
- अर्थव्यवस्था बदहाल…फिर भी मप्र खुशहाल
- अभी तक कृषि ने संभाली मप्र की अर्थव्यवस्था
कोरोना संक्रमण ने देश की अर्थव्यवस्था का तहस-नहस कर दिया है। इसका असर मप्र पर भी पड़ा है। इसके बावजुद मप्र के लोग खुशहाल है। इसकी वजह यह है कि कृषि ने मप्र की अर्थव्यवस्था संभाली ली है। कृषि को लाभ का धंधा बनाने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अब प्रदेश को टूरिज्म और इंडस्ट्रियल हब बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
विनोद कुमार उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)। मई में जब प्रियजनों के लिए अस्पतालों में बिस्तर, ऑक्सीजन और दवाइयों के लिए जद्दोजहद करते लोगों और शमशानों में लंबी कतारों के मनहूस दृश्य खबरों में छाए थे, कोविड 2.0 चुपचाप कहीं और भी कहर बरपा रहा था और वह थी अर्थव्यवस्था। दूसरी लहर ने जिस अप्रत्याशित प्रचंडता से हमला बोला, उसने पिछले वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में देश में हुई थोड़ी-बहुत आर्थिक बहाली को भी पटरी से उतारने का खतरा पैदा कर दिया है। हालांकि इस बार देशव्यापी लॉकडाउन से बचा गया, लेकिन राज्य लॉकडाउन लगाने पर मजबूर हुए। लिहाजा, निवेश फर्म बार्कलेज के मुताबिक, देश को मई के हर हफ्ते करीब 8 अरब डॉलर या 58,000 करोड़ रुपए से ज्यादा की कीमत चुकानी पड़ी। ऐसी स्थिति में मप्र की अर्थव्यवस्था को कृषि ने संभाल लिया।
कृषि को अर्थव्यवस्था का मुख्य स्रोत बनाने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अब मप्र को टूरिज्म और इंडस्ट्रियल का हब बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसकी घोषणा मुख्यमंत्री ने 7 जुलाई को शासकीय जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज के 75वें स्थापना दिवस पर की। शिक्षा, रोजगार और उद्योग से जुड़ी नीतियों पर युवा संवाद के जरिए छात्रों के सवालों के जवाब देते हुए बताया कि कृषि का भरपूर दोहन कर चुके हैं। अब तेज औद्योगिकीकरण की जरूरत है। प्रदेश में तीन इंडस्ट्रियल कॉरीडोर चंबल अंचल से अटल एक्सप्रेस वे निकालने, जबलपुर-रीवा-सतना से सिंगरौली होते हुए एक कॉरीडोर और तीसरा नर्मदा एक्सप्रेस अमरकंटक से जबलपुर होते हुए गुजरात की सीमा तक जाएगा। इस मार्ग के दोनों तरफ छोटे-बड़े औद्योगिक क्षेत्र विकसित करेंगे। प्रदेश को टूरिज्म और इंडस्ट्रियल हब बनाकर इसकी तस्वीर बदलनी है। इसमें तीनों कॉरीडोर बड़ी भूमिका निभाएंगे।
रोजगार के लिए औद्योगिकीकरण की जरूरी
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहते हैं कि रोजगार जरूरी है। कृषि का पूरा दोहन कर हम पंजाब को भी पीछे छोड़ चुके हैं। अब औद्योगिकीकरण की रफ्तार बढ़ानी है। स्टार्ट योर बिजनेस इन 30 डेज में अपना बिजनेस शुरू करें। कोशिश है बाहर से उद्योगपति आए, लेकिन मप्र के युवा भी उद्योग लगाने की सोचे। इसलिए तीन इंडस्ट्रियल कॉरीडोर बनाने की कल्पना की गई है। युवा के लिए धन की बाधा होती है। उनके लिए इनोवेटिव युवा उद्यमी योजना बनाई है। शिक्षा के तीन उद्देश्य है। ज्ञान देना। अच्छा नागरिक बनाना और कौशल देना। देश में स्किल्डमैन पॉवर की कमी है। इस अंतर को भरना है। पहले टपरे वाली आईटीआई चलती थी। अब संभागीय स्तर पर मॉडल आईटीआई बन रही है। हम भोपाल में ग्लोबल स्किल पार्क बना रहे हैं, जहां 6 हजार बच्चे पढक़र देश-विदेश में नौकरी लायक बनाएंगे।
