संसदीय यात्रा में स्पंदित हमारी गौरवमयी उपलब्धि

  • नरेंद्र सिंह तोमर
संसदीय यात्रा

मध्यप्रदेश की संसदीय यात्रा की साक्षी विधानसभा कार्यवाही संचालन के 69 वें वर्ष में प्रवेश कर रही है। 1 नवंबर 1956 को मध्यप्रदेश राज्य के गठन के साथ ही मध्यप्रदेश विधान सभा का गठन भी हुआ था। नए मध्यप्रदेश की विधानसभा का पहला सत्र 17 दिसंबर 1956 से 17 जनवरी 1957 तक आहूत किया गया था। इस तरह लोकतंत्र के संस्थापक भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त दायित्व के निर्वहन का पालन करते हुए हम विधानसभा सत्र संचालन के 68 वर्ष पूर्ण कर चुके हैं। देश के हृदय प्रदेश के जन प्रतिनिधियों ने समवेत स्वर में अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन किया है और मध्यप्रदेश के गौरवपूर्ण विधायी इतिहास को रचा है। विधानसभा की कार्यवाहियां इसके सदस्यों के राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति का माध्यम नहीं है बल्कि यह जनसेवा और जन सरोकारों के प्रति निष्ठा, समर्पण और कार्य का मंच बना है। यहां बैठने वाले माननीय सदस्यों ने जनता की पीड़ाओं,  उम्मीदों, अरमानों को अपने शब्द देकर जनहितैषी संस्थान का स्वरूप दिया है। यही कारण है कि सीमेंट-कांक्रीट से बने भवन में लोकतंत्र के प्रति हमारी आस्था और क्रियान्वयन स्पंदित हो रहे हैं। मध्यप्रदेश की विधानसभा की यात्रा का 68 वां पड़ाव इसलिए भी रेखांकित करने योग्य है कि इस वर्ष हम भारतीय संविधान को अंगीकृत और आत्मार्पित करने की 75 वीं वर्षगांठ का उत्सव मना रहे हैं। भारतीय संविधान लोकतंत्र, न्याय और समानता के प्रति हमारे देश की सनातन परंपरा और प्रतिबद्धता का उद्घोष है। विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका लोकतांत्रिक व्यवस्था के तीन आधार स्तंभ हैं। अपनी-अपनी सीमाओं में कार्य कर रही इन पालिकाओं में विधायिका की स्थिति अधिक महत्वपूर्ण प्रतीत होती है ,क्योंकि यह जनता जर्नादन की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को सीधे-सीधे संबोधित करती है। विधायिका के इसी सामथर््य ने संसद और राज्यों की विधानसभाओं को नई आभा दी है। प्रदेश की विधानसभा इसी संविधान प्रदत्त लोकतांत्रिक व्यवस्था और संसदीय शासन प्रणाली का आधार है।
सभी को स्मरण है कि राज्यों के पुनर्गठन के बाद तत्कालीन मध्य प्रदेश (मराठी भाषी क्षेत्रों को छोड़ कर जिन्हें बॉम्बे राज्य में विलय कर दिया गया था), मध्य भारत, विंध्य प्रदेश और भोपाल राज्यों को मिलाकर 1 नवंबर 1956 को मध्य प्रदेश बना था। आरंभ में विधानसभा की सदस्य संख्या 288 थी जिसे बाद में एक मनोनीत सदस्य सहित बढ़ाकर 321 कर दिया गया। 