अफसरों की लापरवाही का… खामियाजा भुगत रहे पेंशनर्स

  • मप्र के सहमति पत्र को 8 महीने दबाए रखा छग सरकार ने
  • विनोद उपाध्याय
पेंशनर्स

मप्र के अफसरों की लापरवाही और छत्तीसगढ़ सरकार की भर्राशाही के कारण मप्र के 5 लाख पेंशनर्स का करोड़ों रूपए की चपत लगी है। जानकारी के अनुसार मप्र सरकार ने पेंशनर्स की महंगाई राहत बढ़ाने के लिए छत्तीसगढ़ को कई पत्र लिखे, लेकिन उधर से जवाब आने में 8 महीने लग गए। इस कारण डीआर न बढऩे से मप्र पेंशनर्स को  8 महीने तक हर माह 400 से लेकर 4000 रुपए का नुकसान झेलना पड़ा है।
जानकारों का कहना है कि मप्र में लगभग पांच लाख पेंशनर को आठ महीनों की महंगाई राहत (डीआर) राशि न मिलने के पीछे मप्र के अफसरों की लापरवाही बड़ी वजह है। वित्त विभाग के अफसरों ने मध्यप्रदेश पुर्नगठन अधिनियम-2000 की धारा 49 की त्रुटिपूर्ण व्याख्या कर दी। इसलिए मप्र सरकार ने छत्तीसगढ़ की सहमति का बहाना बनाकर पहले तो पेंशनरों को समय पर महंगाई राहत राशि नहीं दी। जब दी भी तो आठ महीने की राशि काटकर। हाल ही में पेंशनर संगठन ने विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर को चि_ी लिखी है कि अधिनियम में यह प्रावधान ही नहीं कि पेंशनरों की डीआर राशि बढ़ाने के लिए छत्तीसगढ़ से सहमति ली जाए। इसलिए इस पर स्थिति स्पष्ट की जाए।
विधानसभा अध्यक्ष से गुहार लगाई
प्रदेश सरकार ने 1 जुलाई 2023 से कर्मचारियों का डीए और पेंशनर्स की चार प्रतिशत डीआर राशि बढ़ाने का फैसला किया था। सरकार ने इस तारीख से कर्मचारियों को तो डीए दे दिया, लेकिन पेंशनर्स की डीआर राशि के लिए छत्तीसगढ़ सरकार से सहमति मांगी। छत्तीसगढ़ ने डीआर राशि 1 जुलाई 2023 के बजाय 1 मार्च 2024 से देने पर सहमति दी। इसे मप्र में लागू भी कर दिया गया। इस तरह पेंशनर्स को आठ महीने का डीआर नहीं मिल पाया है। इसे लेकर पेंशनर्स बार-बार प्रदेश सरकार के सामने मांग रख रहे हैं, लेकिन इसका निराकरण नहीं हो रहा है। अब एक बार फिर राज्य पेंशनर्स एसोसिएशन ने विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर से गुहार लगाई है कि गलत परंपरा खत्म करते हुए पेंशनर्स को उनका हक दिया जाए। 18 साल से सहमति लेने के नाम पर उनके साथ जो व्यवहार हो रहा है, वो बंद करना चाहिए। पेंशनरों ने विधानसभा अध्यक्ष और मुख्यमंत्री से मांग की है कि महंगाई राहत राशि के भुगतान में राज्यों की परस्पर सहमति की प्रक्रिया को तुरंत समाप्त किया जाए और भविष्य के लिए स्वीकृति आदेश जारी किए जाएं। जो महंगाई राहत राशि 1 जुलाई 2023 से स्वीकृत है, उसका भुगतान जल्द किया जाए। पेंशनरों का यह भी कहना है कि छठे और सातवें वेतनमान के एरियर की राशि भी अब तक बकाया है, जबकि हाई कोर्ट जबलपुर के आदेशानुसार यह भुगतान छह महीने में किया जाना था। पेंशनरों की मांग है कि सरकार एकमुश्त भुगतान करे। अगर वित्तीय कठिनाई है तो सितंबर में एक किस्त दी जाए और बाकी राशि का भुगतान तीन किस्तों में करें। इसके अलावा पेंशनरों ने राज्य पेंशनर्स कल्याण मंडल के गठन की भी मांग की है ताकि उनकी विभिन्न समस्याओं का निराकरण समय पर हो सके।
मप्र के पेंशनर्स चार फीसदी नुकसान में