मप्र में पर्यटन क्षेत्र को भी रोजगार मूलक बनाया जा रहा है। खुद शिवराज कहते हैं कि पर्यटन मप्र की ताकत है। पर्यटन के क्षेत्र में एक साथ 11 पुरस्कार जीतने का काम किया है। टूरिज्म की बेहतर नीति बनाई गई है। बारिश में बफर में सफर योजना चालू की है। हाट बैलून जैसी नए इनोवेटिव आईडिया लेकर आए हैं। दरअसल, प्रदेश में रोजगार को बढ़ावा देने की नीति पर वर्षों से काम हो रहा है। इसलिए यहां रोजगार की अपार संभावनाएं हैं।
कोरोनाकाल में शुरू हुईं 6095 नई कंपनियां
कोरोना संक्रमण की पहली और दूसरी लहर में सबसे अधिक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ा है। इस दौरान लाखों लोग बेरोजगार हुए हैं। वहीं तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए उद्योग-धंधे अभी भी पटरी पर नहीं आ पाए हैं। इस बीच कोरोना काल के पिछले 14 महीनों में जहां बड़े पैमाने पर उद्योग-धंधों को नुकसान उठाना पड़ा था वहीं इस दौरान मप्र में इस मोर्चे पर सुखद खबर आई। 1 मार्च 2020 से 15 मई 2021 तक 6095 नई कंपनियां रजिस्टर्ड की गईं। 1 मार्च 2020 से लेकर 15 मई 2021 के बीच रजिस्टर्ड हुई इन कंपनियों में 4844 प्राइवेट लिमिटेड हैं तो 1141 कंपनियां एलएलपी यानी लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप वाली हैं। इसके साथ ही 110 पब्लिक लिमिटेड कंपनियां हैं। जबकि पिछले वर्ष 2981 कंपनियां रजिस्टर्ड हुई थीं। मप्र में निवेश को बढ़ावा देने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है। सरकार की कोशिश है कि कोरोना संक्रमण के कारण बदहाल हुई अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए प्रदेश में अधिक से अधिक निवेश को आकर्षित किया जाए। इसके लिए सरकार ने कई तरह की सहूलियतें भी दी हैं। इसको देखते हुए कई देशी और विदेशी कंपनियां मप्र में निवेश के लिए आकर्षित हुई हैं।
प्रदेश में वर्तमान में 55 हजार कंपनियां संचालित हो रही हैं। इस हिसाब से देखें तो कोरोना काल के 14 महीने में करीब 11 प्रतिशत नई कंपनियां आरओसी ग्वालियर में रजिस्टर्ड हुई हैं। वर्ष 2019-20 में वर्षभर में कुल 2981 कंपनियां रजिस्टर्ड हुई थीं। यानी इस बार पिछले वर्ष की तुलना में 3114 कंपनियां अधिक रजिस्टर्ड हुई हैं। कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री के अनुसार जो 6095 कंपनियां रजिस्टर्ड हुई हैं, उन्होंने अपनी पेड अप कैपिटल या प्रदत पूंजी का 25 गुना भी निवेश किया तो प्रदेश में करीब 7,313 करोड़ रुपए का निवेश आने का अनुमान है। इन कंपनियों का पेड अप केपिटल ही करीब 300 करोड़ रुपए बैठेगा जो बैंकों में जमा हो चुका है। एक कंपनी में न्यूनतम 20 और अधिकतम सैकड़ों की संख्या में लोग तक काम करते हैं। उद्योग चैंबर