
- शिवराज की योजना अब पड़ रही खजाने पर भारी
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा शुरु की गई मुख्यमंत्री आवास योजना अब प्रदेश के सरकारी खजाने पर भारी पड़ रही है। इसकी वजह है योजना के तहत हितग्राही को दिए जाने वाले कर्ज की सरकार द्वारा गारंटी देना। प्रदेश में इस योजना के तहत लाभ लेने वाले लोगों की संख्या साढ़े छह लाख है, लेकिन इनमें से 5 लाख 28 हजार ऐसे हितग्राही हैं, जिनके द्वारा कर्ज का भुगतान ही नहीं किया जा रहा है। ऐसे में अब उनके कर्ज की राशि का भुगतान सरकार को अपने खजाने से करना पड़ रहा है। यह स्थिति तब है जब सरकार ने बैंक से ऋण दिलाने के लिए न केवल अपनी गारंटी दी, बल्कि आधी राशि का भार भी उठाया। अब बैंकों को कर्ज में दी गई राशि की वसूली न हो पाने की वजह से सरकार से राशि की मांग की जा रही है, लिहाजा मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को सभी बकायेदारों का ऋण चुकाने का निर्णय करना पड़ रहा है। इससे सरकारी खजाने पर 2,345 करोड़ रुपये का भार आना तय है।
शिवराज सरकार में लागू हुई थी योजना: दरअसल, इस योजना की शुरुआत तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा 2015 में की गई थी। जो लोग प्रधानमंत्री आवास ग्रामीण की सूची में शामिल नहीं हो पाए थे, उनके अपने आवास का सपना पूरा करने के लिए शिवराज सरकार ने मुख्यमंत्री आवास योजना बनाई थी। इस योजना का उद्देश्य 2022 तक सभी को घर उपलब्ध करना है। इस योजना में सरकार ने 20 लाख घरों का निर्माण करवाने का लक्ष्य तय किया गया था। इसमें से 18 लाख घर झुग्गी -झोपड़ी वाले इलाके में बाकी 2 लाख शहरों के गरीब इलाकों में निर्माण होना था। फिलहाल प्रदेश में छह लाख आवासों का निर्माण ही हुआ है। इसके लिए साढ़े 6 लाख परिवारों का चयन हुआ।
इसमें 50 हजार रुपये राज्य सरकार ने अपनी ओर से दिए और इतनी ही राशि का ऋण बैंकों से स्वीकृत कराया। 15 वर्ष में यह राशि चुकाई जानी थी, लेकिन 1 लाख 22 हजार लाभार्थियों ने ही ऋण चुकाया। 5 लाख 28 हजार बकायेदारों का ऋण चुकाने के लिए मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग योजना बना रहा है। राज्य सरकार ने 8 वर्षों में 3 हजार 20 करोड़ रुपये स्वीकृत किए थे। ब्याज सहित यह राशि छह हजार 45 करोड़ रुपये हो गई। इसमें से अब तक सरकार अपने हिस्से के 3,700 करोड़ रुपये बैंकों को दे चुकी है। 2,345 करोड़ रुपये बकाया हैं। इसके लिए पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने सभी बैंकों से बकायेदारों का विस्तृत ब्यौरा मांगा है, ताकि एकमुश्त ऋण माफी योजना बनाकर कैबिनेट के समक्ष प्रस्तुत की जा सके।
अफसरों का यह तर्क
विभागीय अधिकारियों का कहना है कि कुछ लाभार्थी वास्तव में ऐसे हो सकते हैं, जो ऋण चुकाने की स्थिति में न हों। वास्तविक स्थिति का पता लगाकर प्रस्ताव तैयार किया जाएगा। बैंकों से भी कहा गया है कि वे एक-एक बकायादार का विस्तृत ब्योरा बनाकर दें , क्योंकि यह संभव है कि कुछ की बहुत कम राशि शेष रह गई हो और किसी कारण से वे न चुका पाए हों। चूंकि सरकार संपूर्ण ऋण अपने ऊपर लेगी, इसलिए समझौते के लिए सभी पहलुओं पर चर्चा होगी। जिस तरह राज्य सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक के बकायेदारों के लिए एकमुश्त समझौता योजना लागू की गई थी, वैसा फार्मूला भी बनाया जा सकता है। इसमें सरकार ने बैंकों की देनदारी को 10 वर्ष की समान किस्तों में चुकाया था।