सत्ता की राह में ‘62’ का रोड़ा

सत्ता की राह

गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मिशन 2023 फतह करने के लिए भाजपा और कांग्रेस ने वादों-दावों के साथ ही फुल प्रूफ रणनीति भी बनाई है। लेकिन दोनों पार्टियों की राह में उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे क्षेत्रों यानी ग्वालियर-चंबल, बुंदेलखंड और विंध्य की 62 सीटें सबसे बड़ी बाधा हैं। इसकी वजह यह है कि इन क्षेत्रों की अधिकांश सीटों पर सपा और बसपा का प्रभाव है। यानी इन क्षेत्रों की सीटों पर सपा और बसपा जीतने का भी दम रखती हैं और जिन सीटों पर ये पार्टियां नहीं जितती हैं, वहां भाजपा-कांग्रेस की हार का कारण जरूर बनती हैं। इसलिए भाजपा और कांग्रेस को सत्ता तक पहुंचने के लिए ग्वालियर-चंबल, बुंदेलखंड और विंध्य में अच्छा प्रदर्शन करना होगा।
मप्र की राजनीति में माना जाता है कि भाजपा का अपना वोट बैंक है, वहीं कांग्रेस का प्रदर्शन सपा-बसपा की स्थिति पर निर्भर रहता है। शायद यही वजह रही है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भाजपा पदाधिकारियों  को सपा-बसपा की मदद करने की बात कही है। दरअसल, भाजपा का मानना है कि सपा-बसपा प्रत्याशी जितनी मजबूती से लड़ेंगे उतना ज्यादा नुकसान कांग्रेस को होगा। उत्तर प्रदेश से सटे ग्वालियर- चंबल, बुंदेलखंड और विंध्य में सपा-बसपा का 62 सीटों पर मजबूत प्रभाव है। उनके प्रत्याशी पिछले चुनाव में इन सीटों पर 5 हजार से लेकर 69 हजार तक बोट पाने में सफल भी हुए थे। बसपा ने 46 तो सपा ने 7 सीटों पर भाजपा-कांग्रेस के समीकरण बिगाड़े थे। बसपा दो तो सपा एक सीट पर जीती भी थी।
29 सीटों पर भाजपा-कांग्रेस को कड़ी चुनौती
इस बार सपा-बसपा प्रत्याशियों पर नजर डालें तो वे 29 सीटों पर भाजपा-कांग्रेस को कड़ी चुनौती दे रहे हैं। 12 सीटों पर इनकी लड़ाई से कांग्रेस मुश्किल में दिख रही है, तो वहीं 8 सीटों पर ये भाजपा का नुकसान कर रहे हैं। 9 सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस-भाजपा दोनों को सपा-बसपा के प्रत्याशी डैमेज कर  रहे हैं। पिछली बार के नतीजों की तरह भाजपा-कांग्रेस की सीटों में मामूली अंतर रहा तो यह 29 सीटें निर्णायक होंगी। कांग्रेस प्रवक्ता अवनीश बुंदेला बताते है कि हम तो शुरू से कहते रहे हैं कि बसपा-सपा और आप मप्र में सीधे तौर पर भाजपा को फायदा पहुंचाते हैं। यदि भाजपा को इन पार्टियों की मदद की जरूरत पड़ रही है, तो समझ जाइए इनकी हालत चुनाव में क्या होने जा रही है?
ग्वालियर-चंबल में मजबूत टक्कर
बसपा ग्वालियर-चंबल में मुरैना व भिंड जिले में सबसे मजबूत रही है। इस अंचल की 34 में से 10 सीटों पर बसपा और एक सीट पर सपा बसपा के प्रत्याशी कांग्रेस से अधिक भाजपा को नुकसान पहुंचा रहे हैं। भिंड में बसपा से विधायक संजीव कुशवाह मैदान में हैं। इसी तरह भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष रविसेन जैन सपा प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं। ये भाजपा-कांग्रेस दोनों के वोटों को प्रभावित कर रहे हैं। अटेर में सपा ने भाजपा के पूर्व विधायक मुन्ना सिंह भदौरिया पर दांव खेला है। यहां भाजपा-कांग्रेस के साथ सपा की वजह से त्रिकोणीय लड़ाई है। मुत्रा यहां सीधे तौर पर भाजपा को नुकसान पहुंचा रहे हैं। वहीं, लहार सीट पर भाजपा के बागी रसाल सिंह के चुनाव लडऩे से कांग्रेस मुश्किल में है। यहां भी भाजपा- कांग्रेस की लड़ाई को बसपा त्रिकोणीय बना रही है। ऐसे में नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह को ये सीट जीतने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है।
बुंदेलखंड में सपा और बसपा मजबूत
बुदेलखंड में 26 विधानसभा सीटें आती हैं। पिछली बार भाजपा 17, कांग्रेस 7 और सपा-बसपा को एक-एक सीट पर सफलता मिली थी। इस बार भी सपा-बसपा 10 सीटों पर लड़ाई को त्रिकोणीय और चतुष्कोणीय मुकाबले में बदल चुकी हैं। ये अंचल दलित उत्पीडऩ को लेकर सुर्खियों में रहता है। पीएम नरेंद्र मोदी ने सागर में संत रविदास स्मारक एवं संग्रहालय का भूमिपूजन किया था, तो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़ेे की पहली सभा इसी जगह पर हुई। सागर की बंडा सीट से बसपा ने भाजपा के बागी रंजोर सिंह बुंदेला पर दांव लगाया है। भाजपा-कांग्रेस के दोनों प्रत्याशी लोधी समाज से आते हैं। इस सीट पर बुंदेला सहित दूसरे ओबीसी और सामान्य वर्ग के वोटरों में बुंदेला की अच्छी पकड़ है। बुंदेला की मौजूदगी से कांग्रेस को चोट पहुंच रही है। पन्ना जिले की गुन्नौर सीट पर बसपा ने पार्टी जिलाध्यक्ष देवीदीन को टिकट दिया है। वहीं, भाजपा की बागी अमिता बागरी को सपा ने प्रत्याशी बनाया है। भाजपा-कांग्रेस को दोनों ही उम्मीदवारों से कड़ी चुनौती मिल रही है। इस चतुष्कोणीय मुकाबले में भाजपा को नुकसान होता दिख रहा है।
विंध्य में मुकाबला रोचक
भाजपा ने सांसद गणेश सिंह को सतना से प्रत्याशी बनाया है। उनका मुकाबला कांग्रेस के मौजूदा विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा से है। भाजपा के बागी रत्नाकर चतुर्वेदी पर बसपा ने दांव लगाकर मुकाबले को रोचक बना दिया है। इस सीट पर सवर्ण मतदाता निर्णायक हैं। रत्नाकर इस वोट बैंक में सेंध लगाकर कांग्रेस की उम्मीदों को झटका देने में जुटे हैं। दूसरी ओर पिछली बार बसपा की वजह से भाजपा को 22 सीटों का नुकसान हुआ था। वहीं, कांग्रेस को 24 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। दो सीटों पर बसपा के प्रत्याशी चुनाव जीतने में सफल हुए थे। सबलगढ़, जौरा, ग्वालियर ग्रामीण, पौहरी, रामपुर बघेलान और देवतालाब में वो दूसरे नंबर पर थी। विंध्य की 22 सीटों में से पिछली बार भाजपा को 19 पर सफलता मिली थी। इस बार भी सपा-बसपा ने भाजपा-कांग्रेस के बागियों पर दांव खेला है। यहां सपा-बसपा का पहले से जनाधार रहा है। इस बार 8 सीटों पर सपा-बसपा प्रत्याशी ही नतीजे तय करने में अहम भूमिका निभाएंगे। निवाड़ी में सपा ने मीरा दीपनारायण यादव को टिकट दिया है।  बसपा ने भाजपा के बागी अवधेश राठौर पर दांव खेला है। इस चतुष्कोणीय लड़ाई में सपा-भाजपा के मुकाबले को बसपा रोचक बनाने में जुटी है। कांग्रेस को यहां संघर्ष करना पड़ रहा है। रीवा जिले की सिरमौर सीट से बसपा ने रिटायर्ड अफसर  वीडी पांडे को मैदान में उतारा है। सपा ने भाजपा के पूर्व विधायक लक्ष्मण तिवारी को टिकट दिया है। इनकी मौजूदगी से भाजपा-कांग्रेस का समीकरण बिगड़ रहा है। चतुष्कोणीय लड़ाई में कोई भी मैदान मार सकता है। सतना की नागौद सीट से कांग्रेस ने मामूली अंतर से हारे पूर्व विधायक यादवेंद्र सिंह का टिकट काट दिया। इसके बाद वे बसपा के सारथी बन गए। अब सीट पर भाजपा-कांग्रेस के साथ बसपा भी लड़ाई में है। उधर, कांग्रेस के पूर्व सांसद प्रेमचंद्र गूड्डू सहित कई नेता भी बागी होकर कांग्रेस के लिए मुसीबत बने हुए हैं।

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