सीआईआई के अनुसार नई शुरू हुई 6095 कंपनियों का काम शुरू हो जाने के बाद करीब सवा लाख लोगों को रोजगार मिलेगा। हालांकि आरओसी ग्वालियर ने आरटीआई में यह नहीं बताया कि जो नई कंपनियां शुरू हुई हैं, वे किस-किस सेक्टर में काम कर रही हैं या करेंगी। सीआईआई, मप्र के डायरेक्टर अनिरुद्ध चौहान कहते हैं कि कोरोनाकाल में 6095 नई कंपनियों का रजिस्ट्रेशन प्रदेश में आर्थिक गतिविधियों में तेजी का संकेत है। यह न सिर्फ उद्योग-धंधों के लिए लाभप्रद साबित होगा बल्कि नए रोजगार भी सृजित होंगे।
अर्थव्यवस्था पर भारी कोरोना
गौरतलब है की कोरोना का मप्र की अर्थव्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव पड़ा है। प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर 2020 का 72 दिन का लॉकडाउन और 2021 में 40 दिन चला कोरोना कफ्र्यू भारी रहा। वित्तीय व्यवस्था इस कदर चरमराई कि सरकार को कोरोना से लोगों के इलाज, बिजली और कर्मचारियों के वेतन भत्तों के लिए 93,353 करोड़ रुपए कर्ज लेना पड़ा। आमदनी से 21 हजार करोड़ रुपए ज्यादा खर्च हो गए। इसकी बड़ी वजह केंद्रीय करों में राज्य की हिस्सेदारी की राशि में कमी आना है। राज्य के स्वयं के करों का अनुमान गड़बड़ा गया। यह पहला मौका है जब किसी साल में प्रदेश का हर एक व्यक्ति 1244 रुपए का कर्जदार हो गया।
कोरोना के इलाज पर 45 करोड़ मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान से जारी किए, जो विभाग फ्रंट लाइन में थे, उनमें परिवार कल्याण विभाग का खर्च 419 करोड़, चिकित्सा शिक्षा का 119 करोड़, ऑटोनोमस हास्पिटल पर 88 करोड़ और मृतकों के परिजनों को मुआवजा और अन्य कामों पर 324 करोड़ खर्च। राज्य सरकार को स्वयं के करों से अप्रैल-मई और जून के महीने में 50 से 55 फीसदी ही आय हो सकी। अप्रैल और मई के 40 दिनों के कोरोना कफ्र्यू से आय 45 फीसदी तक घटी। यानी इन तीन महीनों में सामान्य स्थिति में 15 हजार करोड़ रुपए राजस्व आना था, लेकिन महज 6500 करोड़ रुपए ही आए। फरवरी में अनुमान था कि 61481 करोड़ रुपए मिलेंगे, लेकिन मार्च-अप्रैल में अनुमान 46025 करोड़ करना पड़ा। वहीं राज्य सरकार को मिले 43373 करोड़ रुपए। इस तरह 2651 करोड़ रुपए कम मिले। सरकार के सामने चुनौती यह भी है कि बाजार से तय लिमिट से ज्यादा कर्ज ले नहीं सकते। राज्य ने केंद्र से जीएसडीपी का 1 प्रतिशत ज्यादा कर्ज लेने की अनुमति मांगी है। इसके बाद ही आधारभूत ढांचे से जुड़े काम शुरू हो पाएंगे।
रोजगार के अवसर बढ़ाए जाएंगे
मप्र में कोरोना की दूसरी लहर के साथ ही नई नौकरियां 50 प्रतिशत तक घट गईं, जो कंपनियां रोजगार देने वाली थीं, उन्होंने भर्तियों को होल्ड पर रख दिया है। