
- ट्रेड आरक्षकों को आरक्षक जीडी बनाने का मामला
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में ऐसे कई पुलिसकर्मी हैं जो कहने को तो आरक्षक से लेकर एसआई हैं , लेकिन करनी उन्हें साहबों की सेवा पड़ रही है। यह वे ट्रेड पुलिसकर्मी हैं, जिन्हें अब तक साहबों की सेवा से निकलकर थानों में पदस्थ होकर जनता की सुरक्षा करनी चाहिए थी, लेकिन प्रदेश में अफसरशाही ऐसी हावी है की उन्हें पसंद ही नहीं है की उनके सेवादारों में कोई कमी हो, तभी तो वे न तो हाईकोर्ट के निर्देश मान रहे हैं और न ही अपने विभाग के मंत्री यानि की गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा की नोटसीट पर अमल कर रहे हैं। इसका उदाहरण हैं एएसआई विक्रम सिंह, वे पुलिस महकमे में आरक्षक ट्रेड के पद से भर्ती हुए थे। बीस साल में वे पदोन्नत होकर एएएसआई बन चुके हैं, लेकिन अब भी वे पन्ना पुलिस लाइन में पदस्थ हैं। उनका ताल्लुक मोची ट्रेड से है। वे पुलिस विभाग में अफसर हैं, लेकिन उनका काम अपने बॉस यानी आईपीएस अफसरों के जूतों में पॉलिसकर उनके चमकाने का ही है। इसकी वजह है ट्रेड आरक्षकों का संविलियन आरक्षक जीडी (सामान्य) के पद पर नहीं होना।
सूबे में ऐसे कई पुलिसकर्मी हैं, जिन्हें अब भी ट्रेड के ही अनुसार काम करना पड़ रहा है। कमोवेश यही स्थिति स्वीपर, धोबी, नाई (ट्रेड) के तौर पर विभाग में काम करने वाले पुलिस अफसरों की भी बनी हुई है। कहने को तो वे पुलिस विभाग में अधिकारी है। दिखते भी वैसे ही हैं, क्योंकि वे अधिकारी की वर्दी पहनते हैं और कंधे में फित्ती के साथ स्टार भी लगाते हैं। उसके बाद काम मोची, स्वीपर और धोबी का करते हैं। मध्यप्रदेश में 2013 से पहले तक इस तरह की स्थिति नहीं थी। इसकी वजह थी ट्रेड आरक्षक के तौर पर भर्ती होने वाले पुलिसकर्मियों का आरक्षक जोड़ी के पद पर संविलियन कर दिया जाना। इसके लिए दस साल की सेवा, अच्छा रिकार्ड और तय शैक्षणिक योग्यता की शर्त तो थी ही, साथ ही आरक्षक जीडी का पद मिलने के बाद उनके लिए भी सामान्य पुलिसकर्मियों की तरह प्रशिक्षण अनिवार्य था। कई सालों तक चली इस व्यवस्था को 19 जून 2013 को अचानक समाप्त कर दिया गया।
उस समय दलील दी गई थी कि बटालियन की कंपनियों में कुक, नाई, धोबी, मोची, स्वीपर, वाटर कैरियर के पद से भर्ती होने वाले पुलिसकर्मी हवलदार बन गए हैं और वे गार्ड व संतरी पहरा की ड्यूटी नहीं कर पा रहे है। सवाल अफसरों की मंशा पर है, क्योंकि उसके लिए प्रशिक्षण अनिवार्य था। प्रशिक्षण पास नहीं करने वाले आरक्षक जीडी बनने के हकदार नहीं होते थे। अब ट्रेड आरक्षकों का एक कैडर बना दिया है। वे अपने कैडर में आरक्षक के पद पर भर्ती होते हैं और पदोन्नति पाकर अधिकारी बन जाते हैं। गौर करने वाली बात यह भी है कि आरक्षक जीडी के पद से भर्ती होने वाले पुलिसकर्मी पदोन्नति पाकर टीआई बन गए हैं। आधा दर्जन से अधिक टीआई तो भोपाल जिले में ही बतौर थाना प्रभारी तक काम कर रहे हैं। हद तो यह है की गृहमंत्री डा. नरोत्तम मिश्रा ने संवेदनशीलता दिखाते हुए इस मामले में नोटशीट भी लिखी फिर भी अफसर ट्रेड आरक्षकों को उनका हक देने को तैयार नहीं हैं। गृहमंत्री ने 24 मार्च 2022 को अपर मुख्य सचिव गृह को बाकायदा नोटशीट लिखकर ट्रेड आरक्षकों को आरक्षक जीडी के पद पर संविलियन के निर्देश दिए थे। उन्होंने हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ का हवाला देते हुए लिखा, ट्रेड आरक्षकों को आरक्षक जीडी बनाने का आदेश पहले भी जारी किया गया है।
इससे शासन पर अतिरिक्त वित्तीय भार भी नहीं आएगा, क्योंकि दोनों का पद और वेतन समान है। इसके बाद भी अभी तक आदेश जारी नहीं किया गया है। यसह बात अलग है की इसके लिए पीएचक्यू स्तर पर भी प्रयास शुरू किए गए, लेकिन उनका अब तक कोई नतीजा नहीं निकला है। तत्कालीन पुलिस महानिदेशक विवेक जौहरी ने 15 जनवरी 2021 को आदेश जारी कर संविलियन के मुद्दे पर रिपोर्ट देने के लिए एडीजी प्रशासन की अध्यक्षता में चार सदस्यीय समिति बनाई थी। समिति को एक सप्ताह में रिपोर्ट देना था। बताते हैं कि समिति ने अभी तक अपनी रिपोर्ट नहीं दी है। आला अफसरों की माने तो अगर रिपोर्ट दी भी होगी, तो वह कहां हैं पता ही नहीं है।
वेतनमान एकसमान
आरक्षक ट्रेड और आरक्षक जीडी का वेतनमान एक समान है। पीएचक्यू ने गृह विभाग को लिखकर दिया है कि दोनों का वेतनमान 5200 से 20200 के बीच है। दोनों आरक्षकों का ग्रेड-पे भी 1900 रुपए है इसलिए शासन पर अतिरिक्त आर्थिक भार नहीं आएगा। पुलिस में ट्रेड आरक्षकों का दर्जा दो तरह का है। इसमें पहला तकनीकी ट्रेड के रूप में ड्राइवर, कारपेंटर, इलेक्ट्रिशियन और लोहार का है तो दूसरा अनुचर ट्रेड है। इसके तहत नाई, धोबी, स्वीपर मोची, कुक, वाटर कैरियर को भर्ती किया जाता है।