- नए शैक्षणिक सत्र के शुरू होते ही कलेक्टर के दिशा-निर्देश दरकिनार

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
नया शैक्षणिक सत्र शुरू होते ही अभिभावकों को लूटने का धंधा भी तेज हो गया है। निजी स्कूलों में फीस, ड्रेस के साथ ही किताबों और स्टेशनरी की महंगाई पैरंट्स को परेशान कर रही है। निजी प्रकाशकों की किताबों के मूल्य में 40 से 50 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। इसके अलावा स्टेशनरी के दाम भी पिछले साल के मुकाबले बढ़े हैं। हालांकि, राहत की बात यह है कि राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की किताबों में दामों में परिवर्तन नहीं हुआ है। लेकिन एनसीईआरटी की पुस्तकें गायब हैं। जबकि कलेक्टर के सख्त निर्देश हैं कि स्कूल एनसीईआरटी की पुस्तकें अपने पाठ्यक्रमों में शामिल करें। नए सत्र में बच्चों की पढ़ाई शुरू होने से पहले अभिभावक अपनी जरूरतें कम करके एडमिशन, फीस, किताबें, स्टेशनरी समेत कई जरूरी चीजों पर ध्यान देते हैं। हर बार महंगाई बढ़ने के चलते उनका पूरा बजट बिगड़ जाता है।
किताबों के बढ़े दाम के अलावा स्कूलों की ओर से तय दुकानों पर फिक्स रेट से सिलेबस मिलने से पैरंट्स पर दोगुना असर पड़ रहा है। पहली से लेकर 12वीं तक सभी कक्षाओं में निजी प्रकाशकों की किताबें चल रही हैं। कई बार स्कूल किताबों की ब्रिकी बढ़ाने के लिए प्रकाशक और लेखक बदलने के लिए वेंडर से समझौता कर लेते हैं। इसके लिए स्कूल का कुछ कमीशन फिक्स कर दिया जाता है। प्रकाशक या लेखक बदलने से पैरंट्स को फिर सारी नई किताबें खरीदनी पड़ती हैं।
स्कूलों के किताबों और स्टेशनरी के अपने वेंडर
कक्षा एक से लेकर नौंवी तक कोर्स में किताबों की संरचना स्कूलों ने अपने हिसाब से बनायी है। कक्षा एक में सभी किताबें प्राइवेट पब्लिशर्स की हैं। कक्षा छह में एक किताब एनसीईआरटी की है तो कक्षा नौर्वी में एनसीईआरटी की किताबें हैं। इन नौ किताबों के कुल दाम 360 रुपए ही हैं। इसमें तीन प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें शामिल कर स्कूलों ने दामों की भरपाई कर ली है। इनके कीमत करीब 1054 रुपए हैं। शहर में ज्यादातर स्कूलों के अपनी निर्धारित किताबों और स्टेशनरी के वेंडर है। स्कूल अपनी छवि बचाने के चक्कर में अपने परिसर में किताबें न बेचकर बाजार में कोई वेंडर निर्धारित कर लेते हैं। स्कूल का नाम और कक्षा बताने पर दुकानदार बिना कुछ पूछे ही किताबों का पूरा सेट निकालकर रख देते हैं। 10 नंबर मार्केट में एक बुक्स शॉप पर अभिभावकों को निजी पब्लिशर्स की बुक के लिए टोकन बांटे जा रहे हैं। इस टोकन के आधार पर ही नंबर आने पर बुक मिल रही है। महंगी किताबें होने के बाद भी अभिभावक इंतजार करने को मजबूर हैं। पालक महासंघ के सचिव प्रबोध पांड्या का कहना है कि निजी स्कूलों में किताबों की खरीदी में मनमानी की जा रही है। एनसीईआरटी की बजाय प्राइवेट पब्लिशर्स की पुस्तकें खरीदने का दबाव बनाया जा रहा है। पब्लिशर्स मनमाने दाम वसूल रहे हैं। कलेक्टर और जिला शिक्षा विभाग का निर्देश कागजों में ही सीमित है। अभिभावकों से हो रही लूट को रोका जाना चाहिए। शहर में ज्यादातर स्कूलों के अपनी निर्धारित किताबों और स्टेशनरी के वेंडर है। स्कूल अपनी छवि बचाने के चक्कर में अपने परिसर में किताबें न बेचकर बाजार में कोई वेंडर निर्धारित कर लेते हैं। स्कूल का नाम और कक्षा बताने पर दुकानदार बिना कुछ पूछे ही किताबों का पूरा सेट निकालकर रख देते हैं। हद तो तब हो गई जब कई पैरंट्स दुकानों का विजिटिंग कार्ड लिए बाजार में घूम रहे थे। पूछने पर बताया कि यह कार्ड उन्हें स्कूल वालों ने दिया ताकि दुकान ढूंढने में आसानी रहे।
एनसीईआरटी की पुस्तकें गायब
निजी स्कूलों की मिलीभगत से निजी प्रकाशक एनसीईआरटी की किताबों के मुकाबले एक ही पाठ्यक्रम की पुस्तक 10 गुना ज्यादा दाम पर बेच रहे हैं। मसलन-कक्षा सात की एनसीईआरटी की हिंदी की किताब 65 रुपए में उपलब्ध है, जबकि इसी कक्षा के कोर्स की अंग्रेजी की किताब 654 रुपए में है। इसी पाठ्यक्रम की एनसीईआरटी की पुस्तक का दाम 100 रुपए से नीचे है। निजी स्कूलों ने प्राइवेट पब्लिशर्स की बुक लिस्ट अभिभावकों को दी है। ये पुस्तकें खरीदना उनकी मजबूरी है। किताबों और कापियों के संबंध में कलेक्टर के निर्देश हैं कि स्कूल एनसीईआरटी की पुस्तकें अपने पाठ्यक्रमों में शामिल करें। लेकिन इस निर्देश की अनदेखी की जा रही है। इन दिनों राजधानी की 15 किताब दुकानों पर निजी पब्लिशर्स की किताबें बिक रही हैं। जबकि यहां प्राइमरी लेवल पर एनसीईआरटी की बुक उपलब्ध नहीं हैं। जिला शिक्षा अधिकारी एनके अहिरवार का कहना है कि निजी पब्लिशर्स की किताबों की बाध्यता की मॉनिटरिंग के लिए प्राचार्यों की टीम बनाई गयी है। ये स्कूलों से किताबों की जो सूची मिली है उसकी मॉनिटरिंग कर रहे हैं। गलती पाए जाने संबंधित स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।