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के मार्च के पैरोल डेटा में यह बात सामने आई। इस साल फरवरी में प्रदेश में 21,277 नई नौकरियां मिलीं थी। लेकिन मार्च में इनकी संख्या घटकर 10,535 ही रह गई। पिछले साल अप्रैल-मई में लगा सख्त लॉकडाउन खुलने के बाद से पैरोल से जुड़े पीएफ अंशदाताओं की संख्या लगातार बढ़ रही थी। जून-20 से फरवरी-21 तक हर माह औसतन 20 हजार से अधिक लोगों को नई नौकरियां भी मिलीं। लेकिन महाराष्ट्र के बाद छत्तीसगढ़ और फिर मप्र में कोरोना के मामले तेजी से बढऩे के बाद इस पर ब्रेक लग गया। जानकार कहते हैं कि मप्र के ऑटोमोबाइल और हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में काफी तेजी आ गई थी। इसलिए यहां रोजगार के अवसर तेजी से बन रहे थे। लंबे समय बाद लोग घरों से बाहर निकले थे। मप्र के अधिकांश नेशनल पार्क के रिसोर्ट पूरी तरह से फुल चल रहे थे। ऐसे में इस सेक्टर में भी बड़ी संख्या में रोजगार मिल रहे थे। यह तेजी फरवरी तक ही जारी रह पाई। अब सरकार का एक बार फिर इस बात पर फोकस है की रोजगार के अवसर पैदा किए जाएं। मप्र में कई सेक्टर्स में हैं जिनमें सबसे ज्यादा रोजगार मिलते हैं। मप्र में ऑटोमोबाइल, फार्मा, इंजीनियरिंग के बड़े उद्योग हैं। व्यापार-व्यवसाय से जुड़े क्षेत्रों में भी रोजगार मिलता है। रियल एस्टेट सेक्टर मध्यम दर्जे की नौकरियां देने वाला बड़ा क्षेत्र है। भोपाल से लगे क्षेत्रों में ट्राइडेंट, वर्धमान और नाहर जैसी कंपनियां हैं। होटल्स सेक्टर पर्यटन पर आधारित है, जिसमें तेजी से बढ़ोतरी होगी। ऑनलाइन कंपनियों के आने के बाद सर्विस सेक्टर में नौकरियां बढ़ी हैं। 2020 में लॉकडाउन खुलने के बाद सभी सेक्टर में नौकरियां तेजी से बढ़ीं थी। यह गति फरवरी तक जारी रही। इसलिए दो माह की नकारात्मक वृद्धि के बाद भी मप्र में वित्तीय वर्ष 2020-21 में 1.95 लाख नए लोग पैरोल से जुड़े। 2019-20 में इनकी संख्या 1.90 लाख रही थी। उद्यमी कहते हैं कि इस वृद्धि में सबसे बड़ी हिस्सेदारी ऑटोमोबाइल और इंजीनियरिंग सेक्टर की थी।
पढ़ाई खत्म होते ही मिलेगा रोजगार
मप्र में रोजगार को बढ़ावा देने के लिए सरकार हरसंभव प्रयास कर रही है। इसी कड़ी में अब प्रदेश में शिक्षा समाप्त होते ही युवाओं को रोजगार मिलने की अनूठी पहल शुरू की गई है। उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव बताते हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहल पर शिक्षा समाप्त होने के बाद पढ़े-लिखे युवाओं को रोजगार के लिए भटकना न पड़े, इसके लिए सरकार सभी 52 जिलों में प्लेसमेंट अधिकारी नियुक्त करेगी। साथ ही प्रदेशभर में 6-6 माह का डिप्लोमा कोर्स भी करवाया जाएगा। यह तकनीकी शिक्षा युवाओं को रोजगार दिलाने में सहायक रहेगी। डिप्लोमा कोर्स करने के बाद शैक्षणिक संस्थानों में ही प्लेसमेंट लगाया जाएगा और शिक्षा के तकनीकी आधार पर तत्काल रोजगार मुहैया कराया जाएगा। गौरतलब है कि कोरोना काल के बाद कई लोग बेरोजगार हो गए हैं। दो साल से उच्च शिक्षा से दूर प्रदेश के विद्यार्थियों को ट्रेनिंग देकर आत्मनिर्भर बनाया जाएगा। प्रदेश में 80 हजार विद्यार्थियों को रोजगार-स्वरोजगार का प्रशिक्षण दिया जाएगा। ऐसे में वे उच्च शिक्षा के साथ-साथ रोजगार से जुड़ जाएं।
