अपने ही घर में उलझे पटवारी… प्रतिष्ठा दांव पर

पटवारी

पार्टी के लिए दमदार प्रत्याशी की तलाश का मामला

विनोद उपाध्याय
विधानसभा चुनाव में हारने के बाद अब कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी की प्रतिष्ठा एक बार फिर से दांव पर लग चुकी है। यह प्रतिष्ठा भी उनकी अपने ही गृह क्षेत्र में लगी है। दरअसल उनका क्षेत्र इंदौर लोकसभा सीट के तहत आता है। इस सीट का मामला ऐसा फंसा हुआ है कि लोकसभा चुनाव के महासमर की तारीखों के ऐलान के बाद भी संभावित प्रत्याशी के नाम तक की चर्चा नहीं हो रही है। इसके उलट भाजपा अपना न केवल प्रत्याशी तय कर चुकी है, बल्कि प्रचार का बिगुल तक फूंक चुकी है। इसकी वजह से भाजपा एक बार फिर से कांग्रेस से आगे निकल चुकी है। लगातार दलबदल और टूटते संगठन के बीच प्रदेश अध्यक्ष पटवारी के लिए सबसे बड़ी मुसीबत इंदौर लोकसभा क्षेत्र से किसी अच्छे उम्मीदवार का नाम घोषित करवाने की बनी हुई है। इस सीट के अधिकांश बड़े चेहरे दलबदल कर केसरिया बाना पहन चुके हैं। उम्मीद जताई जा रही है कि एक -दापे दिन में कांग्रेस इंदौर के प्रत्याशी के नाम का ऐलान कर सकती है।
दो सप्ताह में इंदौर लोकसभा क्षेत्र से दो-तीन पूर्व विधायकों के साथ तमाम कांग्रेसी पार्टी छोड़ भाजपा का दामन थाम चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस के लिए कद्दावर उम्मीदवार को मैदान में उतारना और हतोत्साहित कार्यकर्ताओं में जोश जगाना भी बड़ी चुनौती बन चुकी है। इस बीच कई कार्यकर्ता और नेता भी खुद पटवारी से इंदौर से चुनाव लडऩे की मांग कर चुके हैं। कांग्रेस ने अभी पत्ते नहीं खोले हैं। कल 18 मार्च को दिल्ली में कांग्रेस की केन्द्रीय चुनाव समिति की बैठक होना है। बैठक में उम्मीदवारों की अगली सूची पर मोहर लगेगी। इसी क्रम में इंदौर का नाम भी तय हो सकता है। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस बढ़े नाम के बजाय किसी युवा और नए नाम की तलाश में जुटी है। इंदौर से किसी महिला उम्मीदवार का नाम भी तय किया जा सकता है। दरअसल भाजपा की ओर से पहले कयास लगाए गए थे कि 33 प्रतिशत महिला आरक्षण को अमल करने की दिशा में मप्र में 9 से 10 सीटों पर महिला उम्मीदवार दिए जा सकते हैं। उसमें इंदौर के भी होने की उम्मीद थी। हालांकि भाजपा ने महिला उम्मीदवार नहीं दिया है, ऐसे में कांग्रेस अब इस दिशा में आगे बढ़ सकती है। दरअसल कई पुराने चेहरे जो बीते वर्षों में चुनाव लड़ चुके हैं। उन्होंने इंदौर से उम्मीदवार बनने से ही इन्कार कर दिया है। दरअसल यह सीट कई दशकों से भाजपा के गढ़ के रूप में स्थापित हो चुकी है। ऐसे में इस सीट पर कांग्रेस की उम्मीद कम ही नजर आती है। कम उम्मीद की वजह से अधिकांश नेता जानते हैं कि जीत की गारंटी नहीं होने से उनका पैसा ही खर्च होना है। यही वजह है कि पटवारी को यहां पर मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। गौरतलब है कि बीते लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा ने के मौजूदा सांसद शंकर लालवानी को 10.68 लाख वोट मिले थे। वहीं, दूसरे स्थान पर रहे कांग्रेस के पंकज सांघवी को 5 लाख से ज्यादा वोट मिले थे। तीसरे स्थान पर रहे बहुजन समाज पार्टी के दीपचन्द को महज 8666 वोट मिले थे।
इंदौर का जातीय समीकरण
 जातिगत समीकरण पर नजर डालें तो इंदौर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में बौद्ध 0.36 प्रतिशत  ईसाई 0.58 प्रतिशत , जैन 2.19, मुस्लिम 12.67, और सिख 0.78 प्रतिशत शामिल हैं। इंदौर संसदीय सीट पर एससी मतदाताओं की संख्या लगभग 3,93,922 है, जो 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 17 प्रतिशत है। इंदौर संसद सीट पर एसटी मतदाता लगभग 1,11,225 हैं, जो 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 4.8 प्रतिशत हैं।
पार्टी का आदेश मानूंगा
इंदौर लोकसभा क्षेत्र के उम्मीदवार के नाम की घोषणा अगली सूची में होगी। इस पर प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी का कहना है कि उम्मीद है कि जल्द ही टिकट तय हो जाएगा। उन्होंने कहा कि पार्टी ऐसे व्यक्ति को उम्मीदवार बनाएगी जो समर्पित कार्यकर्ता हो और लोगों के बीच सक्रिय भी हो। खुद के चुनाव लडऩे के सवाल पर पटवारी ने कहा कि पार्टी का जो आदेश होगा उसे मैं मानूंगा ही। जहां जरूरत होगी, पार्टी के लिए
खड़ा हूं।
इंदौर से कौन लड़ेगा चुनाव?
विधानसभा चुनाव में इंदौर जिले की 9 सीटें हारने वाली कांग्रेस का कोई नेता लोकसभा क्षेत्र के लिए दावेदारी नहीं कर रहा है। चुनाव की रणनीति बना रहे नेता भी पसोपेश में हैं कि किस चेहरे पर दांव लगाया जाए। कांग्रेस नेता अक्षय बम को इंदौर से लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया जा सकता है। हालांकि, उन्होंने भी खुलकर चुनाव लडऩे की मंजूरी नहीं दी है। अक्षय बम के अलावा विशाल पटेल का नाम भी चल रहा है। कांग्रेस इस बार इंदौर लोकसभा सीट के लिए नया चेहरा तलाश रही है।

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