डेढ़ दशक बाद लौटने को तैयार नही हैं अफसर

-कई विभागों की टूटी नींद , मांगी जानकारी

भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। अपने चहेतों को उपकृत करने के लिए प्रदेश में आला अफसर नियम और कानूनों की खुलकर धज्जियां उड़ा रहे हैं , लेकिन इसके बाद भी ऐसे अफसरों के खिलाफ न तो शासन कोई कार्रवाई करता है और न ही प्रशासन। इस मामले में वैसे भी सरकारों से कार्रवाई की अपेक्षा करना बेमानी है। वजह है प्रतिनियुक्ति का खेल तो सरकारों की मंशा से ही खेला जाता है। इसकी वजह से मूल विभाग अफसरों व कर्मचारियों की कमियों से जूझता रहता है और विभाग के काम प्रभावित होते रहते हैं। अब पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन में हेमा मीणा के यहां छापा पड़ा तो एक बार फिर से प्रतिनियुक्ति के मामले में हल चल तेज हो गई है। दरअसल हेमा मीणा की काली कमाई में खुलकर सहयोग करने वाले इंजिनियर जनार्दन बीते डेढ़ दशक से प्रतिनियुक्ति पर कारपोरेशन में नियमों के विरुद्ध जमे हुए हैं। इसके बाद अब सरकार ने इस मामले में सख्ती दिखाना शुरु किया है। नियमानुसार किसी भी कर्मचारी की प्रतिनियुक्ति की अवधि तीन साल की होती है। अति आवश्यक होने पर उसमें एक साल की वृद्धि की जा सकती है, लेकिन प्रदेश में ऐसे सैकड़ों अफसर व कर्मचारी हैं, जो एक बार प्रतिनियुक्ति पर गए तो पलट कर मूल विभाग की और देख तक नहीं रहे हैं। इसमें इंजिनियर जनार्दन का नाम भी शामिल है। उनका मामला खुला तो जीएडी विभाग की भी नींद टूटी और अब उसके द्वारा सभी विभागों से ऐसे कर्मचारियों व अफसरों की सूची मांगी गई है। जनार्दन के मामले का खुलासा होने के बाद लोक निर्माण विभाग के प्रमुख सचिव सुखवीर सिंह ने विभिन्न विभागों में प्रतिनियुक्ति अवधि खत्म होने के बाद भी जमे इंजीनियरों की जानकारी तलब की है। प्रभारी प्रमुख अभियंता (ईएनसी) नरेंद्र कुमार ने असिस्टेंट इंजीनियर जनार्दन सिंह (निलंबित) की प्रतिनियुक्त के संबंध में पत्र लिखकर कहा है कि वह 15 वर्ष से प्रतिनियुक्ति पर पुलिस हाउसिंग कॉर्पोरेशन में कार्यरत हैं। अत: इनकी सेवाएं प्रतिनियुक्ति से वापस ली जाकर विभाग में पदस्थ किया जाए। जनार्दन के मामले में खास बात यह है कि उनकी प्रतिनियुक्ति से वापसी के लिए विभाग द्वारा तीन बार कारपोरेशन को लिखा गया था, लेकिन कारपोरेशन ने अधूरे प्रोजेक्ट होने का बहाना कर उन्हें वापस ही नहीं भेजा। जनार्दन की नियुक्ति पीडब्ल्यूडी में 12 जुलाई 1991 को सब इंजीनियर सिविल के पद पर हुई थी। वह आरक्षित कोटे से 18 जनवरी 2006 को असिस्टेंट इंजीनियर के पद पर पदोन्नत हो गया था।
2007 से डेपुटेशन पर…
लोक निर्माण विभाग ने 16 जनवरी 2007 को जनार्दन की सेवाएं पुलिस हाउसिंग कॉर्पोरेशन को सौंपी थीं। इसके बाद 19 जनवरी 2016 को जनार्दन और अन्य अधिकारियों की सेवाएं विभाग ने वापस लिए जाने का आदेश जारी किया था , लेकिन जनार्दन ने इस पर अमल ही नहीं किया , लेकिन फिर भी उन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसके बाद विभाग ने 13 दिसंबर 20219 को जनार्दन सिंह की पोस्टिंग चीफ इंजीनियर (ब्रिज) सेक्शन भोपाल में करने का आदेश जारी कर उन्हें  पुलिस हाउसिंग से कार्य मुक्त करने को कहा लेकिन, जनार्दन ने आदेश मानने की जगह हाईकोर्ट की शरण ले ली।
स्कूल शिक्षा में सबसे ज्यादा
इस मामले के खुलासे के बाद राज्य शिक्षा केंद्र भी हरकत में आ गया है। केन्द्र द्वारा जब प्रतिनियुक्ति पर जमे अफसरों और कर्मचारियों की सूची तैयार करवाई गई तो उसमें कई अफसर व कर्मचारी ऐसे पाए गए हैं , जो बीते एक दशक से प्रतिनियुक्ति पर जमे हुए हैं। 

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