गौरतलब है कि सरकार ने युवाओं को रोजगार मुहैया कराने के लिए स्वामी विवेकानंद कैरियर मार्गदर्शन योजना शुरू की है। स्वामी विवेकानंद कैरियर मार्गदर्शन युवाओं के भविष्य तलाशने में मदद करेगा। योजना की गतिविधियों का संचालन सभी महाविद्यालयों में सुनिश्चित किया जाएगा। साथ ही संभागीय नोडल अधिकारी निरंतर अपने जिलों के नोडल अधिकारी, प्रकोष्ट प्रभारी से संपर्क स्थापित कर योजना का क्रियान्वयन कराएंगे, ताकि बेहतर परिणाम प्राप्त हो सके। संभागीय और जिला नोडल अधिकारी क्षेत्रान्तर्गत स्थित उद्योगों से संपर्क कर महाविद्यालयों से एमओयू करने के लिए आवश्यक कार्यवाही करेंगे। इन उद्योगों में विद्यार्थियों को रोजगार के लिए आवश्यक कैंपस ड्राइव का आयोजन भी कराए जाएंगे। बीते फरवरी-मार्च 2021 में अल्पावधि रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण नरोन्हा प्रशासन अकादमी भोपाल में ऑनलाइन संपन्न हुआ था। लिंक कक्षावार मेंटर्स को उपलब्ध कराकर प्रशिक्षण दिया जाए। उसको आधारभूत प्रशिक्षण के रूप में महाविद्यालय के अप्रशिछित विद्यार्थियों को प्रशिक्षण देकर लाभान्वित किया जाए। वर्तमान वर्ष में 60 हजार विद्यार्थियों को रोजगार देने का लक्ष्य है।
कृषि क्षेत्र ने संभाली मप्र की अर्थव्यवस्था
कोरोना महामारी के कारण आर्थिक गतिविधियां ठप हो गई थीं और सरकार की आय भी लगभग बंद हो गई थी। ऐसे मुश्किल दौर में कृषि क्षेत्र ही ऐसा था, जिसने गिरती अर्थव्यवस्था को सहारा दिया। राज्य के भीतर उत्पादित वस्तुओं से होने वाली आय में कृषि क्षेत्र ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इससे सकल राज्य घरेलू उत्पाद की गिरावट को कम रखने में मदद मिली। जीएसडीपी वित्त वर्ष 2019-20 में 9,37,405 करोड़ रुपए थी। इसके 2020-21 में 9,17,555 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है यानी 2.12 फीसदी की कमी। वहीं, वित्त वर्ष 2021-22 में इसके दस लाख करोड़ रुपए के पार पहुंचने की संभावना जताई गई है। इसके मद्देनजर ही बजट में कृषि क्षेत्र पर फोकस किया गया है। कृषि का बजट 43 फीसदी और सहकारिता विभाग का 103 प्रतिशत बढ़ाया गया है।
फसल, पशुधन और मत्स्य पालन ऐसे प्राथमिक क्षेत्र रहे हैं, जिन्होंने 2020-21 में पिछले साल के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया है। फसलों से 2,81,638 करोड़ रुपए की आय हुई। जबकि वित्त वर्ष 2019-20 में यह 2,70,167 करोड़ रुपए थी। इस हिसाब से फसलों का जीडीपी में योगदान सवा चार प्रतिशत रहा है। वहीं, इसी तरह पशुधन से आय 67,888 करोड़ रुपए से बढक़र वित्त वर्ष 2020-21 में 76,739 करोड़ रुपए हो गई। मत्स्य पालन से 3,486 करोड़ रुपए की आय हुई। सरकार ने भी इस बड़े वर्ग की चिंता की और किसानों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर 86 हजार करोड़ रुपए के लाभ विभिन्न् योजनाओं में दिलाए। कांग्रेस सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का प्रीमियम जमा नहीं किया था, जिसके कारण वर्ष 2018-19 का फसल बीमा 18 लाख से ज्यादा किसानों को नहीं मिला था। शिवराज सरकार ने 2200 करोड़ रुपए जमा कराए और 3,262 करोड़ रुपए का बीमा किसानों को मिला। खरीफ 2019-20 में 23.59 लाख किसानों को 5,418 करोड़ रुपये का बीमा दिलाया। बजट में बीमा का प्रीमियम जमा करने के लिए 2,200 करोड़ रुपए रखे गए हैं।
