
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। भाजपा में सरकार और संगठन स्तर पर की जाने वाली नियुक्तियों को लेकर चल रही हलचल के बीच अब शिवराज मंत्रिमंडल में भी फेरबदल की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लगातार हो रही दिल्ली की यात्राओं व हाल ही में करीब दस घंटे तक प्रदेश भाजपा के शीर्ष नेतृत्व व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बीच चले मंथन को इससे जोड़कर भी देखा जा रहा है। दरअसल केंद्रीय नेतृत्व नहीं चाहता है कि पूर्व की सरकार की तरह इस बार भी यह स्थिति चुनाव के दौरान बने। अगर मंत्रिमंडल में किसी तरह का फेरबदल होता है तो पूर्व में शिव सरकार में मंत्री रह चुके कुछ नेताओं को एक बार फिर से मंत्री बनने का मौका मिल सकता है। ऐसे करीब चार विधायक हैं जो शिवराज के करीबी होने के साथ ही मंत्री पद के मजबूत दावेदार होने के बाद भी मंत्री नहीं बन सके हैं। दरअसल बीते चुनाव में पार्टी के कई मंत्री दूसरों की जीत में मददगार बनना तो दूर खुद ही नहीं जीत सके थे, जिसकी वजह से प्रदेश में भाजपा को अपनी फिर से सरकार बनाने में वंचित होना पड़ा था। यही वजह है कि मौजूदा मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड तैयार किया गया है। इसमें करीब आधा दर्जन मंत्री ऐसे पाए गए हैं जिनके कामकाज से सत्ता व संगठन दोनों ही खुश नहीं हैं। मौजूदा राजनैतिक परिस्थितियों की वजह से उन्हें हटाना आसान नहीं है, लिहाजा इस बात पर भी मंथन किया गया है कि खराब प्रदर्शन करने वाले मंत्रियों को या तो कम महत्वपूर्ण विभाग दे दिए जाए या फिर उन्हें हटा दिया जाए। हटाने पर उनमें असंतोष फैलने की संभावना को देखते हुए उन्हें किसी निगम मंडल में एडजस्ट करने पर भी मंथन किया गया है। माना जा रहा है कि आने वाले समय में इस तरह का कदम उठाया जा सकता है।
इन मंत्रियों में श्रीमंत समर्थक दो और मूल भाजपा वाले चार मंत्रियों के नाम शामिल हैं। यह वे मंत्री हैं जो सरकार के अलावा संगठन की मंशा पर खरा नहीं उतर पा रहे हैं। माना जा रहा है कि अगर किन्हीं कारणों के चलते बेहतर कामकाज नहीं कर पा रहे मंत्रियों को हटाना संभव नहीं हो पाया तो उनके विभाग बदलना तय है। फिलहाल इस मामले में पूरी तरह से केंद्रीय नेतृत्व को भरोसे में लिया जाएगा।
सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि श्रीमंत समर्थक जिन दो मंत्रियों का कामकाज खराब है उनके बारे में श्रीमंत से भी चर्चा कर ली गई है। इनमें स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी का नाम बताया जा रहा है। उनके अलावा कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए एक अन्य मंत्री बिसाहू लाल के कामकाज से भी सत्ता व संगठन खुश नहीं बताए जाते हैं।
मंथन के एजेंडा में शामिल था विषय
10 घंटे के एकांत मंथन के लिए जो एजेंडा तय किया गया था उसमें शामिल तीन विषयों में से एक मंत्रियों के कामकाज की समीक्षा का भी था। इसके अलावा दो अन्य जो विषय इसमें शामिल थे उनमें निगम मंडलों में नियुक्तियां एवं संगठन में प्रवक्ताओं-पैनालिस्टों के नामों को भी तय करना था। इसकी वजह से अब माना जा रहा है कि निगम मंडलों में नियुक्तियों के साथ ही मंत्रिमंडल में फेरबदल करने का प्रयास किया जा रहा है जिससे कि नाराजों को कहीं ना कहीं एडजस्ट किया जा सके।
कई पूर्व मंत्रियों को मिल सकता है मौका
दरअसल श्रीमंत के समर्थकों की वजह से इस बार सरकार में कई वरिष्ठ मंत्रियों को मौका ही नहीं मिल सका है। इनमें वे पूर्व मंत्री-विधायक भी शामिल हैं, जो न केवल कई बार से लगातार जीत रहे हैं, बल्कि उनका पूर्व की सरकारों में भी बेहतर प्रदर्शन रहा है। इसके अलावा सरकार पर उन चेहरों को भी मंत्री बनाए जाने का दबाव है, जो लगातार दावेदार होने की वजह से मंत्री नहीं बन पा रहे हैं। यही वजह है कि चौहान के करीबी और वरिष्ठ होने के बाद भी इस बार गौरीशंकर बिसेन, राजेन्द्र शुक्ला, रामपाल सिंह और संजय पाठक जैसे चेहरों को राज्य मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी जा सकी। अब पार्टी व सरकार स्तर पर की जा रही कवायद के बाद माना जा रहा है कि इन चेहरों को मौका मिल सकता है। उधर, कैलाश विजयवर्गीय कैंप से भी रमेश मेंदोला मंत्री पद के दावेदार बने हुए हैं। उनका नाम पूर्व में कई बार तय होने के बाद अंत समय में कट जाता रहा है।