प्रदेश के कर्मचारियों को 1 जुलाई 2023 से 46 फीसदी महंगाई भत्ता (डीए) मिल रहा है, जबकि पेंशनरों को डीआर राशि का लाभ 1 मार्च 2024 से दिया जा रहा है। इससे उन्हें आठ महीने का नुकसान हो गया। वहीं, केंद्र सरकार के पेंशनर्स की बात करें तो उन्हें 50 फीसदी डीआर राशि मिल रही है। यानी, इस हिसाब से भी मप्र के पेंशनर्स चार फीसदी नुकसान में हैं। पेंशनर्स की डीआर राशि हर छह महीने में बढऩा चाहिए। यानी, जनवरी और जुलाई में बढ़ाना चाहिए। दो साल में एक ही बार बढ़ी। पिछले साल जनवरी 2023 में चार फीसदी बढ़ाकर 38 से 42 की गई थी। इसके बाद इस साल मार्च 2024 में बढ़ाई। राज्य सरकार 18 साल से यही बताती रही है कि यहां के पेंशनर्स को डीआर राशि देने के लिए मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सरकारों के बीच सहमति जरूरी है। इसके पीछे मप्र पुनर्गठन अधिनियम-2000 की धारा 49 का हवाला दिया जाता रहा है। हालांकि इस धारा में पेंशन देनदारियों के लिए दोनों राज्यों के बीच सहमति का स्पष्ट प्रावधान नहीं है। केंद्र सरकार का भी कहना है कि पेंशन संबंधित मामलों में राज्यों के बीच सहमति की आवश्यकता नहीं है। इसके बावजूद मध्यप्रदेश सरकार छत्तीसगढ़ की सहमति मिलने के इंतजार में पेंशनरों को समय पर डीआर राशि का भुगतान नहीं करती है। हालिया मामला भी कुछ ऐसा है।
नहीं सुलझाया जा रहा पेंच
पेंशनर्स का कहना है कि मप्र और छग में जो पेंच फंसा है उसे सुलझाया नहीं जा रहा है। उनका कहना है कि पुर्नगठित होने वाले दूसरे राज्यों में इस तरह रजामंदी नहीं ली जाती है। मप्र के साथ ही उत्तर प्रदेश और बिहार का पुर्नगठन भी वर्ष 2000 में हुआ था। तब उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड और बिहार से अलग होकर झारखंड बना था। इन राज्यों में पेंशनरों को समय पर महंगाई राहत राशि का भुगतान किया जा रहा है। इसके लिए राज्यों में आपसी सहमति भी नहीं ली जाती है। उत्तर प्रदेश सरकार ने उत्तराखंड की सहमति के बिना ही 1 जुलाई 2023 से अपने कर्मचारियों और पेंशनरों को महंगाई राहत राशि देना शुरू कर दिया। वर्ष 2006 में प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पेंशनरों को महंगाई राहत राशि देने का निर्णय लिया था। हालांकि वित्त विभाग के तत्कालीन सचिव एपी श्रीवास्तव ने 21 सितंबर 2006 को अर्थ शासकीय पत्र जारी करते हुए छत्तीसगढ़ सरकार की सहमति आवश्यक बताई। तब से यह परंपरा शुरू हो गई। हालांकि 13 नवंबर 2017 को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दोनों राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र भेजकर धारा 49 की व्याख्या को लेकर स्पष्ट किया था कि महंगाई राहत राशि के भुगतान के लिए दोनों राज्यों के बीच सहमति की आवश्यकता नहीं है। मध्य प्रदेश सरकार इस पत्र को नजरअंदाज कर रही है। इसे लेकर पिछले महीने पेंशनरों ने मुख्यमंत्री से वित्त विभाग के 2006 के अर्थ शासकीय पत्र को निरस्त करने की मांग की है। वरिष्ठ नागरिक पेंशनर एसोसिएशन के प्रांतीय उपाध्यक्ष एवं प्रांतीय मीडिया प्रभारी भगवती प्रसाद पंडित का कहना है कि प्रदेश के पेंशनर महंगाई राहत और एरियर की राशि के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं। धारा 49 की गलत व्याख्या और वित्त विभाग के त्रुटिपूर्ण निर्णयों के चलते पेंशनरों को उनके हक से वंचित किया जा रहा है। अब समय आ गया है कि राज्य सरकार इस मुद्दे को सुलझाए और पेंशनरों को समय पर महंगाई राहत राशि का भुगतान करें। इससे प्रदेश के पांच लाख व्यक्ति नहीं, बल्कि पांच लाख परिवार प्रभावित हो रहे हैं।  

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