अब क्षेत्रीय भाषाओं में होगी एमबीबीएस की पढ़ाई

एमबीबीएस की पढ़ाई
  • मप्र के पदचिन्हों पर चलेगा अब एनएमसी

    भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में हिंदी में एमबीबीएस की पढ़ाई के प्रयोग को देखते हुए राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी)ने भी अब हिंदी सहित क्षेत्रीय भाषाओं में एमबीबीएस पाठ्यक्रम की शिक्षा प्रदान करने को प्रोत्साहित किया है। इसके पीछे उद्देश्य यह है कि अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं के भाषी लोग चिकित्सा शिक्षा प्राप्त कर सकें और आम आदमी अपनी भाषा में रोग और दवाओं को समझ सके। गौरतलब है कि मप्र पहला राज्य है, जहां सबसे पहले अंग्रेजी के साथ मातृभाषा यानी हिंदी में एमबीबीएस की पढ़ाई की शुरुआत हुई थी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दो साल पहले भोपाल में देश के पहले हिंदी एमबीबीएस पाठ्यक्रम का शुभारंभ किया था।
    जानकारी के अनुसार मप्र द्वारा दिखाई गई राह का अनुशरण करते हुए अब राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने अंग्रेजी भाषा के साथ द्विभाषी मोड का उपयोग करके शिक्षण सीखने और मूल्यांकन की अनुमति दी है। एनएमसी ने हाल में जारी योग्यता आधारित चिकित्सा शिक्षा विनियम (सीबीएमई) 2024 में इसका उल्लेख किया है, जिसमें एमबीबीएस पाठ्यक्रम के संबंध में नियम और विनियम निर्धारित किए गए हैं। हालांकि इसके बाद 2022 में केंद्र सरकार ने एमबीबीएस सहित व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए शिक्षण माध्यम के रूप में हिंदी या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को लागू करने का भी प्रस्ताव रखा। मप्र सरकार ने दो साल पहले सभी सरकारी मेडिकल कॉलेजों में प्रथम वर्ष के एमबीबीएस छात्रों को 3 एमबीबीएस विषय एनाटॉमी, फिजियोलॉजी और बायोकेमिस्ट्री हिंदी में पढ़ाने का निर्णय लिया था।
    मप्र में तैयार किया गया हिंदी में पाठ्यक्रम
    गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंशानुरूप तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश में चिकित्सा पाठ्यक्रम को हिन्दी में तैयार करने का निर्णय लिया। इस निर्णय को अमल में लाने के लिए कार्ययोजना बनाकर तीव्र गति से कार्य किया गया। तत्कालीन चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग के नेतृत्व में उच्च स्तरीय टास्क फोर्स समिति गठित की गई। साथ ही विषय निर्धारण एवं सत्यापन कार्य के लिए समितियों का गठन किया गया। प्रदेश के 97 डॉक्टरों की टीम ने चार महीने में दिन-रात काम कर अंग्रेजी की किताबों का हिंदी में अनुवाद किया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 16 अक्टूबर, 2022 को भोपाल में एमबीबीएस पाठ्यक्रम की हिंदी किताबें लॉन्च की थी। इससे चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में हिंदी बनाम अंग्रेजी विवाद पैदा हो गया, क्योंकि चिकित्सा बिरादरी के सदस्यों ने चिंता जताई थी कि हिंदी जैसी स्थानीय भाषा में एमबीबीएस पाठ्यक्रम चलाने से भारत में चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता खराब हो सकती है। अखिल भारतीय चिकित्सा संघ ने भी एक प्रेस रिलीज जारी कर इस पहल के बारे में इसी तरह की राय व्यक्त की थी और संभावना व्यक्त की थी कि हिंदी में एमबीबीएस लंबे समय में राष्ट्रीय हित को नुकसान पहुंचा सकता है। संघ ने कहा था कि भारत के डॉक्टर विभिन्न देशों में सेवा कर रहे है और हमारे देश की प्रतिष्ठा में योगदान दे रहे हैं, इसलिए यह आरोप लगाते हुए कि केंद्र सरकार द्वारा चिकित्सा पाठ्यपुस्तकों के हिंदी अनुवाद की दिशा में हाल में उठाए कदम अच्छी मंशा से बनाई गई नीति, लेकिन खराब योजना है। आयुष मंत्री इंदर सिंह परमार ने जुलाई में विधानसभा सत्र में जानकारी दी थी कि अगले साल से प्रदेश के सभी यूनानी मेडिकल कॉलेजों में हिंदी माध्यम से भी पढ़ाई कराई जाएगी। उन्होंने बताया था कि इसके लिए हिंदी में किताबें तैयार करना शुरू कर दिया गया है।
     हिंदी समेत 11 अन्य स्थानीय भाषाओं में पढ़ाई
    व्यावसायिक विकास के लिए चरणबद्ध प्रशिक्षण और समय वितरण को निर्दिष्ट करते हुए राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने उल्लेख किया कि शिक्षण अधिगम और मूल्यांकन अंग्रेजी भाषा के साथ-साथ द्विभाषी मोड (असमिया, बांग्ला, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, मलयालम, मराठी, ओडिय़ा, पंजाबी, तमिल और तेलुगु) का उपयोग करके किया जा सकता है। इसलिए अब छात्र हिंदी समेत 11 स्थानीय भाषाओं में भी स्नातक चिकित्सा शिक्षा यानी एमबीबीएस की पढ़ाई कर सकेंगे। दरअसल, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने अब हिंदी सहित क्षेत्रीय भाषाओं में एमबीबीएस पाठ्यक्रम की शिक्षा प्रदान करने को प्रोत्साहित किया है, जबकि इससे पहले 2021 में आयोग ने स्पष्ट किया था कि क्षेत्रीय भाषाओं में एमबीबीएस पाठ्यक्रम व्यावहारिक नहीं होंगे और ऐसे पाठ्यक्रमों को एनएमसी से मान्यता नहीं मिलेगी। उस समय मप्र और उप्र दोनों ही राज्यों में हिंदी में चिकित्सा शिक्षा उपलब्ध कराने की योजना पर विचार किया जा रहा था। हालांकि एनएमसी ने स्पष्ट किया था कि किसी भी राज्य सरकार ने आयोग के पास इस तरह का प्रस्ताव नहीं भेजा है। साथ ही उसने यह भी कहा था कि अंग्रेजी के अलावा किसी अन्य भाषा में चिकित्सा पाठ्यक्रम की अनुमति देने के लिए मानदंडों में संशोधन करने की उसकी कोई योजना नहीं है।

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