अब आईएफएस मलिक ने खोला मोर्चा,आरोप पत्र पर उठाए सवाल

आईएफएस मलिक
  • शासन को पत्र लिखकर दी कई नजीरें

    भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। सूबे के वरिष्ठ आईएफएस अफसरों में शामिल 1993 बैच के अफसर एवं अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक शशि मलिक ने अब अपने ही विभाग के वरिष्ठ अफसरों  के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। यह मोर्चा उनके द्वारा उन्हें दिए गए आरोप पत्र के बाद खोला गया है। उन्होंने इस मामले में अफसरों पर पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर कार्रवाई करने का आरोप लगाते हुए एक पत्र शासन को लिखा है।
    इस पत्र में उनके द्वारा कई तरह के सवाल खड़े किए गए हैं। मलिक द्वारा शासन को लिखे पत्र में कहा गया है कि उन्हें जो आरोप पत्र दिया गया है वह न्यायसंगत नहीं है। यही नहीं, उन्होंने पत्र में लिखा है कि जांचकर्ता अधिकारी के खिलाफ वरिष्ठ अधिकारी पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं। यह आरोप पत्र उन्हें 20 अक्टूबर 22 को दिया गया है। मलिक ने पत्र में लिखा है कि वे आरएस सिकरवार की विभागीय जांच से संबंधित मामले में जो आरोप पत्र मुझे जारी किया गया है , मैं उन आरोपों से सहमत नहीं हूं। आरोप पूर्ण रूप से अवैधानिक है तथा न्याय संगत नहीं है। पत्र में यह भी स्पष्ट किया है कि जांच अधिकारी की निष्ठा पर संदेह नहीं किया जा सकता और न ही ऐसा कोई नियम है कि जांच अधिकारी को आरोप पत्र दिया जाए। उन्होंने जारी आरोप पत्र के जवाब में न्यायालयीन व्यवस्था का जिक्र करते हुए लिखा है कि जब कोई न्यायाधीश फैसला देता है तो उस पर हायर न्यायालय द्वारा आक्षेप नहीं लगाया जाता है और न ही वरिष्ठ न्यायाधीश द्वारा आरोप पत्र दिया जाता है। विभागीय जांच में भी इसी प्रकार की कार्यवाही है। ऐसा प्रतीत होता है कि विभागीय जांच पूर्ण होने के पूर्व ही यह मान लिया गया था कि आरएस सिकरवार दोषी हैं तो फिर जांचकर्ता अधिकारी नियुक्त कर जांच की क्या आवश्यकता थी? जांच अधिकारी पद है और इस पर किसी प्रकार का दबाव नहीं डाला जा सकता है। यदि जांच अधिकारी पर इस प्रकार का दबाव डाला जाता है तो जांच दूषित और पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो जाती है।
    यह दी गई है नजीर
     पत्र में मलिक ने हिमाचल उच्च न्यायालय के एक फैसले का नजीर के रुप में उल्लेख करते हुए लिखा है कि एक प्रकरण के निर्णय में जांच रिपोर्ट मनपसंद नहीं होने के कारण नए सिरे से जांच कराना गैरकानूनी है। वरिष्ठ अधिकारी के पास ऐसी कोई शक्ति नहीं होती है कि जांच रिपोर्ट मिलने के बाद नए सिरे से जांच प्रारंभ करें। हां यह जरूर है कि वरिष्ठ अधिकारी जांच में कोई गंभीर गलती या कोई महत्वपूर्ण गवाह छूट गए हैं तो उनकी गवाही दर्ज कराने के निर्देश दे सकते हैं, परंतु किसी भी सूरत में वह जांच रिपोर्ट के मनपसंद नहीं होने से नए सिरे से जांच शुरू करने के आदेश नहीं दे सकते है।  सिकरवार के खिलाफ जांच में केवल प्रक्रियात्मक त्रुटि पाई गई हैं, ना कि कोई गंभीर अनियमितता ।
    यह था सिकरवार की जांच का मामला
    अलीराजपुर में आरएस सिकरवार जुलाई 2012 से सितंबर 2015 तक वन मंडल अधिकारी के रुप में पदस्थ थे। इस दौरान उन पर वित्तीय वर्ष 2013-14, 2014-15 और 2015-16 मैं गंभीर वित्तीय अनियमितताएं करने, स्थापित प्रक्रियाओं का बार-बार उल्लंघन करने और शासकीय राशियों का मनमर्जी से अनाधिकृत करने के मामले में प्रथम दृष्टया दोषी पाए जाने पर 25 जुलाई 2017 को विभागीय जांच संस्थित की गई थी। इसके लिए जांच अधिकारी तत्कालीन सीसीएफ इंदौर को बनाया गया। विभाग के शीर्ष अधिकारियों को तत्कालीन सीसीएफ इंदौर की जांच पर भरोसा नहीं था, इसलिए अप्रैल 2019 को सिकरवार के खिलाफ प्रचलित विभागीय जांच तत्कालीन अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वर्किंग प्लान) शशि मलिक को सौंपी गई। मलिक ने अपने जांच प्रतिवेदन में सिकरवार पर लगे पांचों आरोपों में क्लीन चिट देते हुए जांच प्रतिवेदन बीते साल शासन को सौंपा था। 17 महीने बाद बन विभाग के अफसरों ने अचानक इस मामले में मलिक में मलिक पर जांच प्रतिवेदन में सिकरवार को तथ्यों को नजरअंदाज करते हुए क्लीन चिट देने का आरोप लगाते हुए आरोप पत्र सौँप दिया। वर्तमान में सिकरवार रिटायर हो गए हैं इसके पहले वह उमरिया घोटाले में निलंबित रह चुके हैं। उमरिया के बहुचर्चित घोटाले में सिकरवार के अलावा अन्य किसी भी डीएफओ के खिलाफ कार्यवाही अब तक नहीं की गई है।

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