लिए लड्डू, मठरी, नमकीन, मुरमुरे, बिस्किट, भुना चना-गुड़ आदि रखना है। ताकि वे अपनी इच्छा के अनुसार उठाकर खा सकें और उन्हें रोका-टोका भी न जाए। करीब एक महीने से चल रहे पोषण कार्नर का निरीक्षण करने गए अफसरों को बातया गया की पोषण मटका के लिए आमजन से सामग्री नहीं मिल पा रही है। कार्नर के लिए सामग्री जन सहयोग से इकट्ठी करनी है। कलेक्टरों से कहा गया है कि वे स्थानीय स्तर पर अभियान चलाकर आमजन को अनाज देने के लिए प्रेरित करें। इस मामले में प्रशासन स्तर पर जन सहयोग का मॉडल फेल हो गया। उल्लेखनीय है कि करीब छह साल पहले भी पोषण मटका कार्यक्रम शुरू किया गया था, तब भी वह असफल रहा था।
वर्ष 2030 तक कुपोषण मुक्त का लक्ष्य
भारत सरकार ने वर्ष 2030 तक देश को कुपोषण मुक्त करने का लक्ष्य रखा है।  प्रदेश में भी राज्य पोषण प्रबंधन रणनीति 2022 जारी की गई है। पोषण मटका इसी रणनीति का हिस्सा है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में प्रदेश में 10 लाख 32 हजार 166 कुपोषित बच्चे हैं। इनमें से छह लाख 30 हजार 90 बच्चे अति कुपोषित की श्रेणी में हैं। यह जानकारी सरकार ने विधानसभा के बजट सत्र में दी गई थी। उत्तर में बताया गया था कि प्रदेश में शून्य से पांच साल उम्र के 65 लाख दो हजार 723 बच्चे हैं। इनमें से 10 लाख 32 हजार 166 बच्चे कुपोषित हैं। इनमें दो लाख 64 हजार 609 ठिगनेपन, 13 लाख सात हजार 467 दुबलेपन के शिकार हैं। छह लाख 30 हजार 90 बच्चों का वजन उम्र के हिसाब से कम है।

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