
- आम व्यापारियों को न्यायिक प्रक्रिया में शामिल होने पर आ रही परेशानी
विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। गुड्स एंड सेवा टैक्स यानी जीएसटी के तहत टैक्सपेयर और टैक्स प्राधिकरणों के बीच उत्पन्न विवादों का समाधान करने के लिए जीएसटी ट्रिब्यूनल यानी न्याय निर्णायक प्राधिकरण का गठन किया गया है। लेकिन इसमें केवल अंग्रेजी को मान्य किया गया है।
यानी हिंदी को अमान्य कर दिया गया है। इससे आम व्यापारियों को न्यायिक प्रक्रिया में शामिल होने में परेशानी आ रही है। दरअसल, आदेश जारी किया गया है कि ट्रिब्यूनल में आने वाले प्रकरणों में दस्तावेज सिर्फ अंग्रेजी में ही स्वीकार होंगे। किसी प्रकरण को दाखिल करने और पैरवी करने के मामलों में संबंधित दस्तावेजों को भी अंग्रेजी में अनुवाद कर लगाना होगा। इस आदेश से असंतोष फूट पड़ा है। जीएसटी ट्रिब्यूनल में सिर्फ अंगेजी में काम करने को लेकर विवाद की स्थिति बन रही है। कर सलाहकार साफ कह रहे हैं कि कर विवादों में हिंदी और क्षेत्रीय भाषा को बाहर कर न्याय महंगा करने और आम व्यापारी को न्यायिक प्रक्रिया से दूर करने की कोशिश हो रही है। चार्टर्ड अकाउंटेंट एसएन गोयल कहते हैं कि हिंदी के दस्तावेजों को तो आयकर अपीलेट ट्रिब्यूनल में भी मान्य किया जाता है। जीएसटी में भी कम से कम तीन भाषाओं को तो मान्यता होनी चाहिए। यह आदेश दिया होता कि संस्कृत या अन्य अप्रचलित कठिन भाषा के दस्तावेजों का अनुवाद कर पेश करना है तो समझ भी आता, लेकिन हिंदी के दस्तावेज नहीं स्वीकारना अन्यायपूर्ण ही है।
अहिल्या चैंबर आफ कामर्स के साथ व्यापारियों ने जीएसटी ट्रिब्यूनल से हिंदी को बाहर रखने का विरोध शुरू कर दिया है। चैबर के अध्यक्ष रमेश खंडेलवाल के अनुसार 20 मई को दिल्ली में होने वाली नेशनल ट्रैडर्स वेलफेयर बोर्ड की बैठक में इस मुद्दे को लाकर विरोध जताया जाएगा। यही सीधे तौर पर राष्ट्रभाषा का अपमान है। जब हाई कोर्ट और अन्य न्यायिक संस्थाएं भी हिंदी से इनकार नहीं करती तो ट्रिब्यूनल कैसे कर सकता है। इससे यह होगा कि ट्रिब्यूनल तक जाने के लिए व्यापारी का खर्च और परेशानी बढ़ेगी। हिंदी विरोध की यह मंशा उचित नहीं है। इससे पहले इंदौर को जीएसटी ट्रिब्यूनल नहीं देना भी सरकार की मनमानी को दिखा रहा है।
जीएसटी ट्रिब्यूनल की व्यवस्था इसलिए
दरअसल, कर प्रणाली जीएसटी में व्यवस्था है कि कर विवादों का निराकरण कोर्ट से पहले ही कर दिया जाए। आयकर की तरह जीएसटी के कर विवादों के निराकरण के लिए जीएसटी ट्रिब्यूनल की व्यवस्था दी गई। 2017 में जीएसटी लागू हुआ, लेकिन अब तक ट्रिब्यूनल जमीन पर नहीं आए, सिर्फ अधिसूचना जारी हुई। स्थापना की अधिसूचना के बाद अब सरकार ने नई अधिसूचना जारी कर दी कि ट्रिब्यूनल में जाने वाले मामलों में दस्तावेज सिर्फ अंग्रेजी में ही प्रस्तुत किए जा सकेंगे। यदि कोई दस्तावेज अन्य भाषा में हुआ तो उसका अंग्रेजी अनुवाद कर लगाना होगा। इस नियम को अव्यावहारिक ही नहीं, परेशानी बढ़ाने वाला माना जा रहा है। 2017 में जब जीएसटी प्रणाली लागू हुई थी तब सरकार ने इस प्रणाली को सुलभ बनाने के लिए तमाम घोषणाएं की थीं। कर सलाहकार आरएस गोयल के अनुसार तब घोषणा की गई थी कि जीएसटी पोर्टल 18 भाषाओं में काम करेगा। यानी हर क्षेत्र की भाषा को मान्य किया जाएगा ताकि रिटर्न से लेकर प्रक्रिया तक हर व्यापारी के लिए आसान हो। ऐसा तो हुआ नहीं, अब ट्रिब्यूनल में तो हिंदी को भी बिसरा दिया गया है। राजभाषा होते हुए हिंदी के दस्तावेज भी मान्य नहीं करना सीधा संकेत है कि आम व्यापारी के लिए न्याय महंगा और मुश्किल होगा। वह चाहेगा तो भी अपनी लड़ाई खुद नहीं लड़ सकेगा।