एक साल में तंबाकू से दूरी बनाने वालों की संख्या बढ़ी

 तंबाकू

कोविड महामारी के संकटकाल में लोगों की परेशानियों के बीच कुछ सकारात्मक काम भी हुए
 
भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम।
कोरोना के दुष्प्रभाव से जहां आम आदमी बेहद परेशान बना हुआ है, वहीं इसका सकारात्मक पक्ष यह है कि इसी अवधि में लोगों द्वारा स्वस्फूर्त ढंग से तम्बाकू उत्पादों से पीछा छुड़ाने के वृहद स्तर पर प्रयास किए हैं। इसकी वजह से तंबाकू छोड़ने वालों की संख्या में बढ़ी वृद्वि हुई है। यह प्रयास अब तक सरकारी स्तर पर चलाए गए प्रदेश के सालों के अभियानों की तुलना में कई गुना अधिक भारी पड़ रहे हैं। इसकी वजह है इस मामले में जागरुकता चलाने के लिए मिलने वाली राशि का उपयोग तक मैदानी अफसरों के नकारापन की वजह से खर्च ही नहीं की जाती है। अगर यह राशि खर्च भी की जाती है तो ऐसे कामों में जिनका कोई औचित्य नहीं होता है। इस मामले में स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े बेहद चौंकाने के साथ ही बदल रहे समाज की तस्वीर दिखाते हैं। इन आंकड़ों की माने तो प्रदेश के 42 फीसदी पुरुषों ने बीते एक साल में बीड़ी-सिगरेट पीने की आदत छोड़ने का प्रयास किया है। इसमें कई लोगों को पूरी तरह से कामयाबी मिली तो कई लोग उस पर बहुत हद तक काबू पाने में सफल रहे है। इसी तरह से इस मामले में 50 फीसदी महिलाओं ने भी तंबाकू, जर्दा या खैनी चबाने की आदत छोड़ने का प्रयास किया है। इस बीच जो जानकारी सामने आ रही है इस व्यवसाय से जुड़ी बड़ी कंपनियों ने अपनी छवि चमकाने के लिए सीएसआर (कार्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी) के तहत सरकार को 5 महीने में करीब 270 करोड़ रुपए दिए हैं।
सर्वेक्षण में यह भी आया सामने
इस मामले में किए गए सर्वेक्षण में सामने आया है कि पहली सिगरेट 8 से 13 वर्ष की उम्र में ध्रूमपान करने वाले पीते हैं। फिलहाल प्रदेश में कुल 50.2 प्रतिशत पुरुष और 17.3 प्रतिशत महिलाएं तंबाकू का सेवन करती हैं। 24.7 प्रतिशत लोग सार्वजनिक जगहों पर अप्रत्यक्ष रूप से धूम्रपान के संपर्क में आते हैं। 36.4 प्रतिशत बच्चे घर में बड़ों के धूम्रपान की चपेट में आते हैं। 48.7 प्रतिशत बच्चे बाहर इसका शिकार होते हैं। 55 हजार बच्चे हर साल तंबाकू सेवन करने वालों की सूची में शामिल हो जाते हैं।  
गर्भवती महिलाओं के शिशुओं पर बुरा प्रभाव
सर्वे में पाया गया है कि ग्रामीण इलाकों में महिलाओं द्वारा तंबाकू का उपयोग मुंह साफ करने के अलावा प्रसव पीड़ा को दूर करने के लिए भी किया जाता है। इसका बुरा असर गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है। बच्चों के आसपास धूम्रपान से नवजात शिशु की मौत का संकट, निमोनिया, काली खांसी, फेफड़ों संबंधी समस्याएं पैदा होने की वजह भी बनता है।
तंबाकू कंपनियों द्वारा छवि चमकाने का प्रयास
इस बीच कोरोना काल के पांच माह में तंबाकू निर्माण कंपनियों ने अपनी छवि बनाने के प्रयास में कार्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के तहत सरकार को लगभग 270 करोड़ रुपए दिए हैं। यह पैसा उनके द्वारा पीएम केयर फंड और सीएम रिलीफ फंड सहित एनजीओ आदि को दिया गया है। यह दान विश्व स्वास्थ्य संगठन के फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टोबैको कंट्रोल की धारा-13 और भारतीय सिगरेट एवं अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम 2003 का खुला उल्लंघन है। मप्र वॉलंटरी हेल्थ एसोसिएशन के मुताबिक सीएसआर के जरिए तंबाकू कंपनियां अपनी अच्छी छवि बनाने का प्रयास करती हैं। दूसरी ओर लाखों लोगों की मौत तंबाकू सेवन से होने वाली बीमारियों से होती है, जो बड़ा विरोधाभास है।
खुद का किया प्रचार
यह खुलासा इंटरनेशनल यूनियन अंगेस्ट ट्यूबरकुलोसिस एंड लंग डिजीज के शोध में हुआ है। डॉ. अमित यादव, प्रणय लाल, रेनु शर्मा, आशीष पांडेय और डॉ. राणा जगदीप सिंह ने संयुक्त रूप से यह शोध किया था। डॉ. यादव बताते हैं कि आइटीसी और धर्मपाल-सत्यपाल समूह, डेक्कन, गुजरात टोबैको के साथ अन्य कंपनियों ने कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी की मदद से खुद का प्रचार किया है।

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