1 नवंबर 2000 को मध्य प्रदेश राज्य से अलग होकर एक नया राज्य, छत्तीसगढ़ बनाया गया। तब मध्यप्रदेश विधानसभा की सदस्य संख्या एक मनोनीत सदस्य सहित घटकर 231 रह गई। नया मध्यप्रदेश लगभग 3 लाख 43 हजार 450 वर्गमीटर क्षेत्रफल का था। इस आकार ने इसे भारत का सबसे बड़ा प्रदेश बनाया। मध्य प्रदेश की सीमा तब भारत के सात अन्य प्रदेशों आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, बिहार और उड़ीसा की सीमाओं से मिलती थी। भारत का ह्रदय प्रदेश मध्यप्रदेश वास्तव में हमारे देश की ही तरह समृद्ध विविधताओं को समेटे हुए है। मध्यभारत, भोपाल, मालव, बुंदेलखंड, बघेलखंड और महाकौशल की संस्कृति और जीवन परंपराओं ने मध्यप्रदेश को पहचान दी है और हमारी विधानसभा के भवन, यहां की कार्यवाहियों और निर्णयों में यह विविधता पल्लवित, पोषित और संपुष्ट हुई है।  
सदन के माननीय सदस्यों के रूप में हर क्षेत्र के प्रतिनिधियों ने अपने अंचल की विविधता को संरक्षित और स्थापित करने का यत्न किया तो विधानसभा भवन इस कार्य के श्रेष्ठ एवं उपयुक्त स्थल सिद्ध हुए। राज्य के पुनर्गठन के कुछ समय पहले ही सितंबर 1956 में हो नई एकीकृत विधानसभा के भवन के लिए भोपाल के खूबसूरत भवन मिंटो हाल का चयन कर लिया गया था। तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड मिंटो के भोपाल आगमन बनाए गए मिंटो हाल में सन् 1946 में इसमें इंटर कॉलेज की स्थापना हुई जो बाद में हमीदिया कॉलेज के रूप में जाना गया। हमीदिया कॉलेज इस इमारत में 1956 तर्क लगता रहा। दिनांक 1 नवम्बर, 1956 से यह भवन विधान सभा के रूप में परिवर्तित हुआ। तब से लेकर अगस्त, 1996 तक यह भवन मध्यप्रदेश को चालीस वर्ष की संसदीय यात्रा का स्थल और मध्यप्रदेश के लोकतांत्रिक इतिहास का साक्षी बना रहा।
विधानसभा के कामकाज के विस्तार के मद्देनजर विस्तृत भवन की आवश्यकता अनुभव हुई। इस तरह अरेरा पहाड़ी पर बिड़ला मंदिर और मंत्रालय वल्लभ भवन के मध्य नए विधानसभा भवन ने आकार लिया। इस भवन का का उद्घाटन 3 अगस्त, 1996 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा ने किया। इस भवन की वास्तुकला भारतीय संस्कृति, परंपराओं एवं आधुनिक तकनीक का अनूठा समन्वय है। इस भवन में मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक चेतना के दर्शन होते हैं जो यहां पहुंचने वाले हर व्यक्ति को प्रदेश के यशस्वी अतीत के प्रति अभिमान से भर देते हैं।  
मध्यप्रदेश विधानसभा ने अपने सात दशकों की यात्रा में एक ओर जहां देश के विधान मंडलों में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है वहीं विभिन्न संसदीय प्रक्रियाओं तथा संवैधानिक व्यवस्थाओं के द्वारा समाज के हर स्तर पर, हर समुदाय से लेकर प्रत्येक व्यक्ति के संवैधानिक मूल्यों और अधिकारों व कल्याण के लिए कार्य किया है। जब हम मध्यप्रदेश विधानसभा की यात्रा की ओर देखते हैं तो पाते हैं कि मध्यप्रदेश ने अपनी विकास यात्रा में जिस शीर्ष को स्पर्श किया है, उसके पीछे विधानसभा संचालन की समृद्ध परंपरा रही है। नवीन मध्यप्रदेश की पुनर्गठित पहली विधान सभा के अध्यक्ष पंडित कुंजीलाल दुबे तथा उपाध्यक्ष विष्णु विनायक सर्वटे थे। सदन के नेता मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल और विरोधी दल के नेता विश्वनाथ यादवराव तामस्कर थे। पं. कुंजीलाल दुबे से आरंभ हुआ अध्यक्षीय दायित्व सर्वश्री काशीप्रसाद पांडे, तेजलाल टेंभरे, गुलशेर अहमद, मुकुन्द सखाराम नेवालकर, यज्ञदत्त शर्मा, रामकिशोर शुक्ला, राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल, बृजमोहन मिश्रा, श्रीनिवास तिवारी, ईश्वरदास रोहाणी, डॉ. सीतासरन शर्मा, नर्मदा प्रसाद प्रजापति और गिरीश गौतम से होते हुए मुझ तक पहुंचा हे। विधायिका का सभापति होने के नाते मैं भी इस दायित्व को अपने लिए गौरवमयी अवसर पाता हूं और इसे महती लब्धि निरूपति करता हूं कि हम अपने पूर्वजों की परंपरा को लोकतंत्र के हित में संचालित कर पा रहे हैं। माननीय सदस्य जनता की प्रतिनिधि आवाज होते हैं इसलिए विधानसभा अध्यक्ष के नाते मैंने पहल की है कि सदन में पहली बार चुनकर आए विधायकों को प्रोत्साहित किया जाए। उनकी आवाज अनुभव के आगे अनसुनी न रह जाए। सदन की गौरवशाली परंपराओं को बनाए रखते हुए यह व्यवस्था बनाने का प्रयत्न किया है कि शून्य काल की सूचनाओं में पहली बार चुन कर आए विधायकों की सूचनाओं को प्राथमिकता क्रम में सबसे ऊपर रखा जाए। पहली बार निर्वाचित तीन सदस्यों की सूचनाओं को उसी दिन स्वीकार किए जाने की व्यवस्था भी दी गई जिस दिन वे प्राप्त हुई थीं। इस कदम को 16 वीं विधानसभा में एक नई परिपाटी निरूपित किया गया। नवाचार को आगे बढ़ाते हुए एक और व्यवस्था दी गई कि प्रश्न पूछने वाले सदस्यों को विधानसभा का कार्य काल समाप्त हो जाने के बाद भी अपने प्रश्न का उत्तर मिल सकेगा। व्यवस्था के अनुसार अब विधानसभा के विघटन के पूर्व सत्र तक लंबित प्रश्नों के अपूर्ण उत्तरों के उत्तर व्यपगत नहीं होंगे। इसके संबंध में परीक्षण कर प्रश्न एवं संदर्भ समिति द्वारा कार्यवाही की जाएगी तथा समिति द्वारा अनुशंसा सहित प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जाएगा।
मध्यप्रदेश राज्य और मध्यप्रदेश विधानसभा की अब तक कि यात्रा पर एक नजर डालें तो हमें गर्व के कई पल प्राप्त होंगे। तथ्य बताते हैं कि 2600 से अधिक व्यक्तित्वों ने अब तक विधानसभा का प्रतिनिधित्व किया है। सदन में 6 लाख 43 हजार से अधिक प्रश्नों को उठाया गया है। समन्वय, प्रशिक्षण और नवाचार की त्रिवेणी के माध्यम से यह प्रयत्न किया गया है कि विधानसभा की कार्यवाहियां राजनीतिक विचार से ऊपर उठ कर जन सरोकारों का मंच बन सके। तकनीक के साथ कदमताल मिलते हुए ई विधानसभा की प्रक्रिया को अपनाया गया है ताकि पूरी विधानसभा हाईटेक और डिजिटल बनाई जा सके।
मध्यप्रदेश विधानसभा की अब तक की यात्रा जितनी गौरवपूर्ण है भविष्य उतना ही आश्वस्तिपूर्ण पाता हूं। यहां बैठने वाले हर सदस्य, यहां की कार्यवाहियों के संचालन में लगे प्रत्येक कर्मचारी-अधिकारी और समूची व्यवस्था प्रदेश की जनता के प्रति उत्तरदायित्व निभाने में उत्कृष्ट परिश्रम कर रहे हैं। मैं सभापति होने के नाते सभी को इस गौरव पल पर बधाई और शुभकामनाएं देता हूं और विश्वास व्यक्त करता हूं कि हमें मिले दायित्व को पूर्ण करने में विधायिका का प्रत्येक अंग सफल होगा। इस तरह हम मध्यप्रदेश को समृद्ध और समर्थ बना पाएंगे।
(लेखक: मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं)

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