आखिर कैसे रफ्तार पकड़े अर्थव्यवस्था
कोरोना संक्रमण की पहली और दूसरी लहर में बदहाल हुई अर्थव्यवस्था तीसरी लहर के साए में किस तरह रफ्तार पकड़े इसकी चिंता केंद्र और राज्य सरकार को भी है। गौरतलब है कि पहली लहर में मप्र सरकार ने पलायन करके गांव पहुंचे लोगों को रोजगार मुहैया कराने के लिए मनरेगा का सहारा लिया था। दूसरी लहर में भी कुछ हद तक यही किया गया। लेकिन तीसरी लहर भी दस्तक दे रही है। ऐसे में सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की। गौरतलब है कि देशभर में फैक्ट्रियों में बंदी और छंटनी ने बेरोजगारी दर को दहाई अंकों में धकेल दिया। 23 मई को खत्म सप्ताह में यह 14.73 फीसदी पर पहुंच गई। लॉकडाउन की पाबंदियों के साथ नौकरियों के जाने और तनख्वाह में कटौतियों के चलते एफएमसीजी (उपभोक्ता सामान) श्रेणी की कई चीजों के साथ टीवी, रेफ्रिजरेटर, परिधान और फूटवियर सरीखे टिकाऊ उपभोक्ता सामान की बिक्री थम गई। फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन (एफएडीए) के मुताबिक, कारों की बिक्री में मार्च के मुकाबले अप्रैल में 25 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई, जबकि दोपहिया वाहनों की बिक्री 27 फीसदी से ज्यादा गिरी। 2020 के सख्त लॉकडाउन से लहूलुहान ट्रैवल और हॉस्पिटैलिटी क्षेत्र अब भी खस्ताहाल है। कई फर्मों ने देश की वृद्धि के 11-12 फीसदी के अनुमानों को घटाकर 8 फीसद या उससे भी कम कर दिया है। पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग कहते हैं, कि वृद्धि में तीन फीसदी कमी का भी मतलब है अर्थव्यवस्था के लिए 6-6.5 लाख करोड़ रुपए का नुक्सान। पिछले साल हम 20 लाख करोड़ रुपए से हाथ धो बैठे थे।
जानकारों का कहना है कि दूसरी लहर का लोगों के दिलो-दिमाग पर भीषण असर है। उनके बाहर निकलने और खर्चना शुरू करने में थोड़ा वक्त लगेगा। वस्तुओं और लोगों की आवाजाही पर नजर रखने वाले गूगल के मोबिलिटी और दूसरे डेटा मई के तीसरे हफ्ते तक खुदरा, किराना, आवाजाही स्टेशनों और टोल नाकों पर कामकाज में मार्च और अप्रैल के मुकाबले गिरावट दिखा रहे हैं। कोटक महिंद्रा ऐसेट मैनेजमेंट के मैनेजिंग डायरेक्टर नीलेश शाह कहते हैं, अर्थव्यवस्था पर पहली लहर के मुकाबले (कोविड-19 की) कहीं ज्यादा लंबी छाया पड़ी है। दबी हुई मांग ने पहली लहर के बाद बहाली को सहारा दिया था, पर इस बार उत्साह लौटने में कुछ वक्त लग सकता है। अर्थव्यवस्था के 50 खरब डॉलर के लक्ष्य पर पहुंचने की उम्मीदें तो खैर पक्के तौर पर चकनाचूर हो चुकी हैं, खासकर महामारी से पहले भी यह उम्मीद से कम 5 फीसदी की वृद्धि दर पर लडख़ड़ा रही थी। नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले साल गरीब और लाचार लोगों के लिए गारंटीशुदा कर्ज और सामाजिक योजनाओं में 20 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा झोंके, पर कई सारे सुधार अब भी अधर में अटके हैं।
अधर में नौकरियां
रिसर्च फर्म सीएमआइई (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी) के मुताबिक, फरवरी और अप्रैल के बीच नब्बे लाख वैतनिक नौकरियां चली गईं। 97 फीसदी परिवारों की आमदनियों में गिरावट आई। अर्थव्यवस्था में मांग फूंकने वाला मूल तबका मध्यम वर्ग भी बुरी तरह टूट चुका है। अमेरिका स्थित प्यू रिसर्च सेंटर की मार्च की शोध रिपोर्ट से पता चला कि पिछले साल कोविड ने करीब 3.2 करोड़ हिंदुस्तानियों को मध्यम वर्ग के दायरे से नीचे धकेल दिया, जो रोजाना 10 डॉलर (724 रुपए) से 20 डॉलर (1,449 रुपए) कमाते थे। एक रिपोर्ट के मुताबिक, मध्यम वर्ग एक-तिहाई तक सिकुड़ गया है—महामारी से पहले 9.9 करोड़ से अब 6.6 करोड़ पर आ गया है। ग्रामीण इलाकों में हालात और बदतर हैं। पहली लहर में तो ग्रामीण वृद्धि और रोजगार ने अर्थव्यवस्था की गिरावट को संभाल लिया था। मगर इस बार ग्रामीण इलाकों में बढ़ते संक्रमण और पाबंदियों की वजह से ग्रामीण भारत में बेरोजगारी दर 13.5 फीसद पर पहुंच गई है, जबकि शहरी इलाकों में यह 17.4 फीसदी है। सीएमआइई के सीईओ और एमडी महेश व्यास कहते हैं कि श्रम भागीदारी की दर 2016 से ही लगातार गिरती रही है। 2016-17 में 46.1 फीसदी से यह 2021 में 39.9 फीसदी पर आ गई है। देश में अच्छी नौकरियां नहीं हैं और महिलाओं के लिए श्रम बाजार में हिस्सा लेना ज्यादा से ज्यादा मुश्किल होता गया है।
नई जान फूंकने का नुस्खा
विशेषज्ञों का कहना है कि एक तो देश को छोटी, मध्यम और दीर्घ अवधि के लिए क्रमबद्ध आर्थिक उपायों की जरूरत है। सरकार की चुनौती मौजूदा तकलीफ को दूर करके ज्यादा ऊंची वृद्धि दर का इंतजाम करना है। छोटे वक्त में उन मजदूरों को राहत देनी होगी, जो काम न होने से हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की देश और राज्यों में बेरोजगारी की स्थिति पर जारी रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2020 के बाद कोरोना संक्रमण का असर इस कदर पड़ा कि मप्र में बेरोजगारी की दर सातवे आसमान पर पहुंच गई। अप्रैल 2020 में बेरोजगारी की दर 12.4 तो मई में 22 प्रतिशत तक पहुंच गई। ऐसे में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो गई। समस्या के बीच समाधान निकालने में माहिर शिवराज सिंह चौहान ने आपदा को अवसर बनाने की पहल की और रोजगार पर ध्यान दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि जून 2020 में बेरोजगारी दर 6.5 प्रतिशत पर आ गई। उसके बाद सरकार के प्रयास निरंतर जारी रहे। मप्र सरकार के प्रयासों का असर यह रहा कि दूसरी लहर के दौरान यानी अप्रैल, मई और जून 2021 में बेरोजगारी की दर नियंत्रण में रही। अप्रैल में बेरोजगारी की दर जहां 1.4 प्रतिशत थी, वहीं मई में 5.3 पहुंच गई, लेकिन जून में फिर 2.3 पर आ गई है। सरकार के प्रयासों को देखकर माना जा रहा है कि बेरोजगारी की दर और कम होगी। मप्र के पूर्व मुख्य सचिव केएस शर्मा के मुताबिक, सरकारी विभागों में आधे से ज्यादा पद खाली पड़े हैं। अगर सरकार जल्द भर्ती निकालती है तो बेरोजगारी की समस्या का बड़ा निदान हो सकता है।