अब स्थानीय गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों से रुबरु होने का मिलेगा मौका

भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। देश में समय -समय पर हुए स्वत्रंता संग्राम में मप्र का भी बेहद महत्वपूर्ण रोल रहा है। प्रदेश का कोई ऐसा इलाका नही हैं, जहां पर अंग्रेजी शासन के खिलाफ कोई जनआंदोलन न हुआ हो, लेकिन देश की आजादी की लड़ाई में अपना बलिदान देने वाले और अंग्रेजी हुकूमत के दमन का सामना करने वाले इतिहास में जगह न मिलने की वजह से कई वीर अनाम ही बने रहे। ऐसे  अनाम वीरों की जानकारी लाकर उनके संघर्ष की गाथा और देशभक्ति को सामने लाने के लिए संस्कृति विभाग के मातहत आने वाले स्वराज संस्थान के प्रयास अब रंग लाने वाले हैं। दरअसल इसके लिए संस्थान द्वारा हर जिले में अलग-अलग शोध कराकर उनकी जानकारी पुस्तकों के रूप में दर्ज कराई जा रही है। इन पुस्तकों को आगे जाकर विक्रय के लिए उपलब्ध कराया जाएगा। फिलहाल पुस्तकों के विक्रय की व्यवस्था होने तक इन्हें आॅनलाइन पढ़ने की सुविधा शुरू की जा रही है। खास बात यह है कि संस्थान द्वारा कराए गए शोध से खुलासा हुआ है कि आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में सबसे ज्यादा जंगल कानून तोडकर अंग्रेज सरकार का विरोध किया गया था। दरअसल यह शोध स्वाधीनता फैलोशिप के तहत प्रदेश के सभी 52 जिलों में कराया गया है। इसकी शुरूआत वर्ष 2007-08 में की गई थी। शोध में आयी जानकारी के आधार पर  प्रत्येक जिले की एक-एक  पुस्तिका तैयार कराई जा रही है। प्रदेश के इन सभी जिलों में तब सक्रिय रहे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का इतिहास भी इसमें मिलेगा। इससे प्रत्येक व्यक्ति अपने जिले के साथ ही अलग-अलग जिलों या फिर अपनी रुचि के हिसाब से किसी भी जिले स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और उनके संघर्ष का प्रामाणिक जानकारी ले सकेंगे। यही नहीं इससे  स्वाधीनता संग्राम में अनाम सेनानियों की भूमिका की भी जानकारी वर्तमान के साथ ही आने वाली पीढ़ी के समक्ष आ सकेगी। माना जा रहा है कि यह किताबें अगले माह के बाद उपलब्ध हो सकती हैं। खास बात यह है कि शोध में कुछ चौकाने वाले तथ्य भी सामने आए हैं, जिन्हें भी इन किताबों में शामिल किया जा रहा है। स्वराज संस्थान संचालनालय के अनुसार शोध के आधार पर प्रत्येक जिले की 200 से 500 पन्नों की अलग-अलग पुस्तकों का प्रकाशन किया जा रहा है। कुछ छोटे और नए जिलों की किताबें दो जिलों को मिलाकर लिखी गई हैं। इस प्रकार प्रदेश में कुल 52 जिलों की 44 किताबें तैयार की जा रही हैं। किताबें छपने के बाद उन्हें भोपाल में स्वराज संस्थान संचालनालय और शौर्य स्मारक स्थित बुक स्टॉल पर आम लोगों को खरीदने के लिए उपलब्ध कराने की योजना है। यह बात अलग है कि अभी जिलों में किताबों के विक्रय की कोई व्यवस्था नहीं है, जिसकी वजह से इन्हें आसानी से उपलब्ध कराने के लिए ई-कॉमर्स साइट्स का सहारा भी लिया जा रहा है। किताबें प्रकाशित होने तक आनलाइन ऑर्डर की सुविधा देने की भी तैयारी है।
 इस तरह की जानकारी आयी सामने
शोध के दौरान अंग्रेज अफसरों द्वारा लिखे गए कुछ पत्रों से पता चलता है कि 1842 व 1857 की क्रांति बुंदेलखंड में खासी प्रभावी रही। इसकी वजह से अंग्रेज सरकार में दहशत बनी हुई थी। सीहोर में बनी सिपाही बहादुर सरकार की स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका सामने आई है। उस दौरान तत्कालीन नवाब सिकंदर जहां बेगम की अंग्रेज सरकार निकटता के खिलाफ जाते हुए उनकी सेना के सिपाहियों और अफसरों ने समानांतर सरकार बनाई थी, जो 1857 की क्रांति में अंग्रेजों से युद्ध लड़ी थी। सिपाही बहादुर सरकार ने भोपाल, सीहोर, रायसेन, राहतगढ़ और अंबापानी तक जाकर अंग्रेजों से लोहा लिया था।

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