अब आउटसोर्स कर्मचारी करेंगे अफसरों की चाकरी

आउटसोर्स कर्मचारी

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। भोपाल। मप्र में पुलिस अफसरों के बंगलों पर काम करने वाले पुलिसकर्मियों को अब चाकरी से राहत मिलने वाली है। सरकार अब इनकी जगह आउटसोर्स कर्मचारियों को तैनात करेगी। इससे जहां कम खर्च में अफसरों के यहां कर्मचारी तैनात हो जाएंगे, वहीं बंगलों पर काम करने वाला पुलिस बल का अमला अपने मूल काम में जुट जाएगा। गौरतलब है कि मप्र में 4 हजार से अधिक ट्रेड आरक्षकों से आला पुलिस अफसरों के बंगलों पर चाकरी करवाई जा रही है। आलम यह है कि कंधे पर स्टार और 70 हजार रुपए वेतन वाले अफसरों के बंगलों पर झाड़ू लगा रहे हैं, खाना बना रहे हैं और जूता पॉलिश कर रहे हैं। ऐसे 4076 सिपाही हैं जिन्हें बंगला ड्यूटी पर लगा रखा है। इन्हें पीएचक्यू में मर्ज किया जाना है। लेकिन फाइल महीनों से अटकी पड़ी है। लेकिन लगता है अब इन पुलिसकर्मियों को चाकरी से राहत मिल जाएगी। आईजी या उसके ऊपर के अधिकारी को एक प्रधान आरक्षक और तीन आरक्षक को रखने की पात्रता है। वहीं डीआइजी को एक प्रधान आरक्षक और दो आरक्षक, पुलिस अधीक्षक को दो आरक्षक, एएसपी से लेकर निरीक्षक तक को एक आरक्षक रखने की पात्रता है। प्रदेश में आईजी, एडीजी व डीजी रैंक के 81 अधिकारी हैं। डीआइजी रैंक के 39 अधिकारी, एसपी, कमांडेंट एवं एआइजी स्तर के 199 अधिकारी, एएसपी रैंक के 264 अधिकारी, डीएसपी रैंक के 1007 अधिकारी, निरीक्षक स्तर के 2617 अधिकारी है। इस तरह कुल अधिकारियों की संख्या 4207 हैं। इनके बंगले पर 120 प्रधान आरक्षक, 4447 आरक्षक तैनात किए जाते हैं। इनके वेतन-भत्ते पर वार्षिक खर्च 182 करोड़ 79 लाख, 30 हजार रूपए खर्च किए जा रहे हैं। अगर इनकी जगह 15 हजार मासिक के हिसाब से आउटसोर्स कर्मचारी रखे जाते हैं तो उन पर 81 करोड़ 7 लाख 20 हजार रूपए ही खर्च होंगे। इस तरह सरकार सालाना 101 करोड़ बचा सकती है। स्पेशल डीजी ( सुधार) शैलेष सिंह का कहना है कि जो काम अर्दली कर रहे हैं वही काम आउटसोर्स कर्मचारी कर सकते हैं। आरक्षक और प्रधान आरक्षक स्तर के अधिकारी इस काम में लगे हैं, जिनका वेतन 60 हजार रुपये तक है। ऐसा करने से चार हजार से अधिक पुलिसकर्मी मुक्त हो जाएंगे। उनका दूसरी जगह बेहतर उपयोग हो सकेगा।
एक से चार तक लगे हुए हैं अर्दली
जानकारी के अनुसार प्रदेश में निरीक्षक (टीआई) से लेकर डीजी स्तर के तक के अधिकारियों के बंगले पर एक से चार तक अर्दली लगे हुए हैं। यह आरक्षक और प्रधान आरक्षक स्तर के हैं। इनमें से प्रत्येक का वेतन प्रतिमाह लगभग 30 हजार से 60 हजार रुपए तक है। सभी अधिकारियों के बंगलों पर लगे इन पुलिसकर्मियों के वेतन-भत्ते जोड़ें तो लगभग 182 करोड़ 79 लाख रुपये प्रतिवर्ष होता है। इनकी जगह आउटसोर्स पर अधिकतम 15 हजार रुपये में एक कर्मचारी उसी काम के लिए रखा जा सकता है। ऐसा करने पर प्रतिवर्ष 101 करोड़ रुपये के पुलिस बल का बेहतर उपयोग हो सकेगा। स्पेशल डीजी शैलेष सिंह ने इस संबंध में पुलिस महानिदेशक को प्रस्ताव भेजा है। पुलिस में यह व्यवस्था अंग्रेजों के समय से चल रही है। उस समय अधिकारियों के दौरे अधिक होते थे, इसलिए वह सहयोग के लिए अपने साथ अर्दली रखते थे। इसके बाद से पुलिस के नियमों में बदलाव भी हुए, पर यह व्यवस्था जस की तस चल रही है। कुछ राज्यों ने इसे खत्म करने की पहल भी की है। मध्य प्रदेश में विशेष सशस्त्र बल (एसएएफ) के आरक्षक और प्रधान आरक्षकों को इस काम में लगाया जाता है। इस काम में लगाए जाने वाले कुछ पुलिसकर्मी भी अंदरखाने इसका विरोध करते हैं, क्योंकि उन्हें अधिकारियों के घर पर घरेलू काम करना पड़ता है।
4 हजार आरक्षक बंगला ड्यूटी पर
मप्र के ये चार हजार से ज्यादा ट्रेड आरक्षक प्रदेश के गृहमंत्री, डीजीपी, एडीजी, आईजी, डीआईजी, एसपी, एएसपी, सीएसपी से लेकर आरआई तक के बंगले पर झाड़ू पोंछा, बर्तन, कपड़े, माली, गाय सेवक, गेट कर्मी, कुक, स्वीपर, ड्राइवर,साफ-सफाई करने समेत दूसरे दीगर काम कर रहे हैं। इन आरक्षक को 5 साल की सेवा के बाद आरक्षक जीडी के पद पर संविलियन से किया जाना था। संबंधित प्रक्रिया जीओपी 57/53 को साल 2013 में तत्काल डीजीपी नंदन दुबे ने बंद कर दिया था, जबकि ट्रेड आरक्षक प्रमोशन पाकर असिस्टेंट सब इंस्पेकर बन गए हैं। लेकिन संविलियन नहीं होने के कारण आज भी वे झाड़ू पोछे का काम आईपीएस अफसरों के बंगले पर कर रहे है। तत्कालीन डीजीपी विवेक जौहरी ने ट्रेड आरक्षक के संविलियन के संबंध में एक कमेटी का गठन किया था, लेकिन यह सब खानापूर्ति ही साबित